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बिहार : अमित शाह की सिताबदियारा यात्रा समाजवादी नेताओं के लिए बड़ी चुनौती!

जनता दल (युनाइटेड) के एनडीए से बाहर होने और महागठबंधन में शामिल होकर बिहार में सरकार बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अकेली हो गई है

बिहार : अमित शाह की सिताबदियारा यात्रा समाजवादी नेताओं के लिए बड़ी चुनौती!
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पटना। जनता दल (युनाइटेड) के एनडीए से बाहर होने और महागठबंधन में शामिल होकर बिहार में सरकार बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अकेली हो गई है। भाजपा अब अकेले ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उतरने की योजना पर काम कर रही है। ऐसे में भाजपा ने लालू प्रसाद और नीतीश कुमार को उन्हीं के क्षेत्र में घेरना शुरू कर दिया है। यही कारण माना जा रहा है कि केंद्रीय गृहमंत्री सीमांचल के बाद लोकनायक जयप्रकाश की जयंती पर उनके गांव सिताबदियारा पहुंच गए।

गौर करें तो राज्य में अकेले पड़ने के बाद भाजपा की राजनीति में बहुत कुछ बदल गया है, क्योंकि पार्टी ने अपने सोशल इंजीनियरिंग हिस्से के रूप में कई चीजों को आजमाने की कोशिश की है।

भाजपा ने जयप्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर जैसे समाजवादी नेताओं की जयंती और पुण्यतिथि मनाते हुए कार्यक्रम आयोजित करना शुरू कर दिया। भाजपा जानती है कि उसका मुकाबला नीतीश कुमार और राजद के लालू प्रसाद से है, जिनकी गिनती समाजवादी नेता के तौर पर होती है।

अमित शाह 11 अक्टूबर को जेपी की जयंती पर उनकी जन्मस्थली सिताबदियारा पहुंचे और उनकी एक आदमकद प्रतिमा का लोकार्पण किया और जनसभा को संबोधित किया।

भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक महीने से भी कम समय में दूसरी बार बिहार यात्रा की। इससे पहले 23-24 सितंबर को उन्होंने सीमांचल क्षेत्र के पूर्णिया और किशनगंज जिलों में एक रैली को संबोधित करने और अन्य कार्यक्रमों में पार्टी की बैठकों में भाग लेने के लिए दौरा किया था।

भाजपा ने नीतीश और उनके प्रमुख महागठबंधन सहयोगी लालू प्रसाद के सीमांचल स्थित गढ़ से ही चुनौती देने की कोशिश की थी, जहां मुस्लिम आबादी काफी है।

शाह ने पूर्णिया में जनसभा संबोधित करते हुए जहां विकास के कार्यक्रमों का उल्लेख किया, वहीं सिताबदियारा की सभा में उन्होंने मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को जेपी के सिद्धांतों को छोड़ने और स्वार्थ की राजनीति करने को लेकर घेरा।

इस दौरान कांग्रेस से हाथ मिलाने को लेकर भी लोगों के बीच नीतीश के जेपी के सिद्धांतों को भूलने की तस्वीर उभारने की कोशिश की।

इसमें कोई शक नहीं कि एनडीए के साथ रहते हुए कई वर्षो तक नीतीश ने बतौर भाजपा सहयोगी के रूप में समाजवादी विचारधारा और हिंदुत्व तथा राष्ट्रवाद की अपनी मूल विचारधारा के साथ संतुलित किया।

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में वंशवादी राजनीति के खिलाफ होने के लिए नीतीश को 'सच्चा समाजवादी' कहा था। यह अलग बात है कि जल्द ही भाजपा नीतीश से नाता तोड़कर लालू के बेटे वंशवादी तेजस्वी प्रसाद यादव के साथ हो गए।

बहरहाल, भाजपा ने अभी से ही बिहार में चुनावी रणनीति को सरजमी पर उतारने की कोशिश में जुटी है।

भाजपा के प्रवक्ता मनोज शर्मा कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने के महत्वकांक्षा में जेपी के सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी। कांग्रेस के खिलाफ जीवनर्पयत संघर्ष करने वाले जेपी के शिष्य कांग्रेस की गोद में बैठ गए।


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