मुंबई से आना चाहिए विपक्ष की बड़ी आवाज
सबसे पहले हिन्दू-मुसलमान का नशा उतारना पड़ेगा। इसके उतरते ही दलित के पिछड़े के समझ में आ जाएगा कि नफरत का शिकार वह भी हो रहा है

- शकील अख्तर
सबसे पहले हिन्दू-मुसलमान का नशा उतारना पड़ेगा। इसके उतरते ही दलित के पिछड़े के समझ में आ जाएगा कि नफरत का शिकार वह भी हो रहा है। सवर्णों के भी समझ में आ जाएगा कि उन्हें कुछ नहीं मिल रहा है और हमले उन पर भी हो रहे हैं। क्योंकि जो नफरती मानसिकता बना दी गई है वह केवल मारो, अपमान करो ही जानती है। नफरत खतम हो जाएगी सब की जिन्दगी वापस खुशहाल हो जाएगी।
संयोजक बनाना, 11 सदस्यीय संचालन समिति बनाना, लोगो इशु करना सब अच्छी बात है। एक दो और दलों का भी शामिल होना और अच्छी बात है! मगर जनता के लिए सबसे बड़ी बात यह है कि उसे देने के लिए आप क्या घोषणा करने वाले हैं?
कामन मिनीमम प्रोग्राम अलग बात है। वह बड़ा फलसफा होता है। यहां मुंबई से 1942 की तरह घोषणा होना चाहिए- 'सरकार छोड़ो!'
मुंबई अधिवेशन था तो कांग्रेस का मगर आज की तरह उस समय भी सारी जन समर्थक ताकतें एक हो गई थीं और अंग्रेजों के बढ़ते जुल्म से त्रस्त जनता कांग्रेस की तरफ उम्मीद भरी निगाह से देखने लगी थी। इधर-उधर की बातों, घुमा-फिराकर कहने का समय चला गया था। सीधी कार्रवाई, डायरेक्ट एक्शन का वक्त आ गया था। महात्मा गांधी के आंदोलन शुरू करते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। और फिर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी अगस्त महीने की 8 तारीख को मुबंई में वह ऐतिहासिक हुंकार भरी-'अंग्रेजों भारत छोड़ो!'
समय अब कम बचा है। छह महीने बाद मार्च में लोकसभा चुनाव की घोषणा हो जाएगी और जिस तरह की चर्चाएं राजनीतिक क्षेत्रों और ब्यूरोक्रेसी में चल रही हैं उन्हें देखते हुए तो कहा जा सकता है कि चुनाव जल्दी भी हो सकते हैं। कभी भी। मोदी सरकार का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। 'इंडिया' का ग्राफ चढ़ रहा है। इससे पहले कि इंडिया गठबंधन ज्यादा ताकतवर बने प्रधानमंत्री मोदी चुनाव करवा सकते हैं।
इसलिए इस मुंबई बैठक को विपक्ष को बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है। दो स्तरों पर काम करने की जरूरत है। एक नफरत और विभाजन के खिलाफ कड़ा मैसेज देने की। दूसरे सारी जनता की चाहे वह गरीब हो या मध्यम वर्ग हो उसकी आर्थिक मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं उसके लिए सरकार में आने के बाद हम क्या करेंगे उनकी जिन्दगी कैसे आसान होगी इसकी दो-तीन बड़ी घोषणाएं! राहुल की गारंटी की तरह जो उन्होंने कर्नाटक में दी थीं और नतीजे में उन्हें वहां जीत मिली। ऐसे ही मुंबई से नए बने संयोजक को घोषणा करना चाहिए।
इंडिया के पास नेता अच्छे हैं। जनता का समर्थन है। बस एक क्लिक की जरूरत है। संयोग है कि 81 साल बाद विपक्ष की बैठक मुंबई में ही हो रही है। सब को वह इतिहास याद होगा। इन 26 दलों में जो 31 अगस्त मुंबई बैठक तक 27, 28 भी हो सकते हैं और उसके बाद भी इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा सकती है। क्योंकि यह विनिंग काम्बिनेशन ( जीत रहा गठबंधन) है कोई ऐसा नहीं है जो आजादी के लिए किए गए संघर्षों और त्यागों को नहीं जानता हो। अच्छा है वे सब सामने खड़े हैं विरोध में हैं जो इस तरह की बातें करते हैं कि 1947 में अंग्रेज खुद ही अगस्त की गर्मी और उमस से परेशान होकर चले गए थे। जनता ने कोई स्वतंत्रता संग्राम नहीं लड़ा और वैसे भी आजादी 2014 में मिली। उससे पहले तो और यह खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि भारत में पैदा होना शर्म की बात होती थी। मतलब आज जिसकी उम्र 9 साल है उससे बड़े सब जिसमें उसके माता-पिता भी शामिल हैं किसी मतलब के लोग नहीं थे। केवल शर्म से सिर झुकाए लोग थे। और यह भी प्रधानमंत्री जी ने ही कहा था कि सोचते थे किस बेकार देश में पैदा हो गए!
तो साढ़े 9 साल इन बातों में निकल गए। जनता को कुछ नहीं मिला। सिवा नफरत के। गरीबी बढ़ने के। सरकारी चिकित्सा, शिक्षा खत्म होने के। नौकरियां जाने के।
आदमी को आदमी का दुश्मन बना दिया है। हर कोई हर किसी से लड़ रहा है। मणिपुर में तो गृह युद्ध छेड़ ही दिया। बाकी देश में भी कई कई स्तरों पर उसी तरह का विभाजन कर दिया। मुसलमानों के साथ तो हो ही रहा है। मगर दलित, आदिवासी, पिछड़ों के साथ कई गुना बढ़ गया। बच्चों तक में साम्प्रदायिकता भर दी। एक बच्चे को टीचर द्वारा दूसरे बच्चों से पिटवाने का दृश्य किसी को भी विचलित कर सकता है। उत्तर प्रदेश के ही एक पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा कि- अगर ये मेरा बच्चा होता तो मैं क्या कर देता कह नहीं सकता। वीडियो देखने के बाद रात भर सो नहीं पाया।
यही सच्चाई है। राममनोहर लोहिया ने एक बार जयप्रकाश नारायण को लिखा था कि- यह बात आप ही कहें। जनता सुनेगी। आप परिवार वाले आदमी हैं। मैं तो अकेला हूं। (लोहिया अविवाहित थे)
उस बच्चे का दर्द हर मां-बाप अगर वह इन्सान है तो उसके दिल में उतर गया होगा। ऐसे ही नफरत का जहर हर तरफ फैल गया है। अभी मुज्जफरपुर का दर्द कम नहीं हुआ था कि मध्यप्रदेश सागर में एक 18 साल के दलित लड़के के पीट-पीट कर मार डाले जाने की खबर आ गई। युवक नितिन अहिरवार को बचाने आई उसकी मां को भी मारा और फिर नफरत इतनी कि मृतक के घर जाकर तोड़फोड़ की। इससे पहले मध्यप्रदेश का ही एक वीडियो और आया जिसमें दलित युवा को मारते हुए पहले उससे जय श्रीराम कहलवाया गया और फिर कहा बोलो ठाकुर तुम्हारे बाप हैं। यह घृणा और विभाजन की राजनीति ही है। इतनी घटनाएं हुई हैं कि गिनना मुश्किल है और सब के साथ। मध्य प्रदेश के सीधी में आदिवासी के सिर पर भाजपा विधायक के प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला ने पेशाब करके एक नई शुरूआत की थी। वह आगे बढ़ गई। छतरपुर में पुलिस ने एक पत्रकार मिंटू दुबे के मुंह पर पेशाब किया और जेल पहुंचा दिया। वहां नफरत के मारे ब्राह्मण ने पेशाब किया था यहां ब्राह्मण पर पेशाब किया गया। नफरत क्या किसी को छोड़ती है? जो जहां कमजोर होगा वह शिकार बनेगा और इसके उलट प्रेम जो जहां कमजोर होगा वह ज्यादा प्रेम पाएगा।
जातिगत जनगणना के आंकड़े आ जाने दीजिए। मालूम पड़ जाएगा कि संख्या किसकी भारी है। तो अगर प्रेम की राजनीति वापस आ गई तो कम संख्या वाला भी प्रेम और सम्मान पाएगा और अगर ऐसी ही नफरत की राजनीति चलती रही तो जैसा कि आंकड़ों का पूर्वानुमान है ओबीसी सबसे बड़ी ताकत के रूप में आएंगे और बाकी सवर्णों की तादाद काफी कम होगी तो क्या होगा?
बिहार में जाति जनगणना का काम पूरा हो गया है। आंकड़े कभी भी आ सकते हैं और उसके बाद ओबीसी पूरे देश में इसे करवाने का बड़ा माहौल बना देंगे।
मूल सवाल दो ही हैं। एक- संख्या के हिसाब से सरकारी योजनाओं में लाभ मिलना। ऊपर जिस कर्नाटक की बात की वहां राहुल ने अपनी गारंटियों के साथ जातिगत जनगणना करवाने की मांग करते हुए 'जितनी आबादी उतना हक' की बात कही थी। उनसे पहले कांशीराम ने चालीस साल पहले 'जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी' का नारा देकर पासा ही पलट दिया था।
अब जातिगत जनगणना को नहीं रोका जा सकता। भाजपा की हिन्दू मुसलमान की राजनीति की काट यही करेगी और विपक्ष को मालूम है कि यही जहर सबसे खराब है। इसके नशे में लोगों को अपनी बेरोजगारी, महंगाई, बच्चों के लिए बंद सरकारी स्कूल, अपने वृद्ध मां-बाप के लिए बंद सरकारी अस्पताल कुछ नहीं दिख रहे। वह मारो-मारो के साम्प्रदायिक नशे में जी रहा है।
सबसे पहले हिन्दू-मुसलमान का नशा उतारना पड़ेगा। इसके उतरते ही दलित के पिछड़े के समझ में आ जाएगा कि नफरत का शिकार वह भी हो रहा है। सवर्णों के भी समझ में आ जाएगा कि उन्हें कुछ नहीं मिल रहा है और हमले उन पर भी हो रहे हैं। क्योंकि जो नफरती मानसिकता बना दी गई है वह केवल मारो, अपमान करो ही जानती है। नफरत खतम हो जाएगी सब की जिन्दगी वापस खुशहाल हो जाएगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


