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तंबाकू उद्योग का असर खौफनाक: विश्व स्वास्थ्य संगठन

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तंबाकू उद्योग को दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषकों में शामिल होने की वजह से एक बहुत बड़ा खतरा बताया.

तंबाकू उद्योग का असर खौफनाक: विश्व स्वास्थ्य संगठन
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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक नई रिपोर्ट में कहा है कि तंबाकू उद्योग से दुनिया को कितना बड़ा खतरा है इसका कई लोगों को एहसास भी नहीं होता. संगठन के मुताबिक तंबाकू उद्योग दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषकों में से है, इसने दुनिया भर में कचरे के पहाड़ छोड़े हैं और यह ग्लोबल वॉर्मिंग में भी योगदान दे रहा है.

संगठन ने उद्योग पर व्यापक रूप से पेड़ों के काटे जाने, आवश्यक पानी और जमीन के खाद्य उत्पादन की जगह अपने लिए इस्तेमाल करने, प्लास्टिक और रासायनिक कचरा उगलने और करोड़ों टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन करने का आरोप लगाया.

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काट दिए जाते हैं 60 करोड़ पेड़

विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर जारी अपनी रिपोर्ट में संगठन ने मांग की कि तंबाकू उद्योग को जिम्मेदार ठहराया जाए और सफाई का खर्च भी उठाने के लिए कहा जाए. "हमारे गृह में जहर फैलाता तंबाकू" नाम की इस रिपोर्ट में तंबाकू बनाने की पूरी प्रक्रिया के असर पर नजर डाली गई है. इसमें तंबाकू के पौधों की खेती, तंबाकू उत्पादों का उत्पादन, खपत और कचरा शामिल है.

स्वास्थ्य पर तंबाकू के असर पर तो दशकों से काम हो रहा है, लेकिन इस रिपोर्ट में उसके पर्यावरण पर असर पर ध्यान केंद्रित किया गया है. आज भी धूम्रपान से हर साल पूरी दुनिया में 80 लाख से ज्यादा लोग मारे जाते हैं. संगठन में स्वास्थ्य प्रोत्साहन के निदेशक रूड़ीगर क्रेच ने रिपोर्ट के नतीकों को "काफी विनाशकारी" बताया और उद्योग को "सबसे बड़े प्रदूषकों में से एक" बताया.

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रिपोर्ट के मुताबिक उद्योग की वजह से हर साल करीब 60 करोड़ पेड़ काट दिए जाते हैं. इसके अलावा तंबाकू उगाने और उसके उत्पादन के लिए हर साल 2,00,000 हेक्टेयर जमीन और 22 अरब टन पानी की जरूरत होती है. उद्योग करीब 8.4 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन भी करता है.

100 लीटर पानी प्रदूषित

क्रेच ने बताया कि इसके अतिरिक्त, "तंबाकू उत्पाद धरती पर सबसे ज्यादा फेंकी हुई चीजों में से हैं, जिनमें 7,000 से भी ज्यादा जहरीले रसायन होते हैं और वो रसायन फेंक दिए जाने पर हमारे पर्यावरण में जोंक की तरह घुस जाते हैं." उन्होंने बताया कि जो अनुमानित 4,500 अरब सिगरेट के कुंदे हमारे समुद्रों, नदियों, फुटपाथों और समुद्र तटों पर पहुंच जाते हैं वो 100 लीटर पानी को प्रदूषित कर सकते हैं.

इसके अलावा करीब एक चौथाई तंबाकू किसानों को ग्रीन टोबैको सिकनेस नाम की बीमारी भी हो जाती है जिसमें त्वचा के जरिए सोखे हुए निकोटिन से शरीर में विष फैल जाता है. क्रेच ने बताया कि दिन भर तंबाकू से काम करने वाले किसान एक दिन में 50 सिगरेट के बराबर निकोटीन ले लेते हैं.

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रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि अधिकांश तंबाकू गरीब देशों में ही उगाई जाती है, जहां पानी और कृषि भूमि की कमी होती है और जहां इस तरह की फसलों को अक्सर बेहद आवश्यक खाद्य उत्पादन की जगह उगाया जाता है. सिगरेट के फिल्टरों में माइक्रोप्लास्टिक होते हैं, जो दुनिया भर के समुद्रों की गहराइयों तक में पाए गए हैं.

सिगरेट फिल्टरों पर लगे प्रतिबंध

संगठन ने नीति निर्माताओं से कहा है कि सिगरेट फिल्टरों को सिंगल यूज प्लास्टिक माना जाए और उन पर प्रतिबंध लगाने पर विचार किया जाए. संगठन ने इस बात पर भी दुख प्रकट किया कि दुनिया भर में करदाता तंबाकू उद्योग की कारगुजारियों की सफाई का बढ़ता खर्च उठा रहे हैं.

उदाहरण के तौर पर, इधर उधर फेंके हुए तंबाकू के उत्पादों की सफाई के लिए चीन हर साल करीब 2.6 अरब डॉलर, भारत कभी 76.6 करोड़ डॉलर और ब्राजील और जर्मनी करीब 20 करोड़ डॉलर खर्च करते हैं. संगठन ने जोर दे कर कहा कि फ्रांस और स्पेन की तरह और देशों को भी पोल्यूटर पेज प्रिंसिपल अपनाना चाहिए.


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