एनडीए के सामने बड़े सवाल
2024 के लोकसभा चुनाव में 240 सीटों पर सिमटने के बावजूद नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के समर्थन से नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हो गए हैं

- प्रो. रविकांत
पहले अपने सहयोगी घटक दलों के जरिए मोदी ने मजबूत होने का संदेश दिया, फिर प्रोटेम स्पीकर के मामले में विपक्ष को बेपरवाही से दरकिनार कर दिया। भाजपा ने प्रोटेम स्पीकर के लिए उड़ीसा से सातवीं बार के सांसद भर्तृहरि महताब को चुना जबकि विपक्ष का दावा था कि केरल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पिछली लोकसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक रहे आठवीं बार के सांसद अडूर सीट से जीतकर आने वाले दलित के.सुरेश सबसे वरिष्ठ हैं। इसलिए उन्हें प्रोटेम स्पीकर बनाया जाना चाहिए। लेकिन नरेंद्र मोदी ने इसे स्वीकार नहीं किया।
2024 के लोकसभा चुनाव में 240 सीटों पर सिमटने के बावजूद नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के समर्थन से नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हो गए हैं। लेकिन इस बार विपक्ष बेहद मजबूत है। विपक्ष के पास 230 से ज्यादा सांसद हैं। पिछले 10 साल नरेंद्र मोदी ने तानाशाहपूर्ण तरीके से सरकार चलाई। संसद में होने वाली बहसों और सड़कों पर होने वाले आंदोलनो पर भी नरेंद्र मोदी ने कभी जवाबदेही नही स्वीकार की। क्या अपने तीसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी उत्तरदायी सरकार चलाएंगे? क्या विपक्ष एकजुट होकर सरकार को घेरेगा? क्या एनडीए सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी? आज भारतीय लोकतंत्र के सामने ऐसे तमाम सवाल खड़े हुए हैं?
24 जून को 18वीं लोकसभा का पहला सत्र शुरू हो चुका है। नरेंद्र मोदी ने पहले दिन से ही संकेत दिए हैं कि वह भले ही एनडीए की सरकार चला रहे हैं लेकिन उनके काम का तरीका और तेवर वही पुराने रहेंगे। अलबत्ता, अबकी बार नरेंद्र मोदी के लिए राह आसान नहीं है। भाजपा के भीतर भी मोदी विरोध में आवाजें उठने लगी हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान, नितिन गडकरी और योगी आदित्यनाथ जैसे गुजराती लॉबी के विरोधी नेता जी हुजूरी करने के लिए तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि मोदी ने भाजपा संसदीय दल की बैठक के बजाय एनडीए की बैठक में नेता सदन का प्रस्ताव पास कराया। वे जानते हैं कि अगर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू काबू में रहे तो उन्हें कोई खतरा नहीं है। इसलिए जेडीयू और टीडीपी से अंदरूनी समझौते के बाद नरेंद्र मोदी ने उनकी पार्टियों को मंत्रिमंडल में झुनझुना पकड़ा दिए। गृह, विदेश, रक्षा, रेल और वित्त जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय मोदी ने भाजपा के ही पास रखे। इन मंत्रालयों में पिछले कार्यकाल के मंत्रियों की पुन: बहाली से मोदी ने संकेत दिया है कि वे कहीं से भी कमजोर नहीं हैं।
पहले अपने सहयोगी घटक दलों के जरिए मोदी ने मजबूत होने का संदेश दिया, फिर प्रोटेम स्पीकर के मामले में विपक्ष को बेपरवाही से दरकिनार कर दिया। भाजपा ने प्रोटेम स्पीकर के लिए उड़ीसा से सातवीं बार के सांसद भर्तृहरि महताब को चुना जबकि विपक्ष का दावा था कि केरल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पिछली लोकसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक रहे आठवीं बार के सांसद अडूर सीट से जीतकर आने वाले दलित के.सुरेश सबसे वरिष्ठ हैं। इसलिए उन्हें प्रोटेम स्पीकर बनाया जाना चाहिए। लेकिन नरेंद्र मोदी ने इसे स्वीकार नहीं किया। इसके बाद स्पीकर के लिए तकरार शुरू हुई। राजनाथ सिंह के जरिए पहली बार स्पीकर पद के लिए आमराय बनाने का
दिखावा किया गया। पहले एनडीए की बैठक में राजनाथ सिंह ने मोदी की राय बता दी कि स्पीकर उनकी ही पसंद का होगा। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष से संपर्क करके उनका समर्थन मांगा। विपक्ष ने संसद की परंपरा का हवाला देते हुए डिप्टी स्पीकर की मांग की। इस पर राजनाथ सिंह कोई आश्वासन नहीं दे सके। इसके बाद विपक्ष ने के. सुरेश को स्पीकर के लिए अपना प्रत्याशी बनाया। लेकिन 26 जून को ध्वनिमत से मोदी की पसंद ओम बिरला को फिर से लोकसभा का स्पीकर चुन लिया गया। अब लगता है कि डिप्टी स्पीकर भी एनडीए का होगा। नरेंद्र मोदी परंपराभंजक हैं। लोकतंत्र की मर्यादा और विपक्ष के प्रति कोई सम्मान नरेंद्र मोदी के मन में नहीं है। उनके लिए जनविश्वास भी नंबर गेम है। नरेन्द्र मोदी के लिए लोकतंत्र महज चुनाव है। चुनाव जीतने के लिए परंपराएं, मर्यादाएं, मूल्य और नीतियां कोई मायने नहीं रखतीं।
अब सवाल यह है कि इस बार भी क्या नरेंद्र मोदी क्या निरंकुश सरकार चलाएंगे? नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की ओर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार ने समर्पण कर दिया है। नीतीश कुमार की निगाह में केवल बिहार है। उनका एजेंडा बिहार को विशेष आर्थिक पैकेज हासिल करना और विधानसभा चुनाव जीतकर पुन: मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहना है।
जबकि भाजपा की प्राथमिकता बिहार में अपना मुख्यमंत्री बनाना है। इसके लिए मोदी- शाह नीतीश कुमार की पार्टी तोड़ने में भी संकोच नहीं करेंगे। क्या इससे नीतीश कुमार अनजान हैं? इसी तरह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की प्राथमिकता विशेष आर्थिक पैकेज हासिल करना है। नई राजधानी अमरावती उनका ड्रीम प्रोजेक्ट है। 16 सांसदों वाली टीडीपी के बिना नरेंद्र मोदी सरकार नहीं चला सकते। फिर भी नायडू ना तो अपना स्पीकर बनवा सके और ना ही कोई ढंग का मंत्रालय उन्हें मिला। लोग हैरान हैं कि आखिर नीतीश और नायडू ने मोदी के सामने आत्म समर्पण क्यों कर दिया? मोदी सरकार में उन्हें ना तो उचित स्थान मिला है और ना ही समुचित सम्मान। क्या नीतीश और नायडू विशेष आर्थिक पैकेज के लिए ही चुप है?
नीतीश और नायडू की खामोशी के बावजूद नरेंद्र मोदी इस बार निरंकुश और अलोकतांत्रिक सरकार नहीं चला पाएंगे। इसके संकेत संसद सत्र के पहले दिन से ही मिलने लगे हैं। राहुल गांधी समेत विपक्ष के तमाम सांसदों ने संविधान की प्रति हाथ में लेकर 'जय संविधानÓ के नारे के साथ शपथ ली। यहां तक कि पहले दिन जब नरेंद्र मोदी बतौर सांसद शपथ ले रहे थे तो राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने संविधान की प्रति उन्हें दिखाते हुए संदेश दिया था कि देश संविधान से चलेगा सेंगोल से नहीं। सरकार पर नकेल कसने के लिए कांग्रेस ने अपने सबसे लोकप्रिय और जनप्रिय नेता राहुल गांधी को विपक्ष का नेता बनाया है। पिछले दो साल में राहुल गांधी ने अप्रतिम विश्वसनीयता हासिल की है।
दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और अतिपिछड़ा समाज में आज राहुल गांधी सबसे लोकप्रिय नेता हैं। देश के नवनिर्माण और समावेशी विकास के उनके स्वप्न और संघर्ष से प्रभावित नौजवान, किसान, दस्तकार, कारीगर और मजदूर राहुल गांधी की ओर उम्मीद से देख रहे हैं। आज उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में मोदी (32 प्रतिशत) से ज्यादा लोग (36 प्रतिशत) राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। राहुल गांधी के सवालों और उनकी जनपक्षधरिता के सामने नरेंद्र मोदी बौने नजर आते हैं। चुनाव खत्म होने के बावजूद राहुल गांधी देश के लोगों के मुद्दों पर लगातार सक्रिय हैं।
नीट और यूजीसी पेपर लीक होने का मुद्दा हो या ट्रेन दुर्घटनाओं का मुद्दा; राहुल गांधी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। नरेंद्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद कश्मीर में आतंकवादी हमले बढे हैं। मणिपुर अभी भी शांत नहीं हुआ है। इन मुद्दों पर भी नरेंद्र मोदी घिरते हुए नजर आ रहे हैं।राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद राहुल गांधी ने सदन में नीट पेपर लीक का मुद्दा उठाकर यह साबित कर दिया है कि शिक्षा और नौकरी जैसे सवाल उनकी प्राथमिकता हैं। राहुल गांधी की सक्रियता और आक्रामकता से स्पष्ट है कि इस बार नरेंद्र मोदी के दिन अच्छे नहीं हैं।


