नागपुर से कांग्रेस का बड़ा संदेश
कांग्रेस का स्थापना दिवस अमूमन दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में ध्वजारोहण और कुछेक औपचारिक भाषणों के साथ मना लिया जाता है

कांग्रेस का स्थापना दिवस अमूमन दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में ध्वजारोहण और कुछेक औपचारिक भाषणों के साथ मना लिया जाता है। दो-चार बड़े नेताओं के सोशल मीडिया पोस्ट्स इस मौके पर आ जाते हैं, जिन्हें उनके मुठ्ठी भर समर्थक फॉरवर्ड और लाइक कर देते हैं। देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी, जिसके बिना भारत के स्वाधीनता संग्राम का इतिहास अधूरा रह जाएगा, उसके प्रति बीते वर्षों में आम जनता ने उदासीन भाव ही रखा है। देश के अधिकतर लोगों को इस बात का इल्म ही नहीं होगा कि कांग्रेस का स्थापना दिवस कब आया और कब बीत गया। लेकिन इस बार ऐसा शायद न हो। अपने 139वें स्थापना दिवस पर कांग्रेस ने- नागपुर में हैं तैयार हम, नाम से महारैली कर वाकई ऐलान कर दिया है कि 2024 के चुनावों में दो बार से सत्ता पर काबिज भाजपा का सामना करने के लिए कांग्रेस और इंडिया गठबंधन पूरी तरह तैयार हैं।
नागपुर की इस महारैली की घोषणा कांग्रेस ने पहले ही कर दी थी। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों के बाद मीडिया ने फिर से माहौल बनाना शुरु कर दिया था कि अब कांग्रेस का जोश ठंडा पड़ जाएगा या इंडिया गठबंधन में उसकी बात नहीं सुनी जाएगी। लेकिन यह साफ दिख रहा है कि कांग्रेस ने इस कोशिश को अपने संकल्प पर हावी नहीं होने दिया। पहले 19 दिसंबर को कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक की मेजबानी की। उसके बाद निलंबित सांसदों के समर्थन में जंतर-मंतर के प्रदर्शन में अपना दम दिखाया। 138 साल पूरे होने पर देश के लिए दान अभियान चलाकर क्राउड फंडिंग की। मणिपुर से महाराष्ट्र तक भारत न्याय यात्रा निकालने का ऐलान कर दिया। इन सबसे पता चलता है कि कांग्रेस जनता के बीच जाने और जनता से जुड़ने का कोई अवसर नहीं छोड़ रही है।
कांग्रेस ने नागपुर में अपना स्थापना दिवस मनाने का जो फैसला लिया, उसके भी गहरे निहितार्थ हैं। विदर्भ का यह इलाका लंबे वक्त तक कांग्रेसमय रहा है। गांधीजी का इस इलाके से खास लगाव रहा है। दिसंबर 1920 में आयोजित कांग्रेस के नागपुर सत्र में महात्मा गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया था। इसके बाद 1959 में कांग्रेस के नागपुर सत्र में ही इंदिरा गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया था। नागपुर दीक्षा भूमि के लिए जाना जाता है, जहां संविधान निर्माता बी आर अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था। मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी दलित समुदाय से हैं। इसलिए उनके नेतृत्व में कांग्रेस की नागपुर में महारैली से दलितों को जोड़ने में मदद मिल सकती है। नागपुर की एक खास बात ये भी है कि यहां राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मुख्यालय भी है। इसलिए कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने इस बार संघ को उसके गढ़ में घुसकर चुनौती दी है।
हैं तैयार हम महारैली में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे दोनों के भाषणों में वही सारी बातें सुनने मिलीं, जो इससे पहले संसद में या चुनावी सभाओं में जनता सुन चुकी है। जैसे दोनों ने ही इस बार की लड़ाई को विचारधारा की लड़ाई कहा। एक ओर संविधानविरोधी, गोडसे वाली विचारधारा है, जो हिंदुत्व को बढ़ाना चाहती है, गुलामी के दौर वाले नियम-कानून फिर से देश में लाना चाहती है, दूसरी ओर गांधी-नेहरू-अंबेडकर की विचारधारा है, जिसने देश को आजाद करने की लड़ाई लड़ी, जिसके कारण देश को संविधान मिला, जिसके कारण हिंदुस्तान के हर व्यक्ति को सभी भेदों से परे बराबरी का हक मिला, अपनी सरकार चुनने का हक मिला। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे दोनों ने ही जनता को बतलाया कि किस तरह मोदी सरकार के 10 सालों के शासन में देश में महंगाई और बेरोजगारी बढ़ी है, लोगों की तकलीफें बढ़ी हैं और केवल 2-3 अरबपतियों को फायदा हुआ है।
राहुल गांधी ने फिर से जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया तो वहीं मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि आप अगर हमें सत्ता में आने का मौका देते हैं तो हम आपको न्याय देंगे। यानी सबसे गरीब परिवारों को हर साल 72 हजार रूपए देने की कांग्रेस की न्याय योजना को लागू करने की बात कांग्रेस अध्यक्ष ने कही। लेकिन इन दोनों नेताओं के भाषणों में सबसे खास बात ये रही कि दोनों ने आने वाले चुनावों में केवल कांग्रेस की जीत की बात न कहकर इंडिया गठबंधन के जीतने की बात कही है। इसके बाद अब कोई संदेह नहीं रह जाता कि अब भाजपा को 28 दलों की एकता का मुकाबला करना होगा। इंडिया गठबंधन बनने के बाद से कई बार उसमें दरार की खबरें चलाई जा चुकी हैं। 19 दिसंबर की बैठक के बाद यह मुहिम और तेज की जा चुकी है। लेकिन इन तमाम कोशिशों के बाद अपने स्थापना दिवस कार्यक्रम के मंच से अगर कांग्रेस अध्यक्ष और कांग्रेस के एक बड़े नेता 2024 की जीत को केवल अपनी पार्टी तक सीमित न रखकर उसमें इंडिया गठबंधन का नाम जोड़ रहे हैं, तो इससे साबित हो गया है कि गठबंधन के सभी दल छिटपुट विरोधों और असहमतियों के बावजूद एक होकर ही चुनाव लड़ेंगे।
कांग्रेस महारैली की एक और खास बात ये रही कि कांग्रेस ने भाजपा शासन की कमियां गिनाईं, विचारधारा के नुकसान बताए, देश के भविष्य के साथ होने वाले खिलवाड़ से लोगों को आगाह किया, लेकिन कहीं भी व्यक्तिगत द्वेष या नफरत की झलक नहीं दिखी। राम मंदिर, जातिगत जनगणना, सांसदों का निलंबन, संसद पर हमला, किसानों पर अत्याचार, मीडिया का कार्पोरेट के दबाव में एकतरफा रिपोर्टिंग करना, ऐसे कई मुद्दों पर रैली में चर्चा हुई, और उसमें चिंता दिखी, खीझ, जलन या हिंसा की हद तक, नफरत नहीं दिखी। यही बात कांग्रेस को भाजपा से अलहदा करती है। राहुल गांधी ने इस रैली में फिर कहा कि जो इस बात का अर्थ समझ जाएगा कि हम नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलते हैं, वो कांग्रेस को समझ जाएगा।
कांग्रेस अपने इस फलसफे को समझाने की कोशिश तो खूब कर रही है, लेकिन क्या देश के लोग इसे समझेंगे, और समझने के बाद इंडिया को एक मौका देंगे, इसका जवाब भविष्य के गर्भ में छिपा है।


