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संसद भवन की सुरक्षा में बड़ी सेंध

एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी पार्टी के दो नवनिर्वाचित मुख्यमंत्रियों- मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत कर रहे थे

संसद भवन की सुरक्षा में बड़ी सेंध
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एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी पार्टी के दो नवनिर्वाचित मुख्यमंत्रियों- मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत कर रहे थे, उसी दौरान नए संसद भवन को चार लोगों ने अपने निशाने पर ले लिया। इन लोगों ने लोकसभा के भीतर रंगीन धुआं छोड़ दिया। लोकसभा में दर्शक दीर्घा से दो लोगों ने छलांग लगाकर साबित कर दिया कि देश की सबसे बड़ी पंचायत अब भी वैसी ही असुरक्षित है जिस प्रकार आज से ठीक 22 साल पहले थी जब इसी दिन पुराने भवन पर एक बड़ा आतंकी हमला हुआ था। संयोग से तब भी भाजपा की ही सरकार थी। हालांकि उस घटना और आज के घटनाक्रम के स्वरूप में बड़ा फर्क है लेकिन जो बात स्पष्ट तौर पर उभरकर आई है, वह यही कि सुरक्षा अब भी एक बड़ा मुद्दा है।

दोपहर करीब एक बजे आसंदी पर वरिष्ठ सदस्य राजेन्द्र अग्रवाल विराजमान थे और पश्चिम बंगाल के माल्हदा के सांसद खरगेन मुर्मु अपने सवाल पूछ रहे थे। तभी एक व्यक्ति दर्शक दीर्घा से कूद पड़ा और नारे लगाता हुआ एक से दूसरी बेंच पर छलांगें लगाने लगा। वह अपने जूते से रंगीन धुंआ छोड़ने वाला स्प्रे निकालने के लिये प्रयासरत भी दिखा। उसके पीछे-पीछे एक महिला ने भी छलांग लगा दी। वे लोग नारेबाजी कर रहे थे। सदन में तैनात मार्शल तो बाद में हरकत में आये, कांग्रेस और बसपा के सांसदों ने घेराबन्दी कर उन्हें पकड़ लिया। तत्पश्चात मार्शलों के द्वारा वे पुलिस के हवाले कर दिये गये। इनकी जो शिनाख्त की गई है उसके अनुसार महिला का नाम नीलम (42) है, जो हिसार के रेड स्केवर की बताई गई है। दूसरा लातूर (महाराष्ट्र) का अमोल शिंदे (25) है। जब पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर ले जाया जा रहा था, वह महिला 'तानाशाही नहीं चलेगीÓ, 'तानाशाही बन्द करोÓ, 'मणिपुर में महिलाओं के साथ अत्याचार बन्द करोÓ जैसे नारे लगा रही थी।

यह समझने की बात है कि ये चारों पेशेवर अपराधी या प्रशिक्षित आतंकवादी नहीं हैं, बल्कि देश के मौजूदा हाल से त्रस्त आम आदमी के नुमाइंदे हैं। जिस तरह भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंक कर अंग्रेजी हुकूमत के कानों तक विरोध की आवाज पहुंचाई थी, यह उसी तरह का काम था। हालांकि देश अब आजाद है और अपनी आवाज पहुंचाने के दसियों वैध तरीके हैं, इसलिए इस तरह के काम को किसी भी नजर से सही नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि यह सरकार के लिये सबक है कि लोगों को व्यथित करने वाले मुद्दों को संवेदनशीलता और वरीयता के साथ डील करना सीखे।

बेशक सुरक्षा में इस बड़ी खामी के जिम्मेदार सीधे-सीधे गृह मंत्री अमित शाह हैं। इन लोगों द्वारा किये गये इस कृत्य का वास्तविक उद्देश्य क्या था, यह तो पूछताछ से ही सामने आ सकेगा परन्तु जिस तरीके से सुरक्षा कवच को भेदा गया है वह अत्यंत चिंताजनक है। बताया जा रहा है कि ये चारों लोग मैसूर के भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा के पास पर संसद भवन के भीतर घुसे थे। इस घटना को इसलिये भी बड़ी चिंता का सबब मानना चाहिये क्योंकि वह दर्शाती है कि दो दशक पहले संसद भवन पर हुए हमले के बावजूद अब भी सरकार नहीं चेती है। कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने पुष्टि की कि दोनों के पास रंगीन धुंआ छोड़ने वाले कुछ उपकरण भी थे। उन्होंने भी सुरक्षा में इसे गम्भीर चूक बतलाया है। समाजवादी पार्टी की सदस्य डिंपल यादव ने मीडिया से बातचीत में कहा कि यह अच्छा हुआ कि कोई बड़ी घटना नहीं हुई।

इसे पहले (2001) के मुकाबले इसलिये कोई कम बड़ा हादसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि उस घटना में हमला बाहर ही हुआ था। उस समय हमलावरों को पुलिस बल तथा सुरक्षाकर्मियों ने बहादुरी का परिचय देते हुए भीतर आने के पहले ही रोक दिया था। उन्हें अंदर तक न पहुंचने देने में कुछ पुलिस वालों ने अपनी जान तक न्यौछावर कर दी थी। तब सुरक्षाकर्मियों समेत 9 लोगों की जान गई थी। इस घटना में यह खैर रही कि वे कोई खतरनाक वस्तु लेकर अंदर नहीं आए। इससे सांसदों की जान को खतरा भी हो सकता था।

उल्लेखनीय है कि कुछ अरसा पहले से ही नये संसद भवन का इस्तेमाल हो रहा है जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री ने किया था। बड़ी इवेंटबाजी के साथ प्रारम्भ हुए इस नये भवन का यह पहला ही शीतकालीन सत्र है। इस पर सजावट आदि पर तो खूब खर्च हुआ है, मोदी ने संविधान व राजदण्ड के प्रतीक सेंगोल वगैरह लाने के प्रपंच भी खूब रचे थे लेकिन लगता है कि सुरक्षा जैसे बेहद अहम मुद्दे पर उसका ध्यान नहीं है। फिर, यह सरकार हमेशा देश के सुरक्षित हाथों में होने की जो बात करती रही है, उसकी भी पोल खुल गई है। यह घटना बतलाती है कि सरकार की सुरक्षा व्यवस्था बेहद लचर है और देश के सांसद तक असुरक्षित हैं।

सबसे शर्मनाक मंज़र पेश किया वहां मौजूद मीडिया ने। रंगीन धुआं छोड़ता उपकरण पहले एक चैनल वाले के हाथ में लग गया जिसे उसने लाइव दिखाना शुरू कर दिया। टीआरपी की अपार सम्भावना को भांपते हुए तथा अन्य से पिछड़ने की आशंका के चलते चैनल वालों के बीच उसे लेकर शर्मनाक छीना-झपटी हुई। कोई भी अवसर को चूकना नहीं चाहता था जबकि वह उपकरण घटना का एक महत्वपूर्ण साक्ष्य था जिसका इस मामले की फोरेंसिक जांच-पड़ताल के लिये बहुत महत्व है।
बहरहाल, भाजपा के शासन में संसद पर हुए इस एक और हमले के बाद अब यह सवाल और महत्वपूर्ण हो गया है कि क्या देश वाकई मजबूत हाथोंं में है।


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