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साइकिल ही हमारा भविष्य है

साइकिल से सड़क जाम होने की समस्या नहीं है। इसे संकरे रास्तों व गलियों में चलाया जा सकता है

साइकिल ही हमारा भविष्य है
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- बाबा मायाराम

साइकिल से सड़क जाम होने की समस्या नहीं है। इसे संकरे रास्तों व गलियों में चलाया जा सकता है। अगर इसके लिए अलग से लेन हो तो, न तो यह दूसरे वाहनों की गति में रूकावट होगी और न ही साइकिल चलाने वालों को असुविधा का सामना करना पड़ेगा। साइकिल उनके लिए भी अच्छी है, जो भीड़ से बचना चाहते हैं। सड़कों पर वाहनों का बोझ बढ़ता जा रहा है। सड़क जाम, दुर्घटनाएं, प्रदूषण की खबरें आती रहती हैं। साइकिल के चलन इन सभी में कमी आ सकती है।

मैं पिछले चार-पांच सालों से साइकिल की सैर करता हूं। यह अब मेरी दिनचर्चा में शामिल है। इससे मेरी दुनिया बड़ी हुई है। पक्षी दर्शन करना, नए मित्र बनाना, खेती-किसानी की जानकारी और पेड़-पौधों, नदी और पहाड़ इत्यादि को करीब से देखने व जानने का मौका मिला है।

वैसे तो मैं बचपन से साइकिल चलाता रहा हूं। गांव से 7 किलोमीटर दूर एक कस्बे में साइकिल से जाता था। यह वह दौर था जब सड़कों पर साइकिलें खूब दिखा करती थीं। किसान, उससे वजन ढोते थे। पशुपालक उस पर घास का गट्टर ले जाते थे। दूध वाले, सब्जी वाले तो साइकिल की सवारी करते दिखते ही थे। बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक भी साइकिल से आते थे।

हमारे पास हरक्यूलिस साइकिल थी। पिताजी ने इसे उनके मित्र से खरीदा था। पुरानी थी, लेकिन बहुत अच्छी चलती थी। घर में ही छोटी-मोटी मरम्मत कर लेते थे। हवा भरने का पंप और पाना, पेंचिंस इत्यादि सामान घर पर रखते थे। जब कभी साइकिल पंचर हो जाती थी, तो घर पर ही पंचर बना लेते थे।
यह वह दौर था जब मोटर साइकिल व कारें बहुत ही कम थीं। अक्सर लोग पैदल या साइकिल से ही यात्रा करते थे। बल्कि पैदल चलने वाले ज्यादा थे। ऐसे कई लोगों से मैंने बात की है, जिन्होंने मीलों पैदल यात्राएं की हैं। नर्मदा नदी की परिक्रमा तो पैदल ही की जाती थी, जिसमें 3 साल ( 3 साल, 3 महीने, 13 दिन) से ज्यादा समय लगता था। हमारे गांव में यह परिक्रमा पैदल ही की है।

कुछ समय पहले तक शहरों व कस्बों में बड़ी संख्या में मजदूरों को साइकिल की सवारी करते देखा जा सकता था। इन्दौर व जबलपुर में मैंने ऐसे ही मजदूर देखे हैं। छत्तीसगढ़ में भिलाई में मजदूरों को साइकिल चलाते देखा जा सकता था। यह एक तरह से गरीबों की सवारी थी, लेकिन अब सबकी पसंद बनती जा रही है।

हमारे गांव में एक स्वयंसेवी संस्था के कार्यकर्ता साइकिल से ही चलते थे। संस्था ने गांवों में सचल पुस्तकालय ( मोबाइल लाइब्रेरी) चलाया था, उसमें साइकिल का इस्तेमाल किया जाता था। साइकिल पर किताबों से भरे दो झोले लेकर गांव की चौपाल पर बैठते थे। वहां गांव के लोग आते थे, और बहुत मामूली शुल्क देकर किताबें ले जाते थे, और एकाध सप्ताह में वापस कर देते थे। इस पुस्तकालय की खूब चर्चा हुआ करती थी।

कोविड-19 के समय मैंने फिर से साइकिल चलाना शुरू किया। करीब 14 किलोमीटर रोज़ साइकिल की सैर करता हूं। इस दौरान मुझे बहुत ही अच्छे दृश्य देखने को मिले हैं। रंग-बिरंगी चिड़ियों के झुंड, मोर, भटकते सियार व हिरण दिखे, तो कई ग्रामीण किसानों, पशुपालकों, स्कूली बच्चों और कुशल कामगारों से मुलाकात हुई।

साइकिल के कारण मेरी कई साइकिल मरम्मत करने वाले लोगों से पहचान हुई। वे बताते हैं कि आगे आने वाला जम़ाना साइकिल का ही है। मोटर वाहनों से प्रदूषण तो होता ही है, उनमें खर्च भी कई गुना ज्यादा होता है। जबकि साइकिल मरम्मत का खर्च बहुत कम होता है। यह प्रदूषण मुक्त भी है। इससे कई लोगों का रोजगार भी जुड़ा है।

इस दौरान मैंने कई कहानियां सुनी हैं। हाल ही में एक व्यक्ति ने बताया कि वह साइकिल के कारण ही उसकी रोजी-रोटी चला पा रहा है। वह छींद के पत्तों से झाड़ी बनाता है। इसमें उसे दो दिन लगते हैं। एक दिन वह जंगल व खेतों में छींद की पत्तियां लेने जाता है और झाड़ू बनाता है, और दूसरे दिन कस्बे में बेचने आता है। साइकिल के कारण ही यह संभव हो पाता है। क्योंकि इतनी दूर वह साइकिल की सवारी कर ही आता-जाता है। यह पूरा काम श्रम आधारित है, और बिना लागत का है। यह काम वह सालों से कर रहा है।

आजकल सरकार स्कूली बच्चों के लिए निशुल्क साइकिल वितरण करती है। यह बहुत ही अच्छी योजना है। यह कई राज्यों में है। जब भी स्कूली बच्चों को साइकिल चलाते देखते हैं, तो एक अलग ही एहसास होता है। ऐसे दृश्य हमें रोमांचित करते हैं।

डाकिया और पेपर बांटने वाला तो रोज ही साइकिल से आता है, जिनका सभी को इंतजार रहता है। इनकी पहचान ही साइकिल से होती है। डाकिया, तो दूर-दराज के गांवों में साइकिल से आता-जाता था। हमारे गांव में कस्बे से वही डाक लाता था। लेकिन अब कुछ डाकिया मोटर साइकिल से आने-जाने लगे हैं।

सिनेमा में साइकिलें दिखती थीं। नायक-नायिकाएं साइकिल चलाते देखे जाते थे। ऐसी कई फिल्में आई हैं, जिनमें साइकिलों का इस्तेमाल किया गया है।

अगर हम पर्यावरण और जन स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो साइकिलें बेहतर वाहन हैं। पर्यावरण की मित्र हैं। यह हाथ-पैर की ताकत से चलती हैं। इसे चलाने के लिए किसी प्रकार के ईंधन की जरूरत नहीं है। इससे किसी भी तरह का प्रदूषण नहीं होता है। प्रकृति को इससे कोई खतरा नहीं है। जबकि मोटर-कारों का जलवायु परिवर्तन में बड़ा योगदान है।

लगातार तेल के दाम बढ़ते जा रहे हैं और तेल के भंडार खत्म होने की कगार पर हैं। अगर हम साइकिलों का उपयोग करें तो हमें मोटरवाहनों में प्रयोग होने वाला पेट्रोल व डीजल को आयात नहीं करना पड़ेगा या कम से कम करना पड़ेगा। इससे हमें कुछ अर्थव्यवस्था में राहत महसूस होगी।

अच्छी सेहत के लिए साइकिल चलाना जरूरी है। साइकिल चलाने वालों को अलग से शारीरिक कसरत की जरूरत नहीं होती, क्योंकि इससे मांसपेशियों की अच्छी कसरत हो जाती है। तनाव भी कम होता है। हमारी गति भी धीमी होगी, या नियंत्रित होगी, जिससे हमें सामान्य बने रहने में मदद मिलेगी।

मोटरसाइकिल की अपेक्षा साइकिल काफी हल्की होती हैं, इसे बच्चे से लेकर बुजुर्ग भी चला सकते हैं। सड़क हादसों का जोखिम भी नहीं रहता। अगर साइकिल से गिर भी जाएं तो ज्यादा चोट नहीं आती। जबकि अन्य वाहनों से सड़क हादसे गंभीर होते हैं।

साइकिल के लिए पार्किंग की समस्या नहीं है। न तो खड़ी करने के लिए और न ही सड़क पर चलाने के लिए इसे ज्यादा जगह चाहिए। इसे घर में रखा जा सकता है। जबकि कारों के लिए सड़क पर, पार्किंग में सभी के लिए जगह चाहिए,जो एक बड़ी समस्या है।

साइकिल से सड़क जाम होने की समस्या नहीं है। इसे संकरे रास्तों व गलियों में चलाया जा सकता है। अगर इसके लिए अलग से लेन हो तो, न तो यह दूसरे वाहनों की गति में रूकावट होगी और न ही साइकिल चलाने वालों को असुविधा का सामना करना पड़ेगा। साइकिल उनके लिए भी अच्छी है, जो भीड़ से बचना चाहते हैं।
सड़कों पर वाहनों का बोझ बढ़ता जा रहा है। सड़क जाम, दुर्घटनाएं, प्रदूषण की खबरें आती रहती हैं। साइकिल के चलन इन सभी में कमी आ सकती है। छोटे व बड़े कस्बों में इन्हें बढ़ावा दिया जा सकता है। साइकिल पथ की मांग भी की जा रही है।

कुल मिलाकर, साइकिल कई मायनों में उपयोगी है। सेहत की दृष्टि से तो उपयोगी है ही, प्रदूषण मुक्त भी है। इससे कई लोगों को रोजगार भी मिलता है। इसलिए हमें साइकिल की ओर मुड़ना चाहिए, लेकिन क्या हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे?


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