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भारत बंद करने वाले संविधान की जगह मनुस्मृति लाना चाहते हैं: भाकपा माले

अनुसूचित जाति/जनजाति संशोधन विधेयक के विरोध में आयोजित भारत बंद के पीछे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का हाथ होने का आरोप भाकपा ने लगाया

भारत बंद करने वाले संविधान की जगह मनुस्मृति लाना चाहते हैं: भाकपा माले
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लखनऊ। अनुसूचित जाति/जनजाति संशोधन विधेयक के विरोध में आयोजित भारत बंद के पीछे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का हाथ होने का आरोप लगाते हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) (माले) ने आजकहा कि एससी-एसटी कानून का विरोध करने वाले संविधान की जगह मनुस्मृति लाना चाहते हैं।

राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि बंद पूरी तरह फ्लाप रहा। देशव्यापी प्रतिवाद के दबाव में राजग की केंद्र सरकार भले ही उक्त कानून को उसके पुराने स्वरूप में पुनर्बहाली के लिए बाध्य हुई, लेकिन ब्राह्मणवाद के समर्थकों को यह बात गवारा नहीं हो रही है। वे देश में मनुस्मृति वाली व्यवस्था लाना चाहते हैं। आरएसएस इसकी प्रबल समर्थक है।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के थानों में दलितों की सुनवाई नहीं हो रही है। न्याय मांगने पर उन्हें फर्जी मुकदमों में फंसाया जा रहा है। हाल ही में मिर्जापुर के कोलहा गांव में जमीन पर जबरिया कब्जे का विरोध करने वाली दलित परिवार की महिलाओं पर सवर्ण सामंती दबंगों द्वारा ट्रैक्टर चढ़ा दिया गया, जिसमें एक महिला का गर्भपात हो गया। लेकिन प्रशासन में दलितों की नहीं सुनी गई और थाने में रिपोर्ट उनके खिलाफ ही दर्ज हुई। यही हाल सहारनपुर के भीम आर्मी नेता चंद्रशेखर रावण और महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव मामले में भी हुआ।

माले नेता ने कहा कि दलितों की सुरक्षा के लिये बना एससी-एसटी कानून उन्हें थाली में परोसकर नहीं दिया गया है, बल्कि उन्होंने संघर्ष कर इसे हासिल किया है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस कानून में संशोधन के बाद इसकी पुनर्बहाली भी दलितों के सड़कों पर संघर्ष के बूते हुई लेकिन ब्राह्मणवादी ताकतें दलितों-आदिवासियों को दबाकर रखना चाहती हैं। ब्राह्मणवाद से ग्रस्त सत्ता मशीनरी इस कानून पर पूरी तरह से अमल नहीं होने देना चाहती। वरना आज भी दलितों को अपने ऊपर होने वाले अनगिनत सामंती किस्म के जुल्मों में न्याय के लिए भटकना नहीं पड़ता।

उन्होने कहा कि मोदी-योगी राज में जातिवादी और साम्प्रदायिक ताकतें सर चढ़कर बोल रही हैं, ऐसे में उक्त कानून की जरूरत पहले से भी ज्यादा है। सामाजिक सदभाव भी तभी कायम हो सकता है, जब सभी सामाजिक समूहों के साथ बराबरी के स्तर पर व्यवहार हो और उनको हक मिले।



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