आयुर्वेद चिकित्सा सुविधा का नहीं मिल पा रहा लाभ
स्वास्थ्य विभाग के द्वारा आयुर्वेदिक पद्धति से मरीजो का उपचार किया जा सके, ताकि उनको किसी भी प्रकार से परेशानी न हो

जिला अस्पताल में 12 वर्ष पूर्व बने आयुषविंग का हाल बेहाल
जांजगीर। स्वास्थ्य विभाग के द्वारा आयुर्वेदिक पद्धति से मरीजो का उपचार किया जा सके, ताकि उनको किसी भी प्रकार से परेशानी न हो। इस बात को ध्यान में रखकर आयुषविंग की स्थापना की गई है, परन्तु देखरेख एवं संसाधनों के अभाव में यह सेटअप धूल खा रही है, जिसके चलते मरीजो को इसका लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। वहीं आयुर्वेद पद्धति के माध्यम से मरीजों का उपचार भी नहीं हो पाता है।
गौरतलब है कि जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल ठाकुर छेदीलाल जिला चिकित्सालय में प्रतिदिन सैकड़ों की तादाद में मरीज अपना उपचार कराने पहुंचते है, इनमें से कई मरीज तो लकवा, बवासीर, वात, कफ, पित्त सहित अन्य बीमारियों से ग्रसित रहते है। ऐसे मरीजों का उपचार आयुषविंग पद्धति से किया जाना रहता है, लेकिन इस पद्धति से उपचार करने पर जोर दिये जाने बजाय स्वास्थ्य अमला उदासीन बना हुआ है। जिला अस्पताल में मरीजों का उपचार आयुर्वेदिक पद्धति से हो इस बात को ध्यान में रखकर 12 वर्ष पूर्व 2006 में आयुषविंग की स्थापना की गई थी, जिसमें लाखों रुपए की लागत से लगाई गई मशीने धूल खा रही है, जिसके चलते आयुषविंग का लाभ मरीजों को नहीं मिल पा रहा है। आधुनिक समय को देखते हुए आज भी कई लोग आयुर्वेदिक पद्धति से अपना उपचार कराने पर भरोसा जताते है, वहीं शासन भी इस प्राचीन व कारगर पद्धति को ज्यादा से ज्यादा प्रचारित करने में जुटी है। मगर जिला अस्पताल व स्वास्थ्य अमला इस अचूक पद्धति के लिए उत्साहित नजर नहीं आ रही है। शासन के द्वारा आयुर्वेद को बढ़ावा देने के उदेश्य से गांवो में आयुर्वेद औषधालय तो खोल दिए गए है, लेकिन अस्पताल में जाकर मरीज अपना उपचार तक नहीं कराते है। गांवों में शिविरों के माध्यम से लोगों को आयुर्वेद से जोड़ने पहल की जाती है, बावजूद इसके मरीज भी जल्दी ठीक हो जाने की स्थिति को देखते हुए अंग्रेजी दवा के माध्यम से अपना उपचार कराते है। चाम्पा के बीडीएम अस्पताल की भी यही स्थिति है।
नहीं है अलग से भवन
जिला अस्पताल में आयुषविंग के संचालन के लिए अलग से भवन एवं कमरों की जरूरत पड़ती है, ताकि लकवा, गठिया, वातरोग, कफ, पित्त बवासीर सहित अन्य बीमारियों से ग्रसित मरीज का समुचित उपचार किया जा सके, लेकिन उपचार करना तो दूर की बात इसके लिए अलग से भवन की ब्यवस्था भी नही है, जिसके चलते मरीजो को इसका लाभ भी नही मिल पा रहा है।
बिजली की भी समस्या
जिला अस्पताल में आयुषविंग के संचालन के लिए मशीन तो है, लेकिन इसके लिए बिजली की ब्यवस्था नहीं है, बहुत ही आवश्कता पढ़ने पर ही कही इधर उधर ले जाकर ब्यवस्था तुरंत के लिए ही बनाई जाती है।
औषधालय का संचालन सेवको के भरोसे
जिले के कई सरकारी औषधालय आज भी सेवको के भरोसे संचािलत किया जा रहा है। वही कई औषधालयो मे ंतो फार्मासिस्ट ही औषधलय प्रभारी का कामकाज देख रहे है एैसे में औषधालय जैसे तैसे ही संचालित हो रहा है। जिसके चलते उपचार कराने पहुंचे ग्रामीणंो को आए दिन परेशानी होती है। कई जगहो पर तो केवल दवा का नाम लेने वाले का नाम आिद लिखकर ही औपचारिकता निभा दी जा रही है। ऐसे में आयुर्वेद पद्धति से उपचार कराने का सपना अभी आधा अधूरा ही नजर आ रहा है।


