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बेहद अहम चुनाव का आगाज़

543 सीटों वाली भारतीय लोकसभा के लिये जिस आम चुनाव का प्रारम्भ पहले चरण के रूप में शुक्रवार से हो रहा है

बेहद अहम चुनाव का आगाज़
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543 सीटों वाली भारतीय लोकसभा के लिये जिस आम चुनाव का प्रारम्भ पहले चरण के रूप में शुक्रवार से हो रहा है, उसे अगर आजादी के बाद का सर्वाधिक महत्वपूर्ण निर्वाचन माना जा रहा है तो वह इसलिये गलत नहीं है क्योंकि इस चुनाव के नतीजों से अनेक बातें तय होने जा रही हैं। मसलन, कि भारत में लोकतंत्र बचेगा या तानाशाही कायम हो जायेगी, देश संविधान द्वारा निर्देशित होता रहेगा या जैसा कि अप्रत्यक्ष संकेत मिल रहे हैं कि इसे परे कर दिया जायेगा; और तो और, क्या इसके बाद चुनाव होंगे भी या नहीं- जिसकी आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं? ऐसे कई सवाल हैं, कई डर हैं जिनके बीच से गुजरकर देशवासी पहले चरण के अंतर्गत 21 राज्यों की 101 सीटों पर वोट करने जा रहे हैं।

2014 तथा 2019 में बहुमत पाने वाले भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तीसरी मर्तबा सता पाने के लिये प्रयासरत हैं। इन 10 वर्षों में बेहद सुनियोजित तरीके से प्रधानमंत्री मोदी ने देश की सभी राजनैतिक व आर्थिक शक्तियों को अपने प्रभाव में ले लिया है। पहले क्त दौर (2014-19) में उनका दिया 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा दूसरे दौर (2019 से अब तक) में पहुंचकर 'विपक्ष मुक्त भारत' में बदल गया। यह नारा पहले अभियान और फिर मोदी के लक्ष्य में बदल गया है। ज़ाहिर है कि लोकतंत्र में विश्वास करने वाला कोई भी व्यक्ति विपक्ष मुक्त देश की कल्पना कर ही नहीं सकता। विपक्षी नेताओं, सांसदों, विधायकों या अन्य जनप्रतिनिधियों को डरा-धमकाकर अथवा प्रलोभन देकर भाजपा में शामिल कराना, 'ऑपरेशन लोटस' के नाम पर निर्वाचित राज्य सरकारों को गिराना या अस्थिर करना, पैसे व ताकत के बल पर उन्हें हटाकर अपनी सरकारें बना लेना भाजपा का नियमित खेल हो गया है।

भारतीय राजनीति को दूषित करने के लिये भाजपा ने धन का निर्लज्ज प्रदर्शन किया। पैसे बटोरने के लिये सरकार किस तरह से चुनावी बॉन्ड्स लाई और केन्द्रीय जांच एजेंसियों के बल पर उसने कैसे अकूत राशि बटोरी, यह भी चुनाव आते-आते साफ हो गया। इसके लिये कतिपय सिविल सोसायटियों के साथ मुख्यत: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) तथा देश के कुछ स्वतंत्र चेता वरिष्ठ वकीलों ने इस योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं डाली थीं जिसे मोदी सरकार 2018-19 में इलेक्टोरल बॉन्ड्स के नाम पर लेकर आई थी। इसके जरिये भाजपा को खूब पैसे मिले हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे 'असंवैधानिक' करार देते हुए इसे रद्द कर दिया। इस फैसले ने भाजपा के भ्रष्टाचार विरोधी होने के मुखौटे को निकाल कर फेंक दिया क्योंकि इसके बारे में कहा गया कि यह देश ही नहीं विश्व का सबसे बड़ा राजनैतिक घोटाला है।

इसने यह भी बतला दिया कि मोदी सरकार ने किस प्रकार से सत्ता का दुरुपयोग धन इक_ा करने में किया है। यह अलग बात है कि अब भी नरेन्द्र मोदी इसे एक अच्छी योजना यह कहकर साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि इसके कारण अब पता चल रहा है कि राजनीतिक दलों को पैसा कहां से मिला है। यानी कि मनी ट्रेल की जानकारी हो रही है। यह योजना भाजपा के लिये इतनी फायदेमंद साबित हुई है कि देश की सबसे बड़ी अदालत द्वारा इसे असंवैधानिक करार दिये जाने के बावजूद यह सरकार उसके नये वज़र्न पर वित मंत्रालय के जरिये काम कर रही है ताकि उसे जीतने पर तीसरे कार्यकाल में लाया जा सके।

जनता की बदहाली तथा उसके चौमुखी शोषण पर आधारित एक कठोर पूंजीवादी मॉडल भी मोदी सरकार की देन है जिसमें आर्थिक गैरबराबरी इतनी बढ़ी है जितनी कि पिछले करीब पांच दशकों में नहीं बढ़ी थी। देश के 85 करोड़ लोग 5 किलो प्रति माह राशन की लाइन में खड़े होते हैं और श्री मोदी के करीबी दो कारोबारी- गौतम अदानी व मुकेश अंबानी दुनिया के सर्वाधिक अमीर लोगों की सूची में हैं। पौना शताब्दी की भारतीयों की मेहनत व गाढ़े पसीने की कमाई से निर्मित सरकारी उपक्रम मोदी सरकार ने कुछ लोगों को औने-पौने भाव में दे दिये।

सत्ता की राह आसान करने के लिये ऐसा सामाजिक विखंडन किया है, जिसको वापस दुरुस्त करने में शायद दशकों लगें। पूरे समाज का साम्प्रदायिक विभाजन कर दिया गया है। कपड़ों से पहचानने, श्मशान-कब्रिस्तान, बजरंगबली, राममंदिर, विरोधियों को पापियों के रूप में निरूपित करते हुए चुनावों में उन्हें न भूलने जैसे नारे देकर पीएम ने देश का जो नुकसान किया है उसकी जल्दी भरपाई होने से रही। राजनैतिक लाभ उठाने भाजपा ने अगड़ों-पिछड़ों के बीच के बैर को भरपूर बढ़ाया है। अब इसी नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिये संविधान बदलने की बात हो रही है जिसमें आरक्षण की व्यवस्था नहीं होगी। इसी के लिये भाजपा 400 पार के नारे दे रही है, जिसकी तस्दीक उसके कई नेता व उम्मीदवार कर रहे हैं।

अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिये मोदी ने अपनी पार्टी के साथ संसद, नौकरशाही, निर्वाचन आयोग समेत सभी संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर कर दिया गया है। नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने तथा सरकार पर अंकुश रखने वाली ये संस्थाएं भी आजादी पाने के लिये कसमसा रही हैं। अपनी छवि बनाने तथा विपक्ष को जनता की नज़रों से गिराने के लिये मोदी ने मीडिया को भी अपने नियंत्रण में कर रखा है। पीएम के तमाम कामों को महान उपलब्धियां व देशहित में साबित करने के लिये देश की मुख्यधारा की मीडिया को काम पर लगाया गया है। उसकी सहायता आईटी सेल व पोषित ट्रोलर करते हैं जिनका काम मोदी की हर नाकामी को 'मास्टर स्ट्रोक' बतलाना है। पहले चरण से जनता को तय करना होगा कि आखिर उन्हें कैसी सरकार चाहिये।


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