Top
Begin typing your search above and press return to search.

2019 के चुनावों से पहले राजग में चेहरे' और 'सीटों' को लेकर अभी से टकराव शुरू ​​​​​​​

लोकसभा चुनाव में अभी करीब एक साल बाकी है लेकिन बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में नेतृत्व के 'चेहरे' और 'सीटों' को लेकर अभी से टकराव शुरू हो गया है

2019 के चुनावों से पहले राजग में चेहरे और सीटों को लेकर अभी से टकराव शुरू ​​​​​​​
X

पटना। लोकसभा चुनाव में अभी करीब एक साल बाकी है लेकिन बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में नेतृत्व के 'चेहरे' और 'सीटों' को लेकर अभी से टकराव शुरू हो गया है।

राजग घटक दलों में शामिल सभी पार्टियां अधिक से अधिक सीटों पर अपनी दावेदारी कर रही हैं। वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल (युनाइटेड) राज्य में खुद को 'बड़े भाई' के रूप में पेश कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर दबाव बना रही है।

जद (यू) के वरिष्ठ नेता क़े सी़ त्यागी कहते हैं, "सीटों के बंटवारे को लेकर कोई समस्या नहीं है। बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं। ऐसे में इससे कौन इंकार कर सकता है कि बिहार में नीतीश ही राजग के चेहरा हैं।"

उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा में राजग घटक दलों में जद (यू) सबसे बड़ी पार्टी है। लोकसभा चुनाव में सीटों को लेकर अभी कोई बातचीत शुरू नहीं हुई है। हमें उम्मीद है कि जब यह शुरू होगी तो इसका सकारात्मक समाधान होगा।

इधर, लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) के नेता पशुपति कुमार पारस ने स्पष्ट कहा कि जीती हुई सीटें छोड़ने का प्रश्न ही नहीं हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव में नेतृत्व को लेकर पूछे गए प्रश्न के जवाब में कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।

लोजपा के प्रमुख रामविलास के पुत्र और सांसद चिराग पासवान हालांकि लोकसभा चुनाव में नीतीश के नेतृत्व को नकारते हुए कहते हैं कि राजग की तरफ से लोकसभा का चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर ही लड़ा जाएगा। विधानसभा चुनाव का चेहरा नीतीश कुमार हो सकते हैं।

चिराग ने कहा नेतृत्व को लेकर राजनीति की जा रही है। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा बिहार में चुनाव का चेहरा सुशील मोदी और रामविलास पासवान क्यों नहीं हो सकते?

इस बीच, भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी सधे हुए अंदाज में कहते हैं कि राजग में कोई परेशानी नहीं हैं। गुरुवार शाम को भाजपा द्वारा भोज का आयोजन किया गया है जिसमें सभी घटक दल के नेता शामिल होंगे।

उन्होंने कहा, "दल मिल गए हैं तो दिल मिलने में भी परेशानी नहीं है। डबल इंजन की सरकार बिहार में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनों के चेहरे पर जनसमर्थन मांगेगी। सीटों के तालमेल में भी कोई मुश्किल नहीं होगी।"

इसमें कोई शक नहीं कि बिहार में राजग की पहली पारी में जद (यू) बड़े भाई की भूमिका में रही है। वर्ष 2009 में जद (यू) और भाजपा ने साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था, उस दौरान बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों में से जद (यू) ने 25 तो भाजपा ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था। वर्ष 2014 में परिस्थितियां बदल गई।

जद (यू) राजग से अलग होकर चुनाव मैदान में उतरी और उसे मात्र दो सीटों पर ही संतोष करना पड़ा जबकि उस चुनाव में भाजपा नेतृत्व वाली राजग ने 31 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी।

राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त का मानना है कि जद (यू) इन बयानों से राजग में दबाव बनाने की कोशिश कर रही है। जद (यू) 2009 के मुकाबले कमजोर हुई है। ऐसे में यह दवाब स्वाभाविक है। हालांकि वे यह भी मानते हैं कि परिस्थितियां अब बदल गई हैं।

वह स्पष्ट कहते हैं, " जद (यू) पहले की तरह मजबूत नहीं है और भाजपा पहले की तरह कमजोर नहीं है, जब भाजपा जद (यू) के पीछे-पीछे घूमती थी। वर्तमान परिस्थिति में जद (यू) को भी भाजपा की जरूरत है और भाजपा को भी जद (यू) की आवश्यकता है। दोनों दल पुराने गठबंधन सहयोगी रहे हैं। ऐसे में वे अवश्य कोई रास्ता निकाल लेंगे।"

दत्त कहते हैं कि जद (यू) इस दबाव के जरिए न केवल आगामी लोकसभा चुनाव में सम्मानजनक सीटों को हासिल करने के फिराक में है बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी में भी है।

बहरहाल, आज शाम राजग के 'मित्रता भोज' पर सभी की निगाहें टिकी हैं, जिसमें राजग के सभी घटक दलों को शामिल होना है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it