बवाना उपचुनाव: ग्रामीण और पूर्वांचली मतदाता तय करेंगे ए., बी., सी.
बवाना उपचुनाव के लिए बिसात बिछ चुकी है और यह चुनाव कांग्रेस के लिए एक बार फिर अवसर ला रहा है

नई दिल्ली। बवाना उपचुनाव के लिए बिसात बिछ चुकी है और यह चुनाव कांग्रेस के लिए एक बार फिर अवसर ला रहा है कि वह विधानसभा में प्रवेश कर जाए तो वहीं भाजपा अपने सदस्यों की संख्या में एक का इजाफा कर विजय रथ को आगे बढ़ाने का दंभ भर सकेगी और आम आदमी पार्टी किसी भी सूरत में इसे खेाकर यह संदेश नहीं देना चाहती है कि वह राज्य की राजनीतिक में प्रासंगिक नहीं रही। तीनों राजनीतिक दल इसे देखते हुए अपनी अपनी रणनीति भी आजमा रहे हैं। ग्रामीण और प्रवासी पूर्वांचली मतदाताओं के हाथ विजय का बटन है, इसका अंदाजा भी तीनों को बखूबी है।
वर्ष 1993 में बवाना विधानसभा के राजनीतिक फलक पर जब आई तो चांदराम ने विजय दर्ज कर यहां भाजपा का परचम लहराया। प्याज की लहर में 1998 में कांग्रेस के सुरेंद्र कुमार ने विजय दर्ज की और उसके बाद वह लगातार तीन बार विजयी रहे। इस दौरान 52 गांव वाले इस इलाके की भौगोलिक स्थिति बदली, अनधिकृत कालेानियों, जेजे कालेानियों का विस्तार हुआ और परिसीमन के बाद भी इलाके में बदलाव आए। वर्ष 2013 में सुरेंद्र कुमार को भाजपा के घुग्गन सिंह ने झटका दिया और आम आदमी पार्टी को भी पटखनी देते हुए उन्होंने विधानसभा की सदस्यता हासिल कर ली। लेकिन 2015 में चुनाव में आम आदमी पार्टी ने प्रत्याशी बदलकर वेदप्रकाश पर दांव लगाया और उन्होंने50557 मतों से घुग्गन सिंह को चित्त कर दिया। सुरेंद्र कुमार को 2013 और 2015 के चुनाव में तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा।
लोकसभा चुनाव में हालात फिर बदले और भाजपा के उदित राज ने यहां नरेंद्र मोदी लहर में जीत दर्ज की और यह सिलसिला 2017 के निगम चुनाव में भी रहां जहां भाजपा ने चार में से तीन वार्ड पर कब्जा जमाया। परिणाम इसलिए भाजपा में उत्साह भर रहे थे कि जाट बहुल ग्रामीण इलाकों में मतदाता भाजपा से खफा बताए जा रहे थे। लेकिन आप ने जो सीट जीती वह 264 मतों से रही लेकिन भाजपा ने अधिकतम चार हजार मतों से यहां विजय दर्ज की। जाति की राजनीति में सुरक्षित सीट होने के चलते यहां 27 प्रतिशत अनुसूचित जाति के मतदाताओं में जाटव, बाल्मीकि समाज की अधिक आबादी है। ओबीसी वर्ग के मतदाताओं की तादाद भी लगभग 27 प्रतिशत है और इसके बाद 20 प्रतिशत जाट और 12 प्रतिशत मुस्लिम व 10 प्रतिशत वैश्य मतदाता हैं।
आप को उम्मीद है कि मुस्लिम, वैश्य, जेजे कालेानी, अनधिकृत कालोनियों में उसे लाभ मिलेगा तो वहीं कैलाश गहलोत को मंत्रिमंडल में शामिल करने के बाद जाट मतदाताओं में भी उसे बढ़त मिल सकती है। इसके लिए रणनीति भी बनाई गई है तो वहीं घुग्गन सिंह को आप ने स्वीकारा है और भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र सांसद प्रवेश वर्मा, वैश्य नेता विजेंद्र गुप्ता को कमान दी है।
वर्मा परिवार को यहां ग्रामीण इलाकों में सम्मान मिलता है तो वहीं सुरेंद्र कुमार विकास और कांग्रेस के सहारे हैं।
बरवाला गांव के कई प्रमुख कांग्रेसी नेता आप का दामन थाम चुके हैं इससे उन्हें नुकसान है लेकिन कांग्रेस को उम्मीद है कि मुस्लिम, जाट, अनधिकृत व जेजेकालोनियों में आप का करिश्मा खत्म हो चुका है इससे वह जीत दर्ज कर सकती है।
रोचक तथ्य है कि सभी तीनों प्रमुख उम्मीदवार चुनावी खिलाड़ी हैं क्योंकि रामचंद्र 2008 में यहां बसपा से लड़कर हार चुके हैं तो सुरेंद्र व वेदप्रकाश पूर्व विधायकों की सूची में दर्ज हैं। अंतिम फैसला 2.88 लाख से अधिक मतदाता, 23 अगस्त को 379 बूथ पर लिखेंगे कि उन्हें ए (आप), बी (भाजपा), सी (कांग्रेस) कौन पसंद है।
बवाना में जातिगत समीकरण...
अनुसूचित जाति-27 प्रतिशत-64 हजार से अधिक मतदाता
ब्राह्मïण-10 प्रतिशत-23 हजार से अधिक मतदाता
जाट-20 प्रतिशत-47 हजार से अधिक मतदाता
वैश्य- 04 प्रतिशत- 10 हजार लगभग
मुस्लिम-12 प्रतिशत-29 हजार लगभग
ओबीसी-27 प्रतिशत-64 हजार से अधिक मतदाता
(सभी आंकड़े विभिन्न स्रोत व आकलन पर आधारित)
- अनिल सागर


