राष्ट्रभक्ति की सीमाओं से परे सौदेबाजी
बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया। पुरानी कहावत है, लेकिन जब तक राजनीति और कारोबार कायम हैं

बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया। पुरानी कहावत है, लेकिन जब तक राजनीति और कारोबार कायम हैं, यह बात भी सोलह आने सच ही रहेगी। भाजपा तिरंगा यात्रा निकालकर राष्ट्रवाद की नयी हुंकार भर रही है (हालांकि उसी तिरंगे से नाक पोंछने और यात्रा के बाद सड़क पर पड़े रहने के वीडियो सामने आए हैं), ऑपरेशन सिंदूर का सारा श्रेय मोदीजी के खाते में जमा किया जा रहा है। इसके साथ ही पाकिस्तान का साथ देने वाले अजरबेजान और तुर्किए का भी बड़े पैमाने पर बहिष्कार हो रहा है। लेकिन उधर नरेन्द्र मोदी के करीबी उद्योगपति मुकेश अंबानी डोनाल्ड ट्रंप से कतर में मुलाकात करते हैं।
इस बीच ट्रंप का एक और भारत विरोधी बयान सामने आ गया है, जिसमें वो एप्पल के सीईओ टिम कुक का नाम लेकर कह रहे हैं कि मैंने टिम से कहा कि वे भारत में आईफ़ोन बनाना बंद करें। उन्होंने कहा कि भारत को अपने हितों का ध्यान ख़ुद रखने दें।
भारत का दुश्मन देश जिस तरह के बयान दे सकता है, लगभग उसी तरह के बयान डोनाल्ड ट्रंप लगातार दिए जा रहे हैं। अमेरिका में बिना पूरे कागजात के रह रहे भारतीयों को जिस तरह हथकड़ी के साथ अपने सैन्य विमान में भेजा गया, वो दृश्य जनता नहीं भूली है। इसके बाद उन्होंने नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान उनके सामने ही कहा था कि वे भारत पर उतना ही टैरिफ लगाएंगे, जितना भारत लगाता है। इस धमकी के बाद उन्होंने भारत पर दबाव डाला कि वह अपना टैरिफ कम करे। टैरिफ के अलावा भारत और पाकिस्तान को लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने बयान दिया कि दोनों देशों के नेता उनके अच्छे मित्र हैं, दोनों देशों को ट्रंप ने एक पलड़े पर रखा। जबकि भारत पाक समर्थित आतंकवाद से पीड़ित देश है। ऑपरेशन सिंदूर के बीच में ही ट्रंप ने ऐलान कर दिया कि उन्होंने दोनों देशों के नेताओं से लंबी चर्चा की और युद्धविराम करवा दिया है। इसके बाद पाकिस्तान की तरफ से हमले हुए, लेकिन ट्रंप की नजर में फिर भी दोनों देश एक समान ही रहे।
सऊदी अरब और कतर के दौरे पर भी ट्रंप ने युद्धविराम के लिए व्यापार का दबाव डालने वाला बयान दिया और भारत ने इसे नहीं नकारा। एक के बाद एक सारे भारत विरोधी बयानों के बाद अब ताजा बयान एप्पल के भारत में निवेश को रोकने के लिए ट्रंप ने दिया है। ट्रंप ने एक तरफ टिम कुक से कहा कि वे भारत में आईफोन बनाना बंद करे, दूसरी तरफ ये भी कहा कि 'अगर आप भारत की मदद करना चाहते हो, तो ठीक है, लेकिन भारत दुनिया के सबसे ज्यादा टैरिफ़ वाले देशों में से एक है। वहां बेचना मुश्किल है। भारत ने हमें एक प्रस्ताव दिया है, जिसमें उन्होंने हमारे सामानों पर कोई टैरिफ़ नहीं लगाने का वादा किया है।'
गौर करने वाली बात है कि भारत क्या करने जा रहा है, या उसने क्या प्रस्ताव दिया है, यह बात नुक्कड़ की चाय दुकान पर होने वाली चर्चा में किसी आम शख्स ने नहीं कही है, बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति की तरफ से ये बयान आए हैं, इसके बाद भी भारत सरकार कुछ कह क्यों नहीं रही। इन बयानों की सच्चाई सामने क्यों नहीं रख रही, यह समझ से परे है।
ट्रंप लगातार भारत विरोधी बयान दे रहे हैं और मुकेश अंबानी उन्हीं ट्रंप से मिलने कतर पहुंच रहे हैं, लेकिन इस पर न कोई देशभक्ति का सवाल उठ रहा है, न कोई विरोध हो रहा है। जबकि याद रहना चाहिए कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने युद्ध में साथ देने के लिए न केवल अमेरिका, चीन, तुर्किए, अजरबेजान, यूएई और सऊदी अरब का जिक्र किया था, बल्कि कतर को भी शुक्रिया कहा था। तुर्किए और अजरबेजान का विरोध तो भारत के लोगों ने करना शुरु कर दिया है। खासकर पर्यटन उद्योग में यह विरोध देखा जा रहा है, लेकिन ऐसा ही है तो फिर कतर, सऊदी अरब, चीन, अमेरिका के लिए वैसी नाराजगी क्यों नहीं देखी जा रही। क्या देशभक्ति चयनित तरीकों से की जा सकती है।
कतर में ट्रंप और अंबानी समूह के बीच कौन सी ट्रेड डील होती है, यह तो पता चल ही जाएगा, लेकिन इधर देश के बाकी व्यापारियों को भी देखना होगा कि वे तो तुर्की और अजरबेजान से व्यापार को रोक लेंगे, लेकिन क्या सरकार इन दोनों देशों के साथ संबंध तोड़ रही है या अभी सिर्फ हवा बांधी जा रही है। क्योंकि तुर्की और अजरबैजान के बहिष्कार को लेकर जब कांग्रेस से प्रेस कांफ्रेंस में सवाल हुआ तो जयराम रमेश या पवन खेड़ा ने इसका कोई जवाब नहीं दिया, इस पर बीजेपी नेता अमित मालवीय ने एक्स पर लिखा, 'देश पाकिस्तान को तुर्की और अजरबैजान के समर्थन से गुस्से में है। इन देशों के साथ व्यापार और पर्यटन के बहिष्कार की मांग बढ़ रही है, और आम नागरिक एकजुटता दिखा रहे हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी खुद को भारतीय लोगों की भावनाओं के साथ नहीं जोड़ पा रही। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि यह जनता से इतनी दूर है कि अपने राजनीतिक अंत और पूरी तरह से अलग-थलग पड़ने के लायक है।'
अमित मालवीय की पोस्ट पर पवन खेड़ा ने लिखा चूंकि यह सवाल भाजपा के एक आधिकारिक व्यक्ति उठा रहा है, इसलिए प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री देश के सामने यह स्पष्ट करें कि क्या सरकार ने तुर्की का राजदूतावास बंद कर दिया है, और उस देश से सारे कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्ते तोड़ दिए हैं।
किस देश के प्रति क्या रिश्ते रखने हैं, यह निर्णय सरकार को लेना होता है, विपक्ष को नहीं। सरकार तुरंत स्थिति स्पष्ट करे।
वैसे सरकार ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के ग्लोबल टाइम्स और शिन्हुआ न्यूज के सोशल मीडिया अकाउंट्स के साथ तुर्किए के ब्रॉडकास्टर टीआरटी वर्ल्ड के एक्स अकाउंट को भी बंद कर दिया था, लेकिन ये प्रतिबंध 24 घंटों में ही हट भी गए, जिस पर कांग्रेस ने सवाल किए हैं कि यह फैसला क्यों पलटा गया।
तो अभी सरकार की तरफ से स्पष्ट नहीं है कि तुर्किए और अजरबेजान के साथ आगे कैसे संबंध रखे जाएंगे, लेकिन राष्ट्रवाद की नयी लहर में व्यापारिक विरोध शुरु हो गया है। इसकी चपेट में भी मामूली कारोबारी ही आएंगे, क्योंकि बड़े उद्योगपतियों की सौदेबाजी तो राष्ट्र और राष्ट्रभक्ति की सीमाओं से परे जाकर होती है।


