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बांग्लादेश: हिंसा और कर्फ्यू के बीच कोटा सिस्टम पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

बांग्लादेश में लगातार हो रही हिंसा, देशभर में लगे कर्फ्यू और "शूट-ऑन-साइट" के आदेश के बीच 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में लागू कोटा व्यवस्था पर बड़ा फैसला सुनाया

बांग्लादेश: हिंसा और कर्फ्यू के बीच कोटा सिस्टम पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
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बांग्लादेश में लगातार हो रही हिंसा, देशभर में लगे कर्फ्यू और "शूट-ऑन-साइट" के आदेश के बीच 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में लागू कोटा व्यवस्था पर बड़ा फैसला सुनाया.

बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने कोटा सिस्टम से जुड़े मामले में आदेश दिया है कि सरकारी नौकरियों में 93 फीसदी भर्तियां योग्यता आधारित होंगी.

समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, बाकी सात प्रतिशत भर्तियों में से पांच फीसदी बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार के लिए, एक प्रतिशत जनजातीय समुदायों और एक प्रतिशत विकलांगों या खुद को थर्ड जेंडर मानने वाले लोगों के लिए आरक्षित होंगी.

समूचे बांग्लादेश में कर्फ्यू, 900 से ज्यादा भारतीय छात्रों की सुरक्षित वापसी

फैसला सुनाते हुए अदालत ने प्रदर्शनकारी छात्रों से कक्षाओं में लौटने की भी अपील की. जब सुप्रीम कोर्ट यह फैसला सुना रहा था, उस वक्त इमारत के बाहर सेना का एक टैंक तैनात था. पूरे देश में आज भी कर्फ्यू लागू है. समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक, पुलिस को "शूट-ऑन-साइट" यानी, देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं.

"जारी रखेंगे प्रदर्शन"

प्रदर्शनकारी छात्रों के एक समूह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उनकी मांगों पर आंशिक रूप से ही अमल हुआ. ऐसे में वे अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे. प्रदर्शनों के मुख्य आयोजक 'स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन' के एक प्रवक्ता ने नाम ना छापने की शर्त पर एएफपी से कहा,"हम तब तक प्रदर्शन करना खत्म नहीं करेंगे, जब तक कि सरकार हमारी मांगों के मुताबिक आदेश नहीं जारी करती."

बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में 56 फीसदी सीटें आरक्षित थीं. इसमें 30 प्रतिशत स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार के लिए, 10 प्रतिशत महिलाओं, 10 फीसदी पिछड़े जिलों के लोगों, पांच प्रतिशत अल्पसंख्यकों और एक फीसदी कोटा विकलांगों के लिए था. इस तरह भर्तियों में केवल 44 फीसदी सीटें ही बाकियों के लिए खाली थीं. छात्रों में सबसे ज्यादा रोष 'स्वतंत्रता सेनानी' की श्रेणी के लिए है. प्रदर्शनकारी छात्र इस कोटा को पूरी तरह खत्म करने की मांग कर रहे हैं.

कोर्ट के पिछले आदेश पर भड़का विद्रोह

साल 2018 में शिक्षकों और छात्रों ने कोटा व्यवस्था के खिलाफ चार महीने तक प्रदर्शन किया. हिंसक झड़पों और प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई आलोचना के बाद सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर कोटा सिस्टम को खत्म करने की घोषणा की. इसके अंतर्गत स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवारजनों के लिए आरक्षित 30 फीसदी कोटा को भी खत्म करने की बात कही गई.

इसके खिलाफ हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. इसी साल 5 जून को हाई कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि वह संबंधित सर्कुलर को रद्द करे और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए चले आ रहे 30 फीसदी कोटा को कायम रखे. यह न्यायिक घटनाक्रम बांग्लादेश में ताजा तनाव भड़कने की बड़ी वजह बना. अब सुप्रीम कोर्ट की अपील संबंधी शाखा ने निचली अदालत का यह फैसला रद्द कर दिया है.

16 जुलाई से भड़की हिंसा

यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब समूचे बांग्लादेश में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हो रहे हैं. 22 जुलाई को सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर दी गई है. लगातार हो रही हिंसा और अराजक स्थितियों के बीच अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा है कि वह बांग्लादेश में नियुक्त अपने कुछ राजनयिकों और उनके परिवारों को बाहर निकालना शुरू करेगा.

छात्रों के नेतृत्व में हो रहा प्रोटेस्ट 16 जुलाई से ही काफी हिंसक रूप ले चुका है. राजधानी ढाका समेत सभी 64 जिलों में सेना को तैनात किया गया है. हिंसा और उपद्रव के बीच 19 और 20 जुलाई की दरमियानी रात से ही पूरे देश में कर्फ्यू लगा है. पहले इसकी मियाद रविवार, 21 जुलाई की दोपहर तक थी, लेकिन अब यह अवधि बढ़ा दी गई है. गृहमंत्री असदुज्जमां खान ने कहा कि कर्फ्यू तब तक जारी रहेगा, जब तक हालात सुधर नहीं जाते.

उन्होंने एएफपी से बातचीत में आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारी, सरकार को निशाना बनाते हुए विनाशक गतविधियां कर रहे हैं. असदुज्जमां खान ने मुख्य विपक्षी दल 'बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी' (बीएनपी) और इस्लामिक जमात पर हिंसा भड़काने का भी आरोप लगाया. पुलिस ने बीएनपी के कई सदस्यों को गिरफ्तार किया है. 'स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन' के भी कई सदस्यों की गिरफ्तारी हुई. हालांकि, खुद शेख हसीना की आवामी लीग पार्टी के युवा संगठन 'बांग्लादेश छात्र लीग' (बीसीएल) के लोगों पर भी हिंसा भड़काने और पुलिस के साथ मिलकर प्रदर्शनकारियों को पीटने के आरोप हैं. आलोचकों का कहना है कि सरकार अपने कार्यकर्ताओं पर नर्म है.

इंटरनेट पर रोक, खबरें बाहर आने में दिक्कत

पुलिस और सत्तारूढ़ आवामी लीग के समर्थकों के साथ प्रदर्शनकारियों की झड़पों में मारे गए लोगों की संख्या पर कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं आया है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने स्थानीय अखबारों के हवाले से मृतकों की संख्या कम-से-कम 114 बताई है. वहीं, असोसिएटेड प्रेस ने कहा है कि 100 से ज्यादा लोग मारे गए हैं. समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, अब तक कम-से-कम 151 लोग मारे जा चुके हैं.

बांग्लादेश: कोटा विरोधी प्रदर्शनों में 50 की मौत, हिंसा जारी

मृतकों और घायलों की संख्या पर प्रशासन ने कोई आधिकारिक संख्या नहीं बताई है. देश में इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं पर लगी अस्थायी रोक के कारण पुख्ता समाचार बाहर आने में मुश्किल हो रही है.

बढ़ गया है विरोध का दायरा

खबरों के मुताबिक, शुरुआती प्रदर्शन जहां मुख्य रूप से कोटा विरोधी थे, वहीं अब इनका स्वभाव भी बदलता दिख रहा है. समाज के अन्य कई वर्गों के लोग प्रोटेस्ट में शामिल हो गए हैं. प्रदर्शनकारियों और विरोधियों का आरोप है कि सरकार अपनी इच्छा के मुताबिक, न्यायपालिका को इस्तेमाल करती है. एएफपी ने बताया कि प्रधानमंत्री शेख हसीना सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले ही जनता को संकेत दे चुकी थीं कि अदालत, छात्रों की मांगों के मुताबिक फैसला सुनाएगी.

मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि हसीना सरकार सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने और आलोचकों-विपक्षियों को दरकिनार करने के लिए सरकारी संस्थानों का बेजा इस्तेमाल करती हैं. इनमें विपक्षी कार्यकर्ताओं की न्यायिक प्रक्रिया से इतर जाकर हत्या करवाने के इल्जाम भी शामिल हैं. ऐसे में अब प्रदर्शन सरकार विरोधी रुख अपनाते दिख रहे हैं. प्रदर्शनकारी देशभर में लगाए गए कर्फ्यू को भी चुनौती दे रहे हैं.

20 जुलाई को ढाका में ऐसी ही एक भीड़ में शामिल 24 साल के हसीबुल शेख ने एएफपी से कहा, "अब यह सिर्फ छात्रों के अधिकार ही बात नहीं रही. हमारी मांग स्पष्ट है कि सरकार इस्तीफा दे." प्रोटेस्ट में शामिल हसनत अब्दुल्ला नाम के एक छात्र ने प्रदर्शनों के दौरान मारे गए लोगों के संदर्भ में एपी से कहा, "कई लोग मारे गए हैं. सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए."

जानकारों का मानना है कि ताजा प्रदर्शन शेख हसीना सरकार के लिए सबसे गंभीर चुनौती बन गई है. वह 2009 से सत्ता में हैं. इसी साल जनवरी में उन्होंने लगातार चौथी बार चुनाव जीता. चुनाव से पहले विपक्षी दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ बड़े स्तर पर कार्रवाई हुई थी. मुख्य विपक्षी दल बीएनपी ने चुनाव का बहिष्कार किया था. पर्यवेक्षकों ने चुनाव की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए थे.


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