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केले में अब नहीं फैलेगा पनामा विल्ट ,मिलेंगे स्वस्थ पौधे

केले की फसल को बुरी तरह प्रभावित करने वाले फरसेरियम विल्ट अथवा पनामा रोग से उत्तर प्रदेश और बिहार में फसल को व्यापक नुकसान से बचाने के लिए प्रयोगशालाओं में टिशू कल्चर से रोग मुक्त पौधे तैयार किये जाये

केले में अब नहीं फैलेगा पनामा विल्ट ,मिलेंगे स्वस्थ पौधे
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नयी दिल्ली । पूरी दुनिया में केले की फसल को बुरी तरह प्रभावित करने वाले फरसेरियम विल्ट अथवा पनामा रोग से उत्तर प्रदेश और बिहार में फसल को व्यापक नुकसान से बचाने के लिए प्रयोगशालाओं में टिशू कल्चर से रोग मुक्त पौधे तैयार किये जायेंगे।

टोपिकल रेस 4 (टीआर 4) के कारण केले की फसल में होने वाली पनामा बीमारी से पूरी दुनिया प्रभावित है । अमेरिका के कोलंबिया में हाल में केले की फसल में इस बीमारी के फैलने के बाद राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया है। वहां की मिट्टी में इस फफूंद के पाये जाने की पुष्टि की गयी है।

कोलंबियाई कृषि संस्थान के अनुसार इस बीमारी की रोकथाम के लिए पुलिस और सेना के अलावा आस्ट्रेलिया , नीदरलैंड , ब्राजील और मैक्सिको के विशेषज्ञों को लगाया गया है। कृषि विशेषज्ञ और वायु सेना रोगग्रस्त फसल की आवाजाही की रोक पर 24 घंटे नजर रख रही है। कोलंबिया केले के उत्पादन के लिए जाना जाता है और यहां से कई देशों को इसका निर्यात किया जाता है।

यह बीमारी जमीन में विकसित होने वाले फफूंद से फैलती है। फंफूद केले की जड़ के माध्यम से उसके तने में पहुचंता है तथा पानी और पोषक तत्वों के प्रवाह को रोक देता है। इस बीमारी का प्रकोप बढ़ने पर पहले पत्ते पीले होकर गिर जाते हैं और बाद में पौधा ही गिर जाता है। रोगग्रस्त टिशू कल्चर सामग्री और बाढ़ के कारण भी यह बीमारी तेजी से फैलती है। करीब 20 साल पहले दक्षिण पूर्व एशिया में इस बीमारी का पता चला था।

इस बीमारी से केले के बाग पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं और किसानों को भारी अर्थिक नुकसान होता है। इसके फैलने पर केले के तने के अंदरुनी हिस्सा जो सामान्यत: सफेद होता है वह भूरा, लाल या काला हो जाता है और तने को इतना कमजोर कर देता है कि वह खड़ा नहीं रह सकता है। इसका फफूंद जिस खेत में आ जाता है तो वह दशकों इसमें बना रहता है तथा रासायनिक कीटनाशकों का भी इस पर प्रभाव नहीं होता है।

लखनऊ स्थित केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने इस समस्या के समाधान के लिए किसानों को रोगमुक्त टिशू कल्चर से तैयार पौधे उपलब्ध कराने के लिए लखनऊ के ही सात्विक बायोटेक के साथ करार किया है। आईसीएआर फूसीकॉन्ट तकनीक से नर्सरी स्तर पर ही पनामा रोग पर नियंत्रण पाया जा सकेगा । संस्थान के निदेशक शैलेंद्र राजन, शोध सलाहकार समिति के अध्यक्ष बी एस चुंदावत , सदस्य के के जिंदल , एन एस पसरीचा , प्रेम शंकर सिंह आदि ने इस तकनीक की गहन समीक्षा करने के बाद यह करार किया है।

डॉ शैलेन्द्र राजन ने बताया कि नयी तकनीक के माध्यम से बीमारी की रोकथाम प्रभावी तरीके से की जा सकती है। इस बीमारी पर प्रभावी नियंत्रण के लिए प्लांट मैटिरियल का गुणवत्तापूर्ण होना जरूरी है। केले के टिशू कल्चर से तैयार पौधों की भारी मांग है जिसे इस करार से पूरा किया जा सकेगा। नयी तकनीक का उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों के समक्ष प्रदर्शन किया गया है। इस तकनीक से टिशू कल्चर वाले पौधे में बायो हार्डनिंग किया जाता है जिससे वह पनामा रोग से सुरक्षित रहता है।

बिहार के वैशाली ,पूर्णिया , कटिहार , खगड़िया तथा कई अन्य जिलों में व्यापक पैमाने पर केले के बाग है । इन जिलों के कई स्थानों में पनामा रोग की समस्या पायी गयी थी जिसका लम्बे समय तक अध्ययन किया गया । वैशाली जिले में केले की मालभोग प्रजाति को इस बीमारी से दशकों से भारी नुकसान हुआ था। नयी तकनीक से किसानों और नर्सरी कर्मियों को जागरुक किया जा सकेगा और गुणवत्तपूर्ण पौधों की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी।


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