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कुप्रबंधन-उपेक्षा का परिणाम है बालासोर ट्रेन हादसा

ओडिशा के बालासोर जिले में शुक्रवार की शाम हुई जिस भीषण ट्रेन दुर्घटना में करीब 300 लोगों ने जानें गंवाईं और लगभग एक हजार घायल हुए हैं

कुप्रबंधन-उपेक्षा का परिणाम है बालासोर ट्रेन हादसा
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ओडिशा के बालासोर जिले में शुक्रवार की शाम हुई जिस भीषण ट्रेन दुर्घटना में करीब 300 लोगों ने जानें गंवाईं और लगभग एक हजार घायल हुए हैं, वह प्रथम दृष्टया मानवीय भूल तो है लेकिन इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि रेल सेवाओं की जैसी उपेक्षा हो रही है और पूरी प्रणाली कुप्रबंधन का जिस तरह से शिकार हो गयी है, उसी का यह परिणाम है जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ा है।

मृतकों के परिवारों को मुआवजे, घायलों को मदद राशि, उपचार की उपलब्धता तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा घटनास्थल का दौरा कर 'दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा'- की दी जाने वाली चेतावनी तात्कालिक कदम तो हो सकते हैं परन्तु इनसे न तो रेल सेवा को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी और न ही भविष्य में ऐसे हादसे रोके जा सकेंगे। ज़रूरत रेलवे को लेकर केन्द्र सरकार के नज़रिये और तदनुरूप नीतियां बनाने की है। ट्रेनों को आम आदमी की पहुंच से निकालकर विशिष्टजनों के परिवहन का माध्यम बनाने वाला दृष्टिकोण जब तक नहीं बदलता, रेलवे को बदतर दिन देखने और उसकी बदहाली से कोई नहीं रोक सकता।

नैतिकता अथवा उत्तरदायित्व के नाम पर अपने इस्तीफे से साफ इंकार करते हुए रेलवे मंत्री अनिल वैष्णव ने यह ज़रूर बतलाया है कि दुर्घटना की स्वतंत्र व उच्चस्तरीय कमेटी जांच करेगी। कहना न होगा कि दोनों ही कोई अनोखी बात नहीं है। इतने बड़े हादसे की जांच तो होनी ही थी और त्यागपत्र देने का भी सवाल नहीं उठता क्योंकि अब न तो वैसी संवेदनशीलता रह गयी है और न ही जिम्मेदारी की भावना, जैसी कि लालबहादुर शास्त्री जैसे लोगों में देखी गयी थी जब उन्होंने ऐसी ही एक दुर्घटना से व्यथित होकर पद छोड़ दिया था। खैर, वह अलग ज़माना था और दूसरी तरह के ही लोग थे।

देश की अब तक की सबसे बड़ी दुर्घटनाओं में से एक इस भयानक हादसे में तीन ट्रेनों की भिड़न्त हुई है जो अपने आप में घोर लापरवाही बरतने और प्रणाली को नाकाम साबित करने के लिये काफी है। कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रैक क्रमांक 2 से मेनलाइन की बजाय लूपलाइन पर चली गयी और वहां खड़ी मालगाड़ी से जा टकराई। उसका इंजिन मालगाड़ी पर चढ़ गया। इससे मालगाड़ी के कुछ डिब्बे ट्रैक नंबर 2 और 3 पर बिखर गये। परिणामस्वरूप ट्रैक नं. 2 से गुजर रही बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट ट्रेन के आखिरी 3 कोच कोरोमंडल एवं मालगाड़ी के बिखरे डिब्बों से टकरा गये। कोरोमंडल को गलत सिग्नल देना भी हादसे का कारण बतलाया जा रहा है।

तकनीकी जांच जो भी हो, तय मानिये कि इस हादसे के लिये किसी छोटे कर्मचारी या जूनियर अधिकारी को जिम्मेदार मानकर उसके खिलाफ कोई छोटी-बड़ी कार्रवाई होगी तथा इस हादसे की जांच रिपोर्ट कुछ टिप्पणियों व ताकीदों के साथ बंद कर दी जायेगी। फिर सब कुछ पूर्ववत हो जायेगा। अपनी दुर्दशा के साथ रेल व्यवस्था ऐसे ही चलती रहेगी और बेबस नागरिक अपनी जान हथेलियों पर लेकर यात्राएं करते रहेंगे क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प नहीं है। इस नैराश्य व व्यथा का कारण है केन्द्र सरकार का रेल सेवाओं के प्रति नज़रिया।

वर्तमान सरकार का निजीकरण के प्रति अनुराग इस दुर्घटना के केन्द्र में है। पिछले कुछ समय से रेलवे को घाटे में लाने का सुनियोजित षडयंत्र पिछले कुछ समय से रचा गया है। रेलवे की अकूत सम्पत्ति और फायदे की असीमित गुंजाईश निजी व्यवसायियों को हमेशा से आकर्षित करती रही है लेकिन जनसामान्य के लिये इसकी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए पिछली सरकारों ने इसे पूर्णत: सार्वजनिक उपक्रम बनाये रखा था।

सर्वाधिक रोजगार का सृजन करने वाली भारतीय रेल देश की जीवन रेखा भी है जिसे अपने कारोबारी मित्रों को सौंपने के लिये इसे मोदी सरकार द्वारा नुकसान में लाया जा रहा है। इसके चलते जहां स्टेशनों को निजी हाथों में देने का चलन बढ़ा वहीं 3.5 लाख से ज्यादा रिक्त पदों को भरा नहीं जा रहा है। लोको पायलेटों समेत सभी कर्मचारियों से उनकी क्षमता से ज्यादा काम लिया जा रहा है।

कोरोना के नाम पर वरिष्ठ नागरिकों को दी जाने वाली छूट समाप्त कर दी गयी है। बुलेट, तेजस व तथा वंदे भारत जैसी महंगी ट्रेनों पर सरकार का ज्यादा ध्यान व दिलचस्पी है जबकि आवश्यकता आम लोगों के लिये रेल सेवाओं को सस्ती, आरामदायक तथा सुरक्षित करने की है। ट्रेन परिचालन को सुरक्षित रखने के नाम पर लागू अत्याधुनिक तकनीक 'कवच' भी इस दुर्घटना में नाकाम साबित हुआ है।

सरकार की वरीयता मालवाहक ट्रेनों की आवाजाही की है, जबकि होनी चाहिये यात्री ट्रेनें जिनके फेरे कम हो रहे हैं और वे सुस्त चाल चलाई जा रही हैं ताकि लोग दूसरे माध्यमों का इस्तेमाल करें। नुकसान में आने से स्टेशनों व ट्रेनों को निजी हाथों में देना आसान होता है जो इस हादसे के मूल में है।


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