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झारखंड में भाजपा के आसरे बाबूलाल का डेब्यू, चंपई का दांव या सियासी ख्वाब?

झारखंड की राजनीति के लिए शुक्रवार का दिन बेहद खास रहा। रांची के शहीद मैदान में आयोजित 'मिलन समारोह' में पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड राज्य की अस्मिता के लिए 'शहीद' होने का जज्बा रखने वाले चंपई सोरेन ने भाजपा का दामन थामा

झारखंड में भाजपा के आसरे बाबूलाल का डेब्यू, चंपई का दांव या सियासी ख्वाब?
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रांची। झारखंड की राजनीति के लिए शुक्रवार का दिन बेहद खास रहा। रांची के शहीद मैदान में आयोजित 'मिलन समारोह' में पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड राज्य की अस्मिता के लिए 'शहीद' होने का जज्बा रखने वाले चंपई सोरेन ने भाजपा का दामन थामा।

तीखी धूप में समर्थकों की तरफ से 'चंपई सोरेन जिंदाबाद' और 'टाइगर जिंदा है' की हो रही लगातार नारेबाजी ने झारखंड की राजनीति का तापमान भी बढ़ा दिया।

मंच पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान चंपई सोरेन के साथ एक विशेष शख्स भी दिखे, जिनका सियासी कद भी अचानक बढ़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। उनका नाम है बाबूलाल सोरेन। उनकी आज तक पहचान चंपई सोरेन के पुत्र के रूप में थी।

झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले चंपई सोरेन का भाजपा में आना राजनीतिक रूप से सधा कदम माना जा रहा है। झारखंड की राजनीति में 'कोल्हान टाइगर' के नाम से मशहूर 68 वर्षीय चंपई सोरेन सरायकेला विधानसभा क्षेत्र से छह बार विधायक रहे हैं। पांच महीने तक सीएम रहने के अलावा वह राज्य सरकार में तीन बार मंत्री भी रहे हैं।

लगभग 45 वर्षों से झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ राजनीति करने वाले चंपई सोरेन पार्टी के प्रमुख शिबू सोरेन के अनन्य सहयोगी भी रहे हैं। अब, अपने सियासी वजूद के आसरे चंपई सोरेन पुत्र बाबूलाल सोरेन के हाथ में विरासत सौंपने को तैयार दिख रहे हैं।

झारखंड की राजनीति समझने वालों का मानना है कि चंपई सोरेन ने भाजपा को अपने बेटे के लिए ‘लॉन्च पैड’ के रूप में चुना है। ऐसा इसलिए कि झारखंड में झामुमो के बाद भाजपा उनके लिए फिट बैठती है। दोनों पार्टियां अकेले दम पर सत्ता में आ सकती है। जबकि, कांग्रेस या आजसू के लिए ऐसा करना फिलहाल राजनीति के हिसाब से नामुमकिन है। दूसरी ओर आजसू तो खुद एनडीए में शामिल है।

झारखंड की राजनीति को सालों से देखने वाले जानकार आनंद कुमार ने बताया कि राजनीति में बाबूलाल सोरेन का बड़ा कद नहीं है। पिता उनके दिग्गज नेता रहे हैं। बाबूलाल सोरेन उनके जरिए अपनी सियासी जमीन की तलाश पूरी करना चाहते हैं। बाबूलाल सोरेन घाटशिला से चुनाव लड़ना चाहते हैं और उनकी सियासी लॉन्चिंग का जरिया चंपई सोरेन बनना चाहते हैं। यही कारण है कि बीते कुछ महीने से बाबूलाल सोरेन को पिता के साथ कई मौकों पर देखा जा रहा है।

उन्होंने आगे बताया कि चंपई सोरेन को जिस कोल्हान का टाइगर कहा जाता है, उस प्रमंडल में 14 विधानसभा सीट आती है। इस प्रमंडल में चंपई सोरेन की मजबूत पकड़ है। अगर आगामी विधानसभा चुनाव में चंपई सोरेन कोल्हान में 10 से ज्यादा सीट भाजपा के लिए जीतने में सफल हो जाते हैं तो इससे बाबूलाल सोरेन के लिए भाजपा में अपने कदम को ज्यादा मजबूती से टिकाने में काफी मदद मिलेगी। यह संभव भी माना जा रहा है, क्योंकि, 2019 के विधानसभा चुनाव में चंपई सोरेन ने झामुमो के लिए कुछ ऐसा किया भी था।


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