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अयोध्या, वाराणसी, पुरी व कुंभ का जीडीपी में अहम योगदान

मैत्री कल्चरल इकोनॉमी समिट-2024 का आयोजन रविवार को नई दिल्ली के ली मेरिडियन होटल में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ

अयोध्या, वाराणसी, पुरी व कुंभ का जीडीपी में अहम योगदान
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नई दिल्ली। मैत्री कल्चरल इकोनॉमी समिट-2024 का आयोजन रविवार को नई दिल्ली के ली मेरिडियन होटल में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस सम्मेलन का आयोजन मैत्रीबोध परिवार द्वारा किया गया। इसमें केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, मैत्रेय दादाश्रीजी और गोपाल कृष्ण अग्रवाल का मार्गदर्शन मिला। इस अवसर पर संस्कृति और अर्थव्यवस्था के बीच के गहरे संबंधों पर चर्चा हुई।

मुख्य अतिथि कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने उद्घाटन सत्र में अपने विचार साझा किए। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी इस मौके पर सांस्कृतिक आर्थिक शासन के महत्व पर प्रकाश डाला। अन्य वक्ताओं में मित्र पर्ण, गोपाल कृष्ण अग्रवाल और मैत्रेय दादाश्रीजी ने संस्कृति और अर्थव्यवस्था के संयोजन की आवश्यकता पर बल दिया।

केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि मैत्रीबोध परिवार ने कल्चरल इकोनॉमी समिट का आयोजन करके एक नई चर्चा की शुरुआत की है। भारत की सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था का आरंभ हमारे वेद-पुराणों से हुआ है। नरेंद्र मोदी सरकार भी अयोध्या में राम मंदिर, वाराणसी में बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर और अन्य मंदिरों का जीर्णोद्धार करके इसे बढ़ावा दे रही है। कुंभ मेले जैसे आयोजनों से सुरक्षा, पर्यटन, स्थानीय रोजगार और व्यापार को बढ़ावा मिलता है, इससे सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था देश की जीडीपी के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है।

मैत्रेय दादाश्रीजी ने कहा, "संस्कृति और अर्थव्यवस्था का तालमेल सतत विकास का आधार है। हम एक ऐसे भविष्य की कल्पना करते हैं, जहां आध्यात्मिक और आर्थिक समृद्धि साथ-साथ बढ़े।"

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा, "आर्थिक योजनाओं के साथ सांस्कृतिक विरासत को जोड़ना हमारी परंपराओं को संरक्षित करता है और समग्र प्रगति का मार्ग भी बनाता है। आज की चर्चाओं ने दिखाया कि कैसे हम एक मजबूत और समावेशी इकोनॉमिक इकोसिस्टम बना सकते हैं।"

सम्मेलन में त्योहार और टेम्पल इकोनॉमिक्स, सस्टेनेबल इकोसिस्टम और कल्चरल एक्टिविटीज के आर्थिक संबंध जैसे विषयों पर चर्चा की गई। प्रमुख विचारकों ने बताया कि सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं का उपयोग सतत विकास और समृद्धि के लिए कैसे किया जा सकता है।


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