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कचना स्कूल में जनजागरण अभियान

जनजागरण अभियान के अंतर्गत शास. माध्यमिक शाला कचना में आयोजित सभा में समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा- कुछ लोग अंधविश्वास के कारण  हमेंशा शुभ-अशुभ के फेर में पड़े रहते है

कचना स्कूल में जनजागरण अभियान
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रायपुर। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति द्वारा चलाये जा रहे जनजागरण अभियान के अंतर्गत शास. माध्यमिक शाला कचना में आयोजित सभा में समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा- कुछ लोग अंधविश्वास के कारण हमेंशा शुभ-अशुभ के फेर में पड़े रहते है, कुछ बिल्ली के रास्ता काटने को अशुभ मानते है तो कुछ कौंआ दिखने को, तो कुछ बाहर जाते समय पीछे से टोकने को अशुभ मानते है।

लेकिन यह सब हमारे मन का भ्रम है। न ही बिल्ली के रास्ता काटना अशुभ है न ही कौंआ दिखना, न ही बाहर जाते समय टोकना। शुभ-अशुभ सब हमारे मन के अंदर ही है। किसी भी काम को यदि सही ढंग से किया जाये, मेहनत, ईमानदारी से किया जाये तो बिल्ली, कौंआ, टोका-टाकी में कोई नुकसान नहीं पहुंचता।

मनुष्य आंकड़ों के हिसाब से भले ही इक्कीसवी सदी में पहुंच गया है, विज्ञान के नवीनतम तकनीक मोबाइल, टी.वी., तेज वाहनों का उपयोग कर रहा है लेकिन समाज में अभी भी कई मामलों में अठारहवी सदी की मान्यताएं व कुरीतियां जड़े जमायी हुई है जिसके कारण जादू, टोना, टोनही, बलि व बाल विवाह जैसी परंपरायें व अंधविश्वास आज भी वजूद में है जिससे प्रतिवर्ष अनेक मासूम जिंदगियां तबाह हो रही है।

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा समाज में महिलाओं को सम्मान देने की परंपरा रही है, जो लोग धार्मिक कार्यो में बालिकाओं की देवी स्वरूप पूजा, उपासना करते है उनमें से कुछ ही बाद में क्षणिक अंधविश्वास व उन्माद में बैगाओं के बहकावे में आकर निर्दोश महिलाओं को टोनही के आरोप में प्रताड़ित करते है। यहां तक कि जान से मारने में भी नहीं हिचकते, जबकि किसी भी महिला में ऐसी शक्ति नहीं होती जो कथित जादू-टोने से किसी का अहित कर सके। वह तो अपना बचाव भी नहीं कर पाती। किसी भी धर्म ने निर्दोश व्यक्ति की हत्या का समर्थन नहीं किया है बल्कि अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। गांव में जन प्रतिनिधियों व सरपंच की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि अंधविश्वास व कुरीतियां गांव में न पनपने दें।


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