आधिकारियों ने बिल्डरों से सांठ-गांठ करके प्राधिकरण को लगाया चूना
सात हजार करोड़ रुपए के कर्ज में डूबे प्राधिकरण को प्रति माह 70 करोड़ रुपए ब्याज का भुगतान करना पड़ रहा है।

ग्रेटर नोएडा। सात हजार करोड़ रुपए के कर्ज में डूबे प्राधिकरण को प्रति माह 70 करोड़ रुपए ब्याज का भुगतान करना पड़ रहा है। कर्ज बोझ तले डूबे प्राधिकरण को उबारने के लिए अधिकारियों ने भी कोई कदम नहीं उठाया, बल्कि इन अधिकारियों ने बिल्डरों के साथ सांठ-गांठ करके प्राधिकरण को और रसातल में लेकर गए। प्राधिकरण के अधिकारी बिल्डरों से बकाया किश्त वसूलने के बजाय उन्हें नियम विपरीत शून्य काल अवधि का लाभ देते रहे। इसकी वजह से बिल्डरों पर छह हजार करोड़ रुपए से ज्यादा प्राधिकरण पर देनदारी बनती है।
पिछले 14 साल में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की आर्थिक स्थिति सबसे ज्यादा बिगड़ी। 2007 से 2012 के बीच ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने सिर्फ बिल्डरों को भूखंड आबंटित किया। खास बात यह है कि भूखंड आबंटन में बिल्डरों को इतनी सहूलियत दी गई कि जिसके कारण प्राधिकरण को भूखंड आबंटित होने के बाद बिल्डरों से पैसा नहीं मिल पाया। प्राधिकरण को जमीन अधिग्रहण के बाद किसानों को मुआवजा देने के लिए बैंकों से लोन पड़ा। 2012 के बाद प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होने के बाद प्राधिकरण बिल्डरों पर शिकंजा नहीं कस पाया।
बिल्डरों ने शासन तक अपनी पहुंच का इस्तेमाल करके प्राधिकरण को पैसा भुगतान करने के बजाय शून्य अवधि का उठाते रहे। प्राधिकरण की स्थिति आज यह है कि बिल्डरों का करीब सात से आठ हजार करोड़ रुपए बकाया है। अकेले 16सौ करोड़ रुपए आम्रपाली का बकाया है। आम्रपाली के ज्यादातर प्रोजेक्ट अधूरे है। निवेशक बिल्डर व प्राधिकरण के बीच पिस रहे हैं। चाई फाई में एक बिल्डर का प्रोजेक्ट पूरा हो गया है। उसने करीब 12 फ्लैट व विला का निर्माण किया है। बिल्डर करीब 150 करोड़ रुपए बकाया है।
इसके बाद प्राधिकरण ने बिल्डर को कई बार शून्य अवधि का लाभ दिया। उसके फ्लैट की रजिस्ट्री होती रही। उसने 12सौ में से करीब 1093 फ्लैटों की रजिस्ट्री करा चुका है। अब 103 फ्लैटों की रजिस्ट्री होनी है। प्राधिकरण ने अब डेढ़ सौ करोड़ रुपए का बकाया के चलते उसके रजिस्ट्री पर रोक लगा दी है। कुछ बिल्डरों ने लीज रेंट भी जमा नहीं किया प्राधिकरण ने ऐसे बिल्डरों को कम्पलीशन सर्टीफिकेट जारी कर दिया। जिसके कारण प्राधिकरण को आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है।


