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सावधान! पुलिस माननीयों की सेवा में मस्त है, बेटियां असुरक्षित और जनता त्रस्त है!
मध्यप्रदेश के जिस शहर को लोग पॉलिटिकल राजधानी कहते हैं वह अपराध की भी राजधानी बन गया है

मध्यप्रदेश के जिस शहर को लोग पॉलिटिकल राजधानी कहते हैं वह अपराध की भी राजधानी बन गया है। यह शहर है ग्वालियर। यकीन मानिए यहां न बुजुर्ग सुरक्षित हैं न बेटियां। पुलिस जनता सुरक्षा के कितने भी बड़े दावे कर ले लेकिन शहर में बढ़ती अपराधों की घटनाओं ने पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं। शहर में बेटी बचाओ का सन्देश देते मूर्ति लगे चौराहे पर ही एक बेटी की गोली मारकर नृशंस हत्या कर दी जाती है। उस बेटी की जिसे कुछ दिन पहले ही एक सेमिनार में शहर के पुलिस कप्तान सुरक्षा का भरोसा दिलाते हैं।
लेकिन 48 घंटे के अंदर ही पुलिस कप्तान का सुरक्षा का दावा और एक बेटी का पुलिस पर भरोसा टूट जाता है। जिस सिरफिरे ने गोली चलाई उसको ऐसा जनून था कि दुपहिया पर साथ जा रही दो सहेलियों में जिसे मारना था उसकी जगह दूसरी को मार दिया। एक तरफा प्रेम में नाकाम सिरफिरे को सोनाक्षी से नफ़रत थी ( क्यूंकि जो हुआ उसे प्रेम नहीं कह सकते) सोनाक्षी ने अपनी मां के साथ माधवगंज थाना जाकर शिकायत भी की थी। लेकिन जैसा कि हर आमजन जानता है थाना पुलिस का रवैया। वही इस मामले में होता है। मां बेटी को थाने से भगा दिया जाता है।
हालाकि उस दोषी एसआई प्रमोद शर्मा को निलंबित कर और जांच के आदेश देकर पुलिस कप्तान साहब ने अपनी पीठ थपथपाने की जुगत लगा ली है। शायद इस उम्मीद में भी साहब हो कि हत्यारे पकड़े जाएं और शहर के कुछ कथित बुद्धिजीवी माला पहनाऊं गैंग से बधाई का सिलसिला शुरू हो सके। लेकिन अभी चुनौती ख़तम नहीं हुई है। सिरफिरा हत्यारा पुलिस की पकड़ से दूर है। सोनाक्षी की जगह वह अक्षया की हत्या कर चुका है। संभवतः अभी भी सोनाक्षी उसके निशाने पर हो। फिलहाल सोनाक्षी का परिवार बेहद डरा व सहमा हुआ है और पुलिस लोकेशन के लड्डू के साथ खबरों में बनी हुई है।
अपराधी इस शहर में किस कदर बेखौफ है उसकी हकीकत यहां हो रहे हर अपराध की घटना बयां कर रही है। डबरा से एक कारोबारी के बेटे चिराग शिवहरे का अपहरण हो जाता है। परिवार बेटे से संपर्क न होने पर थाना पहुंच पुलिस से निवेदन करता है। पुलिस त्वरित कार्यवाही की जगह सुबह तक इंतजार की बात कह उन्हें टरका देती है। किसी माननीय का कुत्ता होता तो पूरा पुलिस महकमा हरकत में होता। माफ करें लेकिन मुझे यह लिखते हुए कतई शर्म नहीं आ रही कि आम आदमी के बेटे की कीमत किसी माननीय के कुत्ते जितनी थोड़े ही है। इस घटना में हत्यारे ने किस क़दर शहर की सुरक्षा व्यवस्था को ठेंगा दिखाया है आप यकीन नहीं करेंगे। हत्यारा चिराग को डबरा से ग्वालियर ले आता है। उसकी हत्या करता है। उसकी लाश कार में लेकर 5 घंटे शहर में घूमता है।
कलेक्ट्रेट कार्यालय के समीप लाश को कंडो का इंतजाम कर जला देता है। दूसरे दिन फिर घटनास्थल पर जाता है, अस्थियों को इकट्ठा कर नाले में बहा देता है। और बेखौफ शहर में घूमता रहता है। शहर के किसी चेकिंग प्वाइंट या किसी पुलिस गश्त कि निगाह उस पर नहीं पड़ती। खैर इस हत्या का आरोपी अंश जादौन को पुलिस ने पकड़ लिया है। लेकिन घटना से पहले पकड़ लिया होता तो एक परिवार का चिराग बुझने से बच जाता। क्या पता कि कहीं ऐसा हुआ हो कि जिस समय चिराग की हत्या हुई हो, गश्त पर निकली पुलिस कहीं अवैध वसूली में व्यस्त हो। या हो सकता है कि किसी माननीय की सेवा में तमगा पाने की जुगत लगा रही हो!
केवल कुछ अपराधों कि वजह से इस शहर को अपराधों कि राजधानी नहीं कहा जा रहा न हीं एक दो लापरवाही पर पुलिस को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। शहर में अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। गुंडे खुले आम गोली चलाकर रंगदारी कर रहे हैं, दहशत फैला रहे हैं। खुले आम लूट कि घटनाएं हो रहीं है। हत्या जैसे जघन्य अपराध से अख़बार भरे पड़े हैं तो छुट पुट घटनाओं की तो लंबी फेहरिस्त है।
ऐसा नहीं है कि पुलिस कुछ नहीं करती। अभी हाल ही में एक कलेक्टर साहब की पत्नि से हुई चैन स्नेचिंग की घटना में आरोपी पकड़ा गया है और चैन भी बरामद करली गई है। अब आप यह न सोचे कि कलेक्टर साहब का मामला है तो पुलिस ने प्रार्थमिकता से काम किया हो। बेटी अक्षया के दोनों हत्यारों पर इनाम घोषित कर दिया है, पूरे दस हजार। जनकगंज थाने में एक बुजुर्ग महिला को घर में घुसकर पीटने का मामला दर्ज हुआ है। मामला हाईलाइट में नहीं है। इसलिए न कोई इनाम न कोई मुस्तैदी। ऐसे सैंकड़ों मामले थानों में आते है।
कोई बढ़ी घटना के इंतजार तक फाइल में रहते हैं। अब कोई किसी माननीय का खास हो तो बात अलग है। जब प्रदेश के मुखिया आते हैं तब पुलिस की मुस्तैदी देखिए कि ऐसा इंतजाम किया जाता है कि काला झंडा दिखाना तो दूर कोई काला परिंदा भी न घुस सके। लेकिन कुछ युवकों ने वहां भी पुलिस सुरक्षा में सेंध लगा दी और बेहट में मुख्यमंत्री को काले झंडे दिखा दिए। इस घटना का बोझ भी जनता पर बढ़ गया। अब पुलिस का फोकस माननीय की सुरक्षा पर पहले से भी ज्यादा हो गया। वैसे पुलिस की भी अपनी समस्या है।
पुलिस बल कम है। और जो है उसमे भी कई वीआईपी ड्यूटी में व्यस्त हैं। इसके ऊपर ये शहर पॉलिटिकल कैपिटल भी बना हुआ है। रोज बड़े बड़े माननीयों का आना लगा रहता है। उनकी सेवा व सुरक्षा पुलिस की प्रार्थमिकता है। आने वाले समय में मलाईदार पद का रास्ता भी माननीय की सेवा पथ से गुजरता है। क्या शहर की जनता खुद के लिए भी ऐसी सुरक्षा की कल्पना कर सकती है? या पॉलिटिकल कैपिटल होने की वजह से माननीयों की सुरक्षा पुलिस की प्रार्थमिकता होने का नुकसान इस शहर की जनता उठा रही है?
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