सूत्र संतति यानी 'सूत की निरंतरता' के जरिए वस्त्रों की विविध परंपराओं को साथ लाने का प्रयास
'सूत्र संतति' का शाब्दिक अर्थ - 'सूत की निरंतरता' है। सूत की इस निरंतरता को आजादी के अमृत महोत्सव से जोड़ा गया है

नई दिल्ली। 'सूत्र संतति' का शाब्दिक अर्थ - 'सूत की निरंतरता' है। सूत की इस निरंतरता को आजादी के अमृत महोत्सव से जोड़ा गया है। इसके लिए भारतीय स्थानीय किस्मों जैसे कंडू और काला कपास, शहतूत और जंगली रेशम, ऊंट और भेड़ की ऊन, बकरी और याक के बाल को शामिल किया गया हैं। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने इन वस्त्रों की विविध परंपराओं को एक साथ लाकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत के जन्म के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक प्रदर्शनी 'सूत्र संतति आयोजित की है। प्रदर्शनी के शीर्षक के रूप में, यह भारतीय संस्कृति और समाज में चल रहे संवादों का एक रूपक है, जो इसके विकास को आकार देता है और अतीत को भविष्य के साथ जोड़ता है। इस प्रदर्शनी में देशभर के 75 प्रमुख कारीगरों, शिल्पकारों, डिजाइनरों और कलाकारों के 100 से अधिक वस्त्र प्रदर्शित किए जा रहे हैं।
यह प्रदर्शनी लवीना बालडोटा द्वारा क्यूरेट की गई है। इसमें शिल्प कौशल और पारिस्थितिक संरक्षण को मुख्य विशेषता के तौर पर दशार्या जा रहा है। हाथ से बुनाई, कढ़ाई, रेसिस्ट-रंगाई, छपाई, पेंटिंग और एप्लिक की प्रक्रियाओं के साथ-साथ सूत और फैब्रिक के अन्य रूपों के साथ बनाए गए वस्त्र भी देखने के लिए रखे गए हैं। इन्हें बनाने में लगे रेशों में स्थानीय किस्में जैसे कंडू और काला कपास, शहतूत और जंगली रेशम, ऊंट और भेड़ की ऊन, बकरी और याक के बाल शामिल हैं। प्रदर्शनी में प्रदर्शित सामग्रियों का उद्देश्य, भारत के आत्म-मूल्य और निहित सामूहिक, सहयोगी प्रयासों जैसे राष्ट्र को परिभाषित करने में जैविक और धीमी उपभोक्तावाद के आदशरें को बढ़ावा देना है, जो ऐसे लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए आवश्यक हैं।
संस्कृति मंत्रालय और राष्ट्रीय संग्रहालय ने अभेराज बालडोटा फाउंडेशन के सहयोग से देश में वस्त्र की विविध परंपराओं को एक साथ लाकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत के जन्म के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक प्रदर्शनी 'सूत्र संतति' का आयोजन किया। यह प्रदर्शनी 20 सितंबर, 2022 तक दिल्ली में जारी रहेगी। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के सचिव गोविंद मोहन ने प्रदर्शनी का उद्घाटन किया।


