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सोनम के बहाने स्त्री अधिकारों को कुचलने की कोशिश

इंदौर के नवविवाहित जोड़े राजा और सोनम रघुवंशी का मामला पिछले कुछ दिनों से लगातार सुर्खियों में है

सोनम के बहाने स्त्री अधिकारों को कुचलने की कोशिश
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- सर्वमित्रा सुरजन

इंदौर के नवविवाहित जोड़े राजा और सोनम रघुवंशी का मामला पिछले कुछ दिनों से लगातार सुर्खियों में है। पहले इस जोड़े के मेघालय में लापता होने की खबर मिली। पुलिस ने जांच की तो एक घाटी में राजा का शव मिला, जबकि सोनम की कोई खबर नहीं थी। लेकिन फिर अचानक सोनम उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के एक ढाबे में आधी रात को पहुंची और फिर वहीं से फोन पर अपने परिजनों से बात की। पुलिस ने सोनम को हिरासत में लिया, क्योंकि उसे शक था कि सोनम ने ही राजा की हत्या करवाई है। मेघालय पुलिस ने पूरी जांच की और इस निष्कर्ष पर पहुंची कि यह प्रेम त्रिकोण का मामला था।

इंदौर के हनीमून केस पर सोशल मीडिया में एक भयावह टिप्पणी पढ़ने मिली। लिखा था कि औरत को आजादी देने का अंजाम देख लिया। अब समझ में आया कि पहले औरतों पर अंकुश लगाकर क्यों रखा जाता था।

दरअसल यह उसी मनुवादी सोच से निकला विचार है जिसमें औरत को पहले पिता, फिर पति और बाद में बेटे के आश्रित रखा जाता है। महिला का अपना स्वतंत्र अस्तित्व न हो, यह बात पुरुष सत्तात्मक समाज के लिए एकदम उपयुक्त रहती है। क्योंकि जहां स्वतंत्रता रहेगी, वहां अपनी जिम्मेदारी खुद लेने का जज्बा भी दिखाया जाएगा, साथ ही अपने लिए अधिकार भी मांगे जाएंगे। यह सारी बातें अधिकतर पुरुषों के लिए दुस्वप्न है कि उनके सामने महिला इस तरह की बराबरी दिखाए। समाज में इसी बात को सामान्य मान लिया गया है कि पुरुष स्त्री का सम्मान तो करे, लेकिन अपने से निचले पायदान पर रखकर। अगर स्त्री को बराबरी पर रखा जाएगा तो फिर वह और आगे निकलने की ख्वाहिश रखेगी, ये डर पितृसत्तात्मक समाज की संरचना में गूंथ दिया गया है। यही डर हनीमून केस में बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है।

इंदौर के नवविवाहित जोड़े राजा और सोनम रघुवंशी का मामला पिछले कुछ दिनों से लगातार सुर्खियों में है। पहले इस जोड़े के मेघालय में लापता होने की खबर मिली। पुलिस ने जांच की तो एक घाटी में राजा का शव मिला, जबकि सोनम की कोई खबर नहीं थी। लेकिन फिर अचानक सोनम उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के एक ढाबे में आधी रात को पहुंची और फिर वहीं से फोन पर अपने परिजनों से बात की। पुलिस ने सोनम को हिरासत में लिया, क्योंकि उसे शक था कि सोनम ने ही राजा की हत्या करवाई है।

मेघालय पुलिस ने पूरी जांच की और इस निष्कर्ष पर पहुंची कि यह प्रेम त्रिकोण का मामला था। ऐसा नहीं है कि इस देश में प्रेम त्रिकोण के मामले पहले हुए ही नहीं, या उनमें हत्या जैसा अतिरेक भरा कदम नहीं उठाया गया हो। लेकिन अक्सर इनमें स्त्री पीड़ित रहती थी, उसे मारा जाता था, तो इसमें समाज को कुछ असामान्य नहीं लगा।

अब बीते कुछ समय से लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि पत्नी ने पति की हत्या करवाई है, जिन्हें समाज अब अपने लिए बड़ी चेतावनी की तरह देख रहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के डेटा और विभिन्न राज्य क्राइम रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले पांच सालों में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार जैसे पांच राज्यों में कुल 785 ऐसी घटनाएं दर्ज की गई हैं, जहां पत्नियों ने अपने पतियों की हत्या की या हत्या करवाई है। हालांकि कितने पतियों ने इसी तरह अपनी पत्नियों का कत्ल किया या करवाया होगा, इसके आंकड़े नहीं हैं। दहेज हत्याओं के आंकड़े जरूर दर्ज किए जाते हैं। वर्ष 2017 से 2021 के बीच ही देशभर में 35,493 महिलाओं की मौत दहेज हत्या के कारण हुई, यानी हर दिन कम से कम 20 वधुएं मारी गई हैं। दहेज हत्या में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और राजस्थान देश में अग्रणी रहे हैं।


कायदे से जितनी चिंता 785 मौतों पर की जा रही है, उतनी ही 35 हजार मौतों पर भी होनी चाहिए। लेकिन समाज यहां भी भेदभाव का नजरिया रखता है। मरने वाली स्त्रियां हैं, तो यह दुखद है, सामाजिक समस्या भी है, लेकिन चेतावनी की बात नहीं है। लेकिन मरने वाले पुरुष हैं तो फिर सारा सामाजिक विमर्श ही बदल जाता है। असल में वैवाहिक संबंध की यह परिणति पूरे समाज के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। समाजशास्त्रियों को अब विवाह संस्था पर नए सिरे से अध्ययन की जरूरत है कि आखिर इसमें कहां चूक हो रही है कि एक पक्ष इस सीमा तक पहुंच जाए कि अपने जीवनसाथी की हत्या कर दे।

सोनम रघुवंशी पर आरोप अभी सिद्ध नहीं हुआ है, इससे पहले कुछ प्रकरण ऐसे सामने आए हैं, जिनमें महिलाओं ने अपने पुरुष साथी के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी। जाहिर है ये जघन्य अपराध है और उसे इसी नजरिए से देखा जाना चाहिए। हत्या की जो सजा पुरुष के लिए होती है, वही स्त्री के लिए भी होती है। मगर जिन मामलों में महिलाएं दोषी होती हैं, उसके लिए पूरे स्त्री समाज को जिम्मेदार ठहराना क्या उचित है। लेकिन ऐसा लगता है मानो स्त्रियों को फिर से बंधन में डालने के लिए मौकों को तलाशा जा रहा है। हनीमून केस या नीले ड्रम में पति की लाश जैसे प्रकरण इन मौकों को बना रहे हैं। यहां गौर करने वाला एक पहलू यह है कि जो इंसान पेशेवर अपराधी नहीं होते, वे किस तरह इतने भयावह योजनाबद्ध तरीकों से ऐसी हत्याओं को अंजाम देते हैं, इसके पीछे कौन से मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारण हैं, इनकी भी पड़ताल होनी चाहिए। लेकिन अफसोस है कि इन घटनाओं को केवल स्त्री बनाम पुरुष के खांचे में फिट कर देखा जाता है।

सोनम रघुवंशी मामले में मीडिया की भूमिका पर भी विचार होना चाहिए। पहले अपराध कथाएं मनोहर कहानियों जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित होती थीं और घरों पर अमूमन उन्हें बच्चों से दूर रखा जाता था कि ऐसी बातों का बुरा असर उनके नाजुक मन पर पड़ता है। लेकिन अब मुख्यधारा और सोशल दोनों तरह के मीडिया में यही प्रकरण छाया हुआ है। मुख्यधारा के मीडिया में अपराध की खबरों के लिए अलग बुलेटिन होता है, लेकिन जब देश-समाज के अन्य जरूरी मुद्दों से ध्यान भटकाना हो तो ऐसी खबरें चटखारों के साथ प्रस्तुत करना फायदेमंद होता है। मीडिया के माइक्स शिलांग के जिस गेस्ट हाउस में सोनम-राजा रघुवंशी ठहरे थे, वहां से लेकर सोनम के कथित मित्र राज कुशवाहा के घर तक ठूंसे जा चुके हैं। एक वीडियो आया है जिसमें राज कुशवाहा की मां अपील कर रही है कि पत्रकार उनके घर के भीतर इस तरह न आएं, लेकिन टीआरपी के गिद्धों की दृष्टि अपने शिकार पर लगी हुई है। इसी मीडिया ने सोनम को पुलिस के कहने के पहले ही अपराधी साबित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी। जब राजा रघुवंशी की मां कह रही थी कि जांच पूरी होने दी जाए, हमें नहीं लगता कि सोनम ने ऐसा कुछ किया होगा, तब भी मीडिया सोनम को अपराधी बना चुका था। मीडिया ट्रायल का यह सिलसिला देश में लगातार जारी है और इस पर कोई अंकुश नहीं लग रहा यह चिंता की बात है।

उधर सोशल मीडिया पर चटखारों के साथ इस प्रकरण पर रील्स, मीम्स न जाने क्या-क्या परोसा जा रहा है। कोई सलमान खान का उदाहरण दे रहा है कि इसलिए भाई अकेले रहते हैं, कोई हम दिल दे चुके सनम के दृश्य दिखा रहा है। एक गंभीर घटना पर ऐसा ओछा रवैया दिखा रहा है कि समाज से संवेदनशीलता कितनी तेजी से खत्म होती जा रही है। खुद राजा रघुवंशी की बहन, जो कि सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर कही जाती है, उसने राजा की शादी की तैयारियों के कई वीडियो और रील्स पोस्ट किए, साथ ही उसके साथ पार्श्व में संगीत देकर अपने दिवंगत भाई को याद किया। एक बहन ने अपने भाई को असमय खोया है, यह बड़ा दुख है, लेकिन क्या इस मौके पर भी सोशल मीडिया को जरिया बनाकर भावानएं प्रकट की जानी चाहिए, यह सोचने वाली बात है। तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स स्त्री स्वतंत्रता को लेकर की गई भद्दी टिप्पणियों से भरे हुए हैं, जिन्हें देखकर चिंता होती है कि स्त्री अधिकारों के लिए जो अथक संघर्ष किया गया है, कहीं इन घटनाओं की आड़ लेकर उसे खारिज न किया जाए।

आखिरी बात, सोनम से मिलकर लौटे उसके भाई गोविंद ने राजा की मां से गले लगकर दुख प्रकट किया और पूरे परिवार से माफी मांगते हुए कहा कि उनकी बहन ने गलत किया है, मगर मैं अब से आपके परिवार का हिस्सा हूं। राजा की मां ने भी कहा है कि इसमें गोविंद की कोई गलती नहीं है। अमूमन ऐसे प्रकरण के बाद दो परिवारों में आजीवन कड़वाहट कायम हो जाती है। यहां आगे क्या होगा, यह कहा नहीं जा सकता। मगर इस समय जो बड़प्पन, माफी मांगना और माफ करने की उदारता दिखाई गई है, वह समाज में आगे अच्छा होने की उम्मीद बंधाती है।


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