Top
Begin typing your search above and press return to search.

मैंगलोर से इंदौर तक स्त्रियों को बांधने की कोशिश

मध्यप्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर में पिछले दिनों एक अजीब वाक़या हुआ

मैंगलोर से इंदौर तक स्त्रियों को बांधने की कोशिश
X

- पलाश सुरजन

मौजूदा वक़्त में धर्म और संस्कृति को लेकर दुराग्रह देश में बढ़ता जा रहा है, उससे लगता है कि देर-सबेर स्त्रियों पर बंधन बढ़ेंगे ही नहीं, वे पहले से ज़्यादा मजबूत भी होंगे और येन केन प्रकारेण उन्हें जायज भी ठहरा दिया जायेगा। लेकिन यह विश्वास किया जा सकता है कि स्त्रियों ने पितृसत्ता की बाधाओं को पार कर थोड़ी-बहुत जो जगह अपने लिये बनाई है, वे उसे यूं ही नहीं जाने देंगीं।

मध्यप्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर में पिछले दिनों एक अजीब वाक़या हुआ। यहां एक बुजुर्ग को ने एक कैफ़े को आग के हवाले कर दिया। कैफ़े संचालक की शिकायत गिरफ़्तार किये गये इस शख्स ने पुलिस को जो कारण बताया, वह बड़ा ही हास्यास्पद है। उसने कहा कि वह कई दिनों से देख रहा था कि कैफ़े में लड़कियां आती हैं, सिगरेट खरीदती हैं और वहीं खड़े होकर धुआं उड़ाती हैं। यूं खुलेआम लड़कियों के सिगरेट पीने से उसे सख्त ऐतराज़ था और इसी बात के चलते उसने सोचा कि न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। बस फिर उसने कैफ़े में आग लगा दी। इस मामले ने कोई डेढ़ दशक पहले मैंगलोर में हुई उस घटना की याद दिला दी जिसमें हिंदूवादी संगठन श्रीराम सेने के 40 से भी अधिक कार्यकर्ताओं ने एक पब में जबरदस्ती घुसकर वहां मौजूद लड़कियों के साथ बदसलूकी की थी, यहां तक कि उन्हें ज़मीन पर पटक भी दिया था। इस घटना के बाद श्रीराम सेने के मुखिया प्रमोद मुथालिक ने कहा था, 'जिसने भी यह किया है उसने अच्छा काम किया है। लड़कियों का पब में जाना स्वीकार्य नहीं है। इसलिए, सेना के सदस्यों ने जो भी किया वह सही था।'

ये दोनों मामले बताते हैं कि पिछले डेढ़ दशक में गंगा से लेकर कावेरी तक में चाहे जितना पानी बह गया हो, स्त्रियों को लेकर भारतीय समाज का रवैया जस का तस है। लगभग हर परिवार ये चाहता है कि उसकी बेटी कल्पना चावला बने लेकिन लक्ष्मण रेखा के भीतर रहकर सीता भी बनी रही। इस अपेक्षा के मुताबिक न चलने पर न जाने कितनी लड़कियों की इज्ज़त की खातिर हत्या कर दी जाती है, जात-बिरादरी से वे बाहर निकाल दी जाती हैं, पैतृक संपत्ति से उन्हें बेदखल कर दिया जाता है और कहीं तो उन्हें मरा हुआ तक घोषित कर दिया जाता है। अंकिता भंडारी जैसे काण्ड समाज की इस धारणा को मजबूती देते हैं कि लड़कियां अगर बाहर हैं और अकेली भी, तो वे सुरक्षित रह ही नहीं सकतीं। लेकिन इसी समाज में वो लोग भी हैं जो बलात्कारियों के समर्थन में जुलूस निकालते हैं, दुष्कर्म के आरोपी नेता के लिए तख्तियां लेकर खड़े हो जाते हैं कि हमारा विधायक निर्दोष है। ऐसी दोहरी सोच वाले समाज को लड़कियों का अकेले रहना, अकेले घूमना-फिरना, अपनी मर्जी से अपना साथी चुनना या फिर अविवाहित रह जाना, पान के ठेले पर खड़े होना या जाम लेकर चियर्स कहना भला कैसे रास आयेगा।

कुल मिलाकर परिवार या खानदान की इज्ज़त लड़की को ही बचाना है और संस्कृति की रक्षा का दारोमदार भी उसी पर है। उसके सिगरेट-शराब पीने से ये सब चीज़ें खतरे में आ जाती हैं और अगर उसने ये सबके सामने कर लिया तो शायद प्रलय ही आ जायेगी। खुलेपन के सारे मज़े लड़के लूटें लेकिन लड़कियों को उनका हिस्सा न मिले - श्रीराम सेने जैसे संगठन से लेकर एक अकेले बुजुर्ग तक ये सुनिश्चित करने के लिये तैयार बैठे हैं। दोपहिया वाहन बनाने वाली एक कंपनी ने लड़कियों को लक्ष्य करते हुए नारा दिया था - व्हाई शुड बॉयज़ हैव ऑल द फ़न यानी लड़के ही सारा मज़ा क्यों लें। इंदौर के बुजुर्ग ने जो किया वह महज एक सनक नहीं है, बल्कि एक मानसिकता है जो कहती है - व्हाई शुड गर्ल्स हैव फ़न एट ऑल ! स्त्रियों पर जैसी बंदिशें अफ़गानिस्तान में तालिबानी हुकूमत ने लगाई हैं या ईरान में जिस तरह अपनी आज़ादी के लिये महसा अमीनी जैसी स्त्रियों को अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ी है, इस मानसिकता के चलते वैसी परिस्थितियां अपने यहां भी बन सकती हैं।

ऐसा इसलिए भी कि मौजूदा वक़्त में धर्म और संस्कृति को लेकर दुराग्रह देश में बढ़ता जा रहा है, उससे लगता है कि देर-सबेर स्त्रियों पर बंधन बढ़ेंगे ही नहीं, वे पहले से ज़्यादा मजबूत भी होंगे और येन केन प्रकारेण उन्हें जायज भी ठहरा दिया जायेगा। लेकिन यह विश्वास किया जा सकता है कि स्त्रियों ने पितृसत्ता की बाधाओं को पार कर थोड़ी-बहुत जो जगह अपने लिये बनाई है, वे उसे यूं ही नहीं जाने देंगीं। इसके लिये फिलहाल एक उदाहरण काफ़ी होगा। श्रीराम सेने के हमले के ख़िलाफ़ महिलाओं के एक समूह ने तब 'पिंक चड्डी अभियान' चलाया था। सर्वथा अनूठे और अहिंसक इस अभियान के तहत देशभर से बड़ी संख्या में महिलाओं के अधोवस्त्र श्रीराम सेने के दफ़्तर को भेजे गये थे। उसके बाद फिर कभी उस घटना का दोहराव देखने-सुनने को नहीं मिला। वैलेंटाइन डे पर लड़के-लड़कियों के साथ पाए जाने पर उनकी शादी करवा देने की धमकी भी श्रीराम सेने को वापस लेनी पड़ी।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it