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न्यायमूर्ति जोसेफ की प्रोन्नति रोकना न्यायपालिका पर हमला : कांग्रेस

कांग्रेस ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के.एम. जोसेफ की सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में प्रोन्नति रोकने के केंद्र सरकार के कदम को न्यायपालिका पर हमला करार दिया

न्यायमूर्ति जोसेफ की प्रोन्नति रोकना न्यायपालिका पर हमला : कांग्रेस
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नई दिल्ली। कांग्रेस ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के.एम. जोसेफ की सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में प्रोन्नति रोकने के केंद्र सरकार के कदम को न्यायपालिका पर हमला करार दिया और आरोप लगाया कि सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया, क्योंकि न्यायमूर्ति जोसेफ ने राज्य में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ फैसला दिया था।

कांग्रेस ने सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम से कहा कि उसे तत्काल अपनी सिफारिश को स्पष्टतौर पर न्यायमूर्ति जोसेफ के पक्ष में दोहराना चाहिए और यदि सरकार फिर भी उनकी नियुक्ति में देरी करती है तो उसे अवमानना का एक नोटिस भेजा जाना चाहिए

पार्टी ने यह भी कहा कि कॉलेजियम की सिफारिशों के साथ इस तरह की हरकत इस सरकार की एक घातक परंपरा है।

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने शुक्रवार को कहा, "न्यायपालिका पर यह सबसे बुरा और कई दशकों में अपनी तरह का पहला हमला है- यानी आपके फैसले के आधार पर कार्रवाई की जा रही है।"

उन्होंने कहा, "यह स्पष्ट रूप से फैसले की सामग्री पर आधारित है, जिसे एक न्यायाधीश अपनी अंतरात्मा के अनुसार, और निर्भयता और निष्पक्षता की शपथ के अनुसार, कानून के प्रति अपनी निष्ठा को छोड़ बाकी किसी भी चीज से प्रभावित हुए बगैर लिखने के लिए बाध्य होता है।"

सिंघवी ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद द्वारा गिनाए गए कारणों को नकली, फर्जी और निंदनीय करार देते हु़ए कहा कि आज भी एक ही उच्च न्यायालय से दो या दो से अधिक न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय में हैं, जबकि कई अन्य उच्च न्यायालयों से एक भी न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय में नहीं हैं।

एससी/एसटी का प्रतिनिधित्व न होने के सरकार के तर्क पर सिंघवी ने सवाल किया कि फिर वकील इंदु मल्होत्रा को सर्वोच्च न्यायालय में प्रोन्नति क्यों दी गई।

सिंघवी ने सभी राजनीतिक दलों से इस मुद्दे को उठाने का आग्रह किया और कहा, "यह कांग्रेस का या राजनीति का कोई मुद्दा नहीं है। न्यायमूर्ति जोसेफ कोई कांग्रेस के आदमी नहीं हैं। न्यायमूर्ति लोढ़ा, न्यायमूर्ति ठाकुर और न्यायमूर्ति खरे सहित सभी पूर्व प्रधान न्यायाधीश सरकार के इस निर्णय के खिलाफ हैं। उन्होंने इसकी आलोचना की है। यह एक संस्थानिक मामला है। दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ए.पी. शाह ने भी इस कदम की आलोचना की है।"


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