Top
Begin typing your search above and press return to search.

आदिवासी राष्ट्रपति चुन सकता है भारत, कब रुकेंगे आदिवासियों पर अत्याचार

संभव है कि कुछ दिनों में भारत को पहली आदिवासी राष्ट्रपति मिल जाए, लेकिन आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ते जा जा रहे हैं.

आदिवासी राष्ट्रपति चुन सकता है भारत, कब रुकेंगे आदिवासियों पर अत्याचार
X

अगर एनडीए सरकार राष्ट्रपति पद के लिए अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए आंकड़े जुटा लेती है तो संभव है कि भारत को द्रौपदी मुर्मू के रूप में उसकी पहली आदिवासी राष्ट्रपति मिल जाए. लेकिन दूसरी तरफ धरातल पर सच्चाई यह है कि देश में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध के अलग से आंकड़े इकठ्ठा करता है और ब्यूरो की रिपोर्टें दिखाती हैं कि इस तरह के मामलों में कोई कमी नहीं आ रही है.

मध्य प्रदेश में हालत ज्यादा खराब

ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में देश में अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ अत्याचार के 8,272 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 के मुताबिक 9.3 प्रतिशत का उछाल है. इन मामलों में सबसे आगे रहा मध्य प्रदेश जहां कुल मामलों में से 29 प्रतिशत मामले (2,401) दर्ज किए गए.

आदिवासी मध्य प्रदेश की आबादी का करीब 22 प्रतिशत हैं और सभी राजनीतिक पार्टियों के बीच आदिवासियों के वोट हासिल करने की होड़ लगी रहती है. इसके बावजूद आम आदिवासियों को शोषण और अत्याचार से निजात नहीं मिल पा रही है.

दो जुलाई को ही प्रदेश में एक आदिवासी महिला के साथ हुई एक घटना सामने आई. गुना जिले में रहने वाली रामप्यारी सहरिया पर जमीन के विवाद को लेकर कुछ लोगों ने उनके खेत में हमला कर दिया और उनके शरीर पर डीजल छिड़क कर आग लगा दी.

आदिवासी महिला को जिंदा जलाया

उसके बाद हमलावरों ने दर्द से कराहती रामप्यारी का वीडियो भी बनाया जो अब सोशल मीडिया तक पहुंच चुका है. सहरिया के पति ने किसी तरह से उन्हें बचाया और अस्पताल पहुंचाया.

स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार रामप्यारी 80 प्रतिशत जल चुकी हैं. उनका भोपाल के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है और उनकी हालत गंभीर बताई जा रही है. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे और सरकार से उनका इलाज मुफ्त कराने की मांग की.

ऐक्टिविस्टों का कहना है कि यह घटना प्रदेश में आदिवासियों के हाल की कहानी बयां करती है. ना सिर्फ आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं, बल्कि प्रदेश में इस तरह के मामलों का अदालतों में लंबित रहना भी बढ़ता जा रहा है.

पुलिस, अदालतें भी कर रहीं निराश

एनसीआरबी के मुताबिक अदालतों में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के कम से कम 10,302 मामले लंबित हैं. जिन मामलों में सुनवाई पूरी हुई उन्हें कन्विक्शन या सजा होने की दर महज 36 प्रतिशत है.

इसका मतलब है आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में पुलिस की जांच में कमी रह जाती है जिसकी वजह से आरोपितों को सजा नहीं हो पाती. गुना वाले मामले में भी रामप्यारी के पति अर्जुन सहरिया ने आरोप लगाया है कि उन्होंने हमलवारों के खिलाफ पहले भी शिकायत की है लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की.

बल्कि दलितों और आदिवासियों के खिलाफ पुलिस के भेदभाव के भी संकेत मिलते हैं. एनसीआरबी के ही आंकड़ों के जेलों में बंद कैदियों में अनुसूचित जनजाति के कैदियों की संख्या भी सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में ही है.


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it