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अतीक अहमद को उम्रकैद की सजा, कौन हैं अतीक अहमद

उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने प्रयागराज के चर्चित माफिया और पूर्व सांसद अतीक अहमद को एक मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई है. कौन हैं अतीक अहमद और इस सजा की इतनी चर्चा क्यों हो रही है.

अतीक अहमद को उम्रकैद की सजा, कौन हैं अतीक अहमद
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एक महीने पहले उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या कर दी गई थी. उमेश पाल, विधायक रहे राजू पाल हत्याकांड के उस मामले के मुख्य गवाह थे जिसमें अभियुक्त अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ हैं. 17 साल पहले उमेश पाल के अपहरण के मामले में भी अतीक अहमद अभियुक्त थे और इसी मामले में उन्हें अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई है.

प्रयागराज की स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट ने इस मामले में तीन लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई है जबकि अतीक अहमद के भाई और पूर्व विधायक अशरफ समेत सात लोगों को बरी कर दिया है. विशेष अदालत ने इन तीनों को आईपीसी की धारा 364 ए के तहत दोषी करार दिया. अतीक अहमद को एक दिन पहले ही गुजरात की साबरमती जेल से कड़ी सुरक्षा के बीच प्रयागराज लाया गया था.

बाहुबली और राजनेता

अतीक अहमद के ऊपर हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण, रंगदारी जैसे मामलों में सौ से भी ज्यादा केस दर्ज हैं लेकिन उन्हें अब तक किसी भी केस में सजा नहीं हुई थी. यह पहला मामला है जिसमें उन्हें सजा हुई है. अपराध की दुनिया से करियर की शुरुआत करते हुए अतीक अहमद 1989 में राजनीति के क्षेत्र में आए और पांच बार विधायक और एक बार लोकसभा के लिए चुने गए. राजनीतिक सफर की शुरुआत निर्दलीय विधायक के तौर पर करने के बाद वो बहुजन समाज पार्टी, अपना दल और समाजवादी पार्टी में भी रह चुके हैं.

2004 में अतीक अहमद ने उस फूलपुर सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीता जहां से कभी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चुनाव जीतते थे.

अतीक अहमद प्रयागराज के ही रहने वाले हैं और लंबे समय से उनकी एक दबंग राजनीतिक की छवि बनी हुई है. राजनीति में आने के बाद भी वो एक नेता या जनप्रतिनिधि के तौर पर कम, एक माफिया और बाहुबली के तौर पर ज्यादा जाने जाते रहे.

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16-17 साल की उम्र में पहला केस

उनके चुनावी क्षेत्र शहर पश्चिमी के रहने वाले रहमान अहमद बताते हैं कि उनका परिवार पहले बहुत गरीब था. अतीक अहमद भी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं. एक बार बातचीत के दौरान उन्होंने बताया था कि उन्होंने सिर्फ दसवीं कक्षा तक पढ़ाई की है और उसके बाद ही कुछ कारणों से अपराध की दुनिया में आ गए. हालांकि इस बारे में उन्होंने ज्यादा ब्योरा नहीं दिया था लेकिन उनके आस-पास के लोग बताते हैं कि वो इस दुनिया में तब से सक्रिय हैं जब नाबालिग थे और स्कूल में पढ़ते थे.

रहमान अहमद बताते हैं, "इनके पिता फिरोज अहमद इलाहाबाद में तांगा चलाया करते थे. 1979 पहली बार उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और तब उनकी उम्र 16-17 साल की रही होगी. दस साल तक उन्हें उनके इलाके में लोग एक माफिया और बाहुबली के तौर पर जानने लगे. इसी दौरान उन्होंने इलाहाबाद में शहर पश्चिमी से निर्दलीय विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत गए. फिर तो लगातार जीतते रहे और माफिया के साथ-साथ नेता के तौर पर भी लोग उन्हें जानने लगे.”

राजनीतिक दलों से संबंध

1989 में चुनाव जीतने के बाद वो धीरे-धीरे समाजवादी पार्टी के करीब चले गए और फिर 1993 में समाजवादी पार्टी में शामिल ही हो गए. यह वो दौर था जब यूपी ही नहीं बल्कि पूरे देश में मंडल और कमंडल की राजनीति का बोल-बाला था. लेकिन तीन साल बाद ही अतीक अहमद ने पाला बदल लिया और 1996 में अपना दल में शामिल हो गए. ये वही अपना दल है जिसका एक घटक अपना दल (एस) आज केंद्र और यूपी में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन में शामिल है.

इलाहाबाद शहर पश्चिमी से अतीक अहमद लगातार चुनाव जीतते रहे चाहे जिस पार्टी में हों. 2002 में उन्होंने इस सीट से पांचवीं बार जीत हासिल की और 2004 में फिर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए . पार्टी ने उन्हें फूलपुर से लोकसभा का टिकट दे दिया और वो जीत भी गए.

2004 में अतीक अहमद विधानसभा से लोकसभा पहुंच गए, उनका राजनीतिक ग्राफ बढ़ा लेकिन यहीं से उनका राजनीतिक ग्राफ गिरना भी शुरू हुआ. उनके इस्तीफे से खाली हुई सीट पर समाजवादी पार्टी ने उनके भाई अशरफ को टिकट दिया. इसी सीट से बहुजन समाज पार्टी ने राजू पाल को टिकट दिया. इस उपचुनाव में राजू पाल ने अशरफ को हरा दिया. राजू पाल और अतीक कभी करीबी थे लेकिन राजनीति ने दोनों को अलग कर दिया था.

राजू पाल हत्याकांड

चुनाव जीतने के कुछ दिनों बाद ही जनवरी 2005 में राजू पाल की हत्या हो गई. इस हत्याकांड में सीधे तौर पर अशरफ और अतीक का नाम आया. स्थानीय लोग बताते हैं कि राजू पाल का चुनाव जीतना अतीक अहमद की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था. राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने इस मामले में अतीक अहमद और अशरफ के खिलाफ केस दर्ज कराया.

इस सीट पर फिर उपचुनाव हुए जिसमें बीएसपी ने पूजा पाल को टिकट दिया लेकिन पूजा पाल अशरफ से चुनाव हार गईं. हालांकि 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में पूजा पाल ने अशरफ को चुनाव हरा दिया. यही नहीं, 2012 में इसी सीट पर पूजा पाल ने अतीक अहमद को भी चुनाव में मात दी.

इस दौरान 2007 में यूपी में बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनी तो अतीक अहमद को मोस्ट वांटेड घोषित कर दिया गया. अतीक अहमद ने 2008 में आत्मसमर्पण कर दिया और फिर 2012 में जेल से रिहा हुए. 2014 में समाजवादी पार्टी ने फिर उन्हें लोकसभा का टिकट दिया लेकिन इस बार वो चुनाव हार गए. इस बीच वो फिर गिरफ्तार हुए और 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद साबरमती जेल भेजे गए.

24 फरवरी 2023 को राजूपाल हत्या कांड के मुख्य गवाह उमेश पाल का मर्डर हुआ और आरोप अतीक पर लगा. इस मामले में भी उनके और सहयोगियों के अलावा उनकी पत्नी और बच्चों के खिलाफ भी केस दर्ज हुआ और उनके कई सहयोगियों के मकान बुलडोजर से ढहा दिए गए. हालांकि इस मामले में सीसीटीवी कैमरे में कैद पांच शूटर अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं.


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