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साहित्य जितना स्थानीय होता है उसका प्रभाव दूर तक होता है: डा. विश्वनाथ त्रिपाठी

कोई भी साहित्य जितना स्थानीय होता है उसका प्रभाव दूर तक होता है

साहित्य जितना स्थानीय होता है उसका प्रभाव दूर तक होता है: डा. विश्वनाथ त्रिपाठी
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नई दिल्ली। 'कोई भी साहित्य जितना स्थानीय होता है उसका प्रभाव दूर तक होता है।’

वरिष्ठ साहित्य समालोचक डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में एक साहित्यक परिचर्चा में यह विचार रखते हुए कहा।

हिंदी साहित्य जगत से जुड़ी कई नामचीन हस्तिओं ने अल्पना मिश्र की इस वर्ष आईकिताब 'स्याही में सुर्खाब के पंख’पर परिचर्चा में हिस्सा लिया।

श्री त्रिपाठी ने कहा कि अल्पना मिश्र के लेखन की यही बड़ी बात है कि वो अपनी ज़मीन को पकड़े हैं।

कार्यक्रम में वक्ता के रूप में आए मृदुला गर्ग, प्रेम भरद्वाज, विभास वर्मा और नवीन कुमार नीरज ने अपने विचार रखे व कार्यक्रम का संचालन महेंद्र प्रजापति ने किया। इस अवसर पर पत्रकार प्रेम भारद्वाज ने पुस्तक पर बोलते हुए कहा कि 'अल्पना मिश्रकी खासियत है कि वो टुकड़ों में लिखती हैं बिल्कुल पिकासो के चित्र के तरह। वह संकेतों में बात करती हैं। जो कविता की पहचान है वो इनकी कहानियों में है।’

लेखिका अल्पना मिश्र ने इस अवसर पर अपने भाव रखते हुए कहा कि जब में जीवन को जानने लगी तो अपने निकट सारे चरित्रदिखने लगे जो अपने परस्थितियों से टकराते हैं और इनहीं जीवन की जटिलताओं को पकडऩे और उनको समेट लेने की कोशिश मैंने अपने लेखनी में की है।

'स्याही में सुर्खाब के पंख’अल्पना मिश्र की कहानियों का संग्रह है, इस संग्रह में शामिल कहानियां हैं। 'स्याही में सुर्खाब के पंख’ 'कत्थई नीली धारियों वाली कमीज’ 'तेरे नैन बड़े बेचैन’आदि में अल्पना मिश्र की कथा क्षमता विवरण बहुलता में वास्तविकता के और करीब जाने की कोशिश में दिखाई देती है।

संग्रह में कहानियों को पढ़ते हुए पाठक को वापस यह विश्वास होगा कि बिना किसी आलंकारिकता के जीवन.यथार्थ को विश्वसनीय ढंग से पकडऩा आज के उथले समय में भी संभव है।


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