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मध्य प्रदेश में अमन के लिए कलाकार एकजुटता

कल इंदौर के रीगल चौराहे के पास स्थित नेहरू पार्क में शाम चार बजे से रात के 8 बजे तक कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों, समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों तथा नागरिकों बच्चों का बड़ा जुटान हुआ

मध्य प्रदेश में अमन के लिए कलाकार एकजुटता
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भोपाल। कल इंदौर के रीगल चौराहे के पास स्थित नेहरू पार्क में शाम चार बजे से रात के 8 बजे तक कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों, समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों तथा नागरिकों बच्चों का बड़ा जुटान हुआ। इस जुटान में युद्ध के विरुद्ध विश्व शांति के लिए और बकौल गीतकार शैलेन्द्र 'भूख के विरुद्ध भात के लिए तथा रात के विरुद्ध प्रात के लिए' चित्रकार, नाटककार, कवि, संगीतकार, लेखक बड़ी संख्या में स्वप्रेरणा से ऊर्जा-उत्साह-सक्रियता से लबालब इकट्ठे हुए। इस मौक़े पर बहुत लोग आए एवं अंत तक मौजूद रहे।

पार्क की चहल-पहल, आवाजाही, पक्षियों के कलरव-उड़ान, पेंटिंग्स के रंगों, बच्चों की उछल-कूद एवं सुकूनदेह हरी-नरम घास तथा पेड़ों के हरे-भरे स्नेह, छांव ने आयोजन को अभूतपूर्व एवं ख़ुशनुमा बना दिया।

लोगों के बीच पेंटिंग्स बनाई गईं, कविता पोस्टर प्रदर्शित हुए, शांति की अपील करती किताब चलायी गयीं, कविताएँ पढ़ी गयीं, मोनो एक्टिंग हुईं, नाटक हुआ और गीत - सबद गाये गए। मोहब्बत, दोस्ती, अमन, इंसानियत और ग़रीबों, मज़दूरों, बच्चों, महिलाओं के हक़ के लिए बातें चलती रहीं चाहे वो आपसी गुफ़्तगू हो या बाक़ायदा माईक से संबोधन।

कार्यक्रम नियत समय पर ठीक शाम चार बजे आरम्भ हुआ। शुरुआत अर्थशात्री और सामाजिक कार्यकर्ता जया मेहता ने रज़िया सज्जाद ज़हीर की कालजयी कहानी 'नमक' का पाठ करके की।

उन्होंने कहा - केवल कुछ ही लोग हैं जिन्हें युद्ध चाहिए।

हमें युद्ध नहीं चाहिए। हम जानते हैं कि इस देश के जवान के बीवी बच्चे हों या उस देश के जवान के बीवी बच्चे एक जैसे होते हैं। उन्हें एक जैसी तकलीफ उठानी पड़ती है। युद्ध स्वयं एक समस्या है यह किसी समस्या का हल नहीं हो सकता। युद्ध से शांति कभी नहीं आती।

देश सीमा पर खिंची रेखाओं से नहीं बनता। इंसान देश बनाते हैं जो पूरी दुनिया में एक जैसे हैं। बातचीत ही शांति का रास्ता है। शासकों की पसंद का युद्ध हमें नहीं चाहिए। जया मेहता के बाद कविताओं, पेंटिंग, गीतों, नाटक का सिलसिला शुरू हुआ। अजय लागू ने विदेशों के अपने अनुभव सुनाते बताया कि प्रेम और मैत्री की ज़रूरत पूरी दुनिया के इंसानों को है। शांति, शिक्षा रोज़गार, चिकित्सा की लड़ाई ही इंसानियत की, देशों की ज़रूरत है।

काव्य पाठ सिलसिले की शुरुआत में शशिभूषण ने 'शांति के लिए' शीर्षक अपनी कविता सुनायी। इसमें कहा गया- 'देशों के बीच युद्ध नहीं होना चाहिए।

ऐसे होना चाहिये युद्ध कि राष्ट्रपति, राष्ट्रपति से लड़े। सेनाध्यक्ष, सेनाध्यक्ष से। जवानों का जवानों से लड़ना व्यर्थ का खून बहाना है। जनता को जनता से लड़वाना सबसे बुरा।' इसके बाद कविताएं सुनाने का जो दौर चला तो विद्यार्थियों ने पाश और अन्य क्रांतिकारी, मानवतावादी, इंसाफ़ पसंद कवियों की प्रिय कविताएं सुनाईं।

कविता सुनाने वाले कवियों में रहे - सरोज कुमार, उत्पल बैनर्जी, बृजेश कानूनगो, प्रदीप मिश्र, नीहारिका देशमुख, सारिका, चुन्नीलाल बाधवानी, अमूल आहूजा, सुरेश उपाध्याय और प्रणवराज आदि। इस अवसर पर चित्रकार एवं कहानीकार प्रभु जोशी ने अपनी बात रखी उन्होंने कहा - 'देश कर्ज़ में डूबा हुआ है। जनता ने सवाल पूछने बंद कर दिए। अब सवाल नहीं पूछे जाते ताली बजायी जाती है। जबकि सत्ता से सवाल पूछने चाहिए। जब तक सत्ता से सवाल नहीं पूछे जाएंगे शांति नहीं आएगी।'

एक योद्धा के बारे में लिखा जाता है कि उसने कितने प्रकार के, कितने किलोमीटर फाइटर प्लेन उड़ाए। टैंकों से कितना विध्वंस किया। शांति योद्धा के बारे में लोग याद करते हैं कितने निर्माण किए, कितने वाद्यों के संग रहा, कितने पेड़ लगाए, कितने बच्चे सँवारे, कितने रंग भरे, कितने सुर लगाए, कितने रोते हुओं को गले लगाया।

एक हारमोनियम हज़ारों टैंक से ताक़तवर होता है। इस जुटान में गीत, संगीत और नाटक तथा सामूहिक चित्रकारी ने युद्ध के ख़िलाफ़ प्रतिरोध की इस कलाकार एकजुटता को जीवंत तथा आत्मीय बनाये रखा। जहां शर्मिष्ठा मुखर्जी ने नीरज का गीत 'अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए' और भूपेन हजारिका का गीत 'ये किसकी सदा है' सुनाया तो वहीं अंकित ने फ़ैज़ की नज़्म 'बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे', कुछ कलाकारों ने कबीर के भजन आदि सुनाकर प्रभावित किया। बच्चों ने भी अपनी पसंद के गीत सुनाकर जीवंतता तथा सहभागिता बनाये रखी।

इस मौक़े पर कविता पोस्टर प्रदर्शन के साथ ही विश्व शांति की अपील करती किताब 'लड़ाई से लगाव' वितरित की गयी। पेंटिंग करने वालों में मुकेश बिजोले, प्रभु जोशी, भारती सरवटे, शुभा वैद्य, सुंदर गुर्जर, अनुषा दिवि आदि रहे।

इस अवसर पर बड़ी संख्या में उपस्थित बुद्धिजीवियों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों, लोगों में सभी के नाम-चेहरे, योगदान याद आ जाना एवं उनका ज़िक्र इस संक्षिप्त रिपोर्ट में सम्भव नहीं है। फिर भी जिनसे अक्सर-आमना सामना होता है और वे हमेशा याद रहते हैं उनमें से प्रमुख थे - रवींद्र व्यास, अशोक दुबे, एस के दुबे, नेहा, महिमा, कैलाश, सौरव और रजनी रमण शर्मा। कार्यक्रम का संयोजन किया अरविंद पोरवाल, अशोक दुबे, प्रमोद बागड़ी, जया मेहता, सौरव बैनर्जी ने। सारिका ने कलाकार एकजुटता का संचालन किया।


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