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क्या ग्रेट प्रधानमंत्री कहने से हम राष्ट्रीय हित छोड़ देंगे?

क्या ग्रेट प्रधानमंत्री कहने से हम राष्ट्रीय हित छोड़ देंगे?
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— शकील अख्तर

राजीव गांधी भी उसी परंपरा में थे। आपरेशन ब्रासटैक्स शुरू किया था। दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास। पांच लाख सैनिकों के साथ। पाकिस्तान डर गया। अमेरिका उसकी मदद में आया। उसी समय राजीव गांधी ने यह बयान दिया कि अमेरिका पाकिस्तान की मदद बंद करे। पाकिस्तान कश्मीर में हस्तक्षेप बंद करे। उसके बाद हम सोचेंगे कि किससे कैसे संबंध रखना है। अभी हम देख ही रहे हैं रुस और युक्रेन के मामले में।

भारत को प्रधानमंत्री मोदी रिसिविंग एंड पर ले आए! किसी भी देश के साथ हमारे संबंध कैसे होंगे यह वह तय कर रहा है। तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे!

दुखद ! शर्मनाक!

जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बोला कि सीज फायर मैंने करवाया। पचास बार! कारण बता बता कर। व्यापार का डर दिखाकर, धमकी देकर। स्टाप इट कहकर। तो एक बार भी जवाब नहीं दिया। और जब ट्रंप ने कहा कि मोदी दोस्त और उससे भी बढ़कर ग्रेट प्राइम मिमिस्टर तो दिल बाग़ बाग़ हो गया उसका का समर्थन करने लगे।

किस बात का? पचास प्रतिशत टैरिफ का? सीज फायर का? पाकिस्तान के नेतृत्व को मजबूत और शक्तिशाली बताने का? उसके आर्मी चीफ मुनीर को जो पहलगाम हमले का मास्टर माइंड है उसके साथ लंच करने का?

यह भारत की हालत कर दी। और रात- दिन दावा यह कि 2014 से पहले कुछ था ही नहीं। प्रचार की ऐसी आंधी कि लोगों को दिखाई देना बंद हो गया। सिर्फ वही दिखता है जो वे दिखाते हैं।

नेहरू इन्दिरा की बात छोड़िए। उन वाकई महान प्रधानमंत्रियों की बात जिन्होंने अन्तरराष्ट्रीय जगत में किस तरह भारत का महत्व बनाया था। अभी जर्मनी के विदेश मंत्री जोहान वेडफुल भारत आए थे। क्या कहकर गए हैं वे?

कहीं ठीक से मीडिया में नहीं आया। उन्होंने कहा कि जब वे स्टूडेंट थे, युवा थे तब सुनते थे कि भारत एक गुटनिरपेक्ष देश है। और इस बात से उसकी बहुत प्रतिष्ठा होती थी।

समझिए जर्मनी का विदेश मंत्री अपने विद्यार्थी जीवन में युवा काल में भारत की क्या हैसियत थी सम्मान था यह सुनकर बड़ा हो रहा था। और एक वही नहीं पूरे यूरोप, अमेरिका, रुस सारी अन्तरराष्ट्रीय दुनिया के स्टूडेंट युवा। यह नेहरू और इन्दिरा काल की बात है। छोड़िए इसे। इन्दिरा जी का वह किस्सा भी नहीं बताएंगे कि किस तरह वे अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन को मुंह पर खरी करारी सुना कर आईं थीं। भक्त कहते हैं निक्सन ने उन्हें बाद में पीठ पीछे गाली दी। दी ही होगी। कोई महान प्रधानमंत्री थोड़ी कहा होगा! क्योंकि इन्दिरा ने तो वापस आकर पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे। उसी पाकिस्तान के जिसके नेतृत्व को आज ट्रंप ग्रेट पावरफुल कह रहा है।

खैर हम कह रहे थे कि नेहरू इन्दिरा की बात नहीं बताएंगे। लेकिन भारत की प्रगति, शक्ति और दबदबे की बात हो तो उनका नाम आ ही जाता है। जो उनके विरोधी हैं, उनके बड़े और हिम्मत वाले कामों से डरते है उनके मुंह से गाली आलोचना के तौर पर और बाकी लोगों की कलम से इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में पेश करने के सिलसिले में। लेकिन हम बता रहे थे अमेरिका के सिलसिले में कि कैसे ट्रंप कहता है कि हम आपसे खुश नहीं हैं। और हमारे प्रधानमंत्री इस पर भी रीझ जाते हैं कि चलो बात तो की। और उसकी सराहना करने लगते हैं।

मगर राजीव गांधी ने क्या कहा था? 1987 में एक विदेशी चैनल को इंटरव्यू देते हुए उन्होंने कहा कि हम कुछ चीजों को लेकर अमेरिका से खुश नहीं हैं। और अब 2025 में उल्टा अमेरिका के राष्ट्रपति कह रहे है कि मैं कुछ चीजों को लेकर मोदी से खुश नहीं हूं। मगर मोदी इसके बावजूद सिर हिला रहे हैं। ट्रंप की तारीफ कर रहे हैं।

मिटा दो सारे इतिहास को! नहीं तो यह चिल्ला चिल्ला कर कहेगा कि कभी भारत में इतने ताकतवर साहसी और देश का सम्मान रखने वाले प्रधानमंत्री हुए थे। वीडियो इंटरव्यू है। विदेशी पत्रकार के साथ। पत्रकार पूछ रहा है कि क्या आप अमेरिका के साथ बेहतर रिश्ते बनाना चाहेंगे? और राजीव गांधी अब नेहरू इन्दिरा की तरह उन पर भी कड़े आक्रमण शुरू कर देना कह रहे हैं कि यह इस पर निर्भर करेगा कि अमेरिका पाकिस्तान के साथ कैसे रिश्ते रखता है।

यही बात हमने शुरू में कही कि आज भारत रिसिविंग एंड पर ले आए। पहले भारत कहता था, एक्शन लेता था, वह अपने देश के हित अनहित देखकर दूसरे देशों से संबंध रखता था। रिसिविंग एंड पर नहीं रहता था कि कोई जो कहे उसे मान लेता था। उनके करने या न करने से प्रभावित होता था। बैठ जा बैठ गई! खड़े हो जा हो गई ! भारत ने कभी नहीं किया।

उल्टे राजीव गांधी ने कहा कि हम अमेरिका से खुश नहीं हैं। मतलब सीधी बात हमें खुश रखने, संतुष्ट करने की जिम्मेदारी अमेरिका की है। आज कोई सोच सकता है कि इस तरह की बात हमारे प्रधानमंत्री मोदी कर सकते हैं? भारत में साहस की कमी नहीं है। न भारत कभी झुका है। मगर आज हमारे प्रधानमंत्री कभी ट्रंप का प्रचार करने अमेरिका जाते हैं। कभी उसके इतनी बार कहने पर की लोगों ने गिनना बंद कर दिया कि सीज फायर मैंने करवाया एक जवाब नहीं दे पाते हैं और फिर जब वह चीन, रुस, नार्थ कोरिया को काउंटर करने के लिए हमारे प्रधानमंत्री की तारीफ करता है तो मीडिया और भक्त ही नहीं खुद मोदी उस पर रिस्पांड ( खुशी जताना) करने लगते हैं। जैसे इसी इंतजार में बैठे हों!

विदेश नीति तहस-नहस हो गई। केवल अपनी आत्म मुग्धता के कारण। भारत को कुछ भी कहो, केवल मेरी तारीफ करो। भारत को तो वे खुद भी कु छ भी कहते रहते हैं। यहां तक कि 2014 से पहले भारत में जन्म लेना शर्म की बात थी। शर्म भी ऐसी वैसी नहीं। कहते हैं कि किस देश में जनम ले लिया महाराज।

अपनी मातृभूमि के प्रति ऐसे विचार इससे पहले कभी देखे? गांधी, नेहरू, भगत सिहं तो गुलाम भारत में पैदा हुए थे। मगर उस समय के देश के प्रति भी कभी असम्मान की बात नहीं कही।

व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा बहुत खराब चीज होती है। और विदेश नीति में तो देश को नुकसान पहुंचाने वाली। नेपाल जो सबसे स्वाभाविक दोस्त माना जाता था। जहां वीसा, पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती थी। भारतीय करंसी चलती थी। वह हमारे सोशल मीडिया प्लेटफार्म बंद कर रहा है।

तो हम बता रहे थे नेहरू इन्दिरा की बात नहीं, राजीव गांधी की बात। तो राजीव ने यह भारत की ताकत बढ़ाने वाला बयान दिया कि अमेरिका के साथ संबंध हम तय करेंगे। और इस आधार पर कि वह पाकिस्तान की मदद करना बंद करता है कि नहीं। यह साहस भारत के प्रधानमंत्रियों की परंपरा रही है। किसी भारत के मीडिया की जरूरत नहीं होती थी। विदेशी मीडिया उनके साहस और भारत के हित हमेशा ऊपर रखने की बात करते थे।

राजीव गांधी भी उसी परंपरा में थे। आपरेशन ब्रासटैक्स शुरू किया था। दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास। पांच लाख सैनिकों के साथ। पाकिस्तान डर गया। अमेरिका उसकी मदद में आया। उसी समय राजीव गांधी ने यह बयान दिया कि अमेरिका पाकिस्तान की मदद बंद करे। पाकिस्तान कश्मीर में हस्तक्षेप बंद करे। उसके बाद हम सोचेंगे कि किससे कैसे संबंध रखना है। अभी हम देख ही रहे हैं रुस और युक्रेन के मामले में। ट्रंप से दबने के बदले या उसे खुश करने के बदले दोनों देशों के राष्ट्रपति अपने राष्ट्रीय हित देख रहे हैं। व्यक्तिगत प्रचार पर कोई नहीं जा रहा। आप रूस और युक्रेन के राष्ट्रपति को ग्रेट बताकर उन्हें खुश नहीं कर सकते। किसी भी देश का राष्ट्राध्यक्ष नहीं होता है। हमें भी सोचना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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