नोटबंदी का जश्न क्यों नहीं मनाती उत्सवप्रेमी सरकार?
पिछले 11 वर्षों से केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ दल की ओर से कैलेंडर देखकर हर मौके पर कोई न कोई इवेंट होता रहता है

- अनिल जैन
यह प्रचार आज तक हो रहा है कि नोटबंदी के बाद देश में डिजिटल लेन-देन बढ़ गया है। यह सही है कि तब से अब तक डिजिटल लेन-देन बढ़ा है, लेकिन यह भी वास्तविकता है कि नकदी पर लोगों की निर्भरता भी पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है और बैंकों पर लोगों का भरोसा घटा है। नोटबंदी के ऐलान के आठ साल बाद देश में कैश सर्कु लेशन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।
पिछले 11 वर्षों से केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ दल की ओर से कैलेंडर देखकर हर मौके पर कोई न कोई इवेंट होता रहता है। यहां तक कि कोरोना महामारी के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर ताली-थाली, दीया-मोमबत्ती, आतिशबाजी, अस्पतालों पर विमानों से फूल-वर्षा और टीका महोत्सव जैसे आयोजन हुए हैं। केंद्र सरकार की उन तमाम योजनाओं को उपलब्धि की तरह पेश करते हुए भी आयोजन किए जाते हैं, जिनके सकारात्मक परिणामों का किसी को पता नहीं है- यहां तक कि सरकार को भी नहीं। मगर 'अभागी नोटबंदी' ही ऐसी है, जिसकी याद में कोई जश्न मनाना तो दूर, सरकार और भाजपा की ओर से कोई उसका नाम तक नहीं लेता। हाल ही में नोटबंदी के 9 साल पूरे होने पर भी उसके बारे में कुछ नहीं गया।
इससे पहले भी 9 नवंबर को नोटबंदी की बरसी पर सरकार और सत्तारूढ़ दल दोनों मौन रहते रहे हैं। इस बार भी दोनों चुप्पी साधे रहे। यहां तक कि विपक्षी दलों में से भी किसी ने नोटबंदी का जिक्र नहीं किया। अलबत्ता हर बार की तरह इस बार भी 8 और 9 नवंबर को सोशल मीडिया में नोटबंदी छाई रही। आम लोगों ने अपनी तकलीफें साझा कीं और प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों के उस समय के भाषणों तथा बयानों के वीडियो क्लिप शेयर करते हुए उनका मजाक उड़ाया।
नोटबंदी के समय सरकार का कहना था कि उसने नोटबंदी के जरिए अर्थव्यवस्था से बाहर गैरकानूनी ढंग से रखे धन को निशाना बनाया है, क्योंकि इस धन से भ्रष्टाचार और दूसरी गैरकानूनी गतिविधियां बढ़ती हैं। टैक्स बचाने के लिए लोग इस पैसे की जानकारी छुपाते हैं। सरकार का मानना था कि जिनके पास बड़ी संख्या में गैरक़ानूनी ढंग से जुटाया गया नकदी है, उनके लिए इसे क़ानूनी तौर पर बदलवा पाना संभव नहीं होगा, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की अगस्त, 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट ने सरकार के इन दावों की पोल खोलकर रख दी। उस रिपोर्ट के मुताबिक बंद किए गए नोटों का 99.3 फीसदी हिस्सा बैंकों के पास लौट आया है।
आरबीआई की यह चौंकाने वाली रिपोर्ट इस बात का संकेत थी कि लोगों के पास नकदी के रूप में जिस गैरकानूनी या काला धन होने की बात कही जा रही थी, वह सच नहीं थी और अगर सच थी तो यह भी सच है कि लोगों ने अपने काले धन को सफेद यानी कानूनी बनाने का रास्ता निकाल लिया था। वैसे नोटबंदी के समय ही प्रो. अरुण कुमार सहित कई जाने-माने अर्थशास्त्रियों ने सरकार की इस धारणा को गलत ठहराया था कि नकदी का मतलब काला धन होता है। इसलिए नोटबंदी से काला धन खत्म होना ही नहीं था। विदेशों में जमा भारतीयों के काले धन पर तो इसका असर पड़ने का कोई सवाल ही नहीं था।
नोटबंदी से काला धन खत्म होने के दावे के साथ ही मोदी ने दावा किया था और बाद में कई दिनों तक उनके मंत्री भी देश को समझाने की मासूम कोशिश करते रहे कि नोटबंदी से नकली नोटों का चलन तो रुकेगा ही, उससे आतंकवाद पर भी लगाम लग जाएगी। इसके विपरीत जब काला धन खत्म होने के बजाय बढ़ने के सबूत मिलने लगे, 500 और 2000 के नकली नोट बाजार में आने लगे तथा आतंकवादी वारदातों में कोई कमी नहीं आई तो तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पैंतरा बदलते हुए कहा था कि, 'देश में कैशलेस इकानॉमी बनाने यानी नकदी व्यवहार कम करने के लिए नोटबंदी प्रधानमंत्री का मास्टर स्ट्रोक है।' उस समय के एक अन्य मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि 'नोटबंदी से देश में देह व्यापार में कमी आई है'। कुछ अन्य मंत्रियों ने भी नोटबंदी के फैसले का बचाव करते हुए इसी तरह के ऊल-जुलूल बयान दिए थे।
बहरहाल यह प्रचार आज तक हो रहा है कि नोटबंदी के बाद देश में डिजिटल लेन-देन बढ़ गया है। यह सही है कि तब से अब तक डिजिटल लेन-देन बढ़ा है, लेकिन यह भी वास्तविकता है कि नकदी पर लोगों की निर्भरता भी पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है और बैंकों पर लोगों का भरोसा घटा है। नोटबंदी के ऐलान के आठ साल बाद देश में कैश सर्कु लेशन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक मई, 2025 में 38.10 लाख करोड़ रुपये कैश सर्कुलेशन में हैं, जो 8 नवंबर, 2016 को चलन में रहे 17.97 लाख करोड़ रुपये के दोगुना से भी ज्यादा है।
जिस समय नोटबंदी के चलते देश भर में हाहाकार मचा हुआ था, उसी दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने अपने विदेशी दौरों में अपने इस फैसले के लिए अपनी पीठ थपथपाते हुए इसे साहसिक और ऐतिहासिक कदम बताया था। उन्होंने विदेशी धरती पर सार्वजनिक कार्यक्रमों में विद्रूप ठहाके लगाते हुए कहा था, 'घर में मां बीमार है लेकिन इलाज के लिए जेब में पैसे नहीं हैं.., लोगों के घरों में शादी है लेकिन नोटों की गड्डियां बेकार हो चुकी हैं।' उनके इस कथन पर वहां मौजूद अनिवासी भारतीयों का समूह जिस तरह से तालियां पीट रहा था, वह बड़ा ही अमानवीय और वीभत्स दृश्य था।
नोटबंदी के चलते छोटे-मंझौले स्तर के कारोबारियों के काम-धंधे ठप हो गए थे, जो अब भी पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौट पाए हैं। लाखों लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ी है। आज बेरोजगारी आजाद भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा है तो इसकी बड़ी वजह नोटबंदी भी है। जिनके पास रोजगार बचा हुआ है, उनकी आमदनी कम हुई है। किसानों की आत्महत्या का सिलसिला तो बहुत पहले से ही चला आ रहा है, लेकिन नोटबंदी के बाद तबाह हुए कई छोटे कारोबारियों और बेरोजगार हुए लोगों ने भी असमय मौत को गले लगाया है और यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है।
सरकार आंकड़ों की बाजीगरी दिखाते हुए भले ही यह ढोल पीटती रहे कि भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन हकीकत बेहद स्याह है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत गिरने का सिलसिला भी नोटबंदी के बाद ही तेज हुआ है। देश से होने वाले निर्यात में सतत गिरावट दर्ज हो रही है। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी आई है। नोटबंदी के कारण पहली बार यह शर्मनाक नौबत आई है कि भारत सरकार को अपना खर्च चलाने के लिए रिजर्व बैंक के रिजर्व कोष से एक बार नहीं, तीन-तीन बार पैसा लेना पड़ा है और मुनाफ़े में चल रहे सरकारी उपक्रमों को निजी क्षेत्रों को बेचना पड़ रहा है। इन्हीं हालात के चलते नोटबंदी के बाद जीडीपी ग्रोथ पूरी तरह बैठ गई है।
नोटबंदी के शुरुआती दौर में जब इस फैसले की देश-दुनिया में व्यापक आलोचना हो रही थी और विशेषज्ञों द्वारा उस पर सवाल उठाते हुए उसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए विध्वंसक फैसला बताया जाने लगा था, तो प्रधानमंत्री मोदी ने गोवा में एक कार्यक्रम के दौरान भावुक और नाटकीय अंदाज में कहा था, 'मैंने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए नोटबंदी का कदम उठाया है। मैं जानता हूं कि मैंने कैसी-कैसी ताकतों से लड़ाई मोल ली है। मैं जानता हूं कि कैसे लोग मेरे खिलाफ हो जाएंगे, वे मुझे बर्बाद कर देंगे, मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे, लेकिन मैं हार नहीं मानूंगा। आप ईमानदारी को बढ़ावा देने के काम में मेरी मदद कीजिए और सिर्फ 50 दिन का समय मुझे दीजिए।'
मोदी ने यह भाषण नोटबंदी लागू होने के पांचवें दिन यानी 13 नवंबर, 2016 को दिया था। उन्होंने कहा था, 'मैंने देश से सिर्फ 50 दिन मांगे हैं। मुझे 30 दिसंबर तक का वक्त दीजिए। उसके बाद अगर मेरी कोई गलती निकल जाए, कोई कमी रह जाए, मेरे इरादे गलत निकल जाएं तो देश जिस चौराहे पर खड़ा करके जो सजा देगा, उसे भुगतने के लिए मैं तैयार हूं।'
मोदी के उस भाषण के बाद कई '50 दिन' ही नहीं, पूरे 3285 दिन बीत गए हैं, लेकिन वे भूल से भी अब नोटबंदी का जिक्र नहीं करते। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नोटबंदी के एक साल बाद 7 नवंबर, 2017 को संसद में कहा था कि, 'नोटबंदी एक आर्गनाइज्ड (संगठित) लूट और लीगलाइज्ड प्लंडर (कानूनी डाका) है।' अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज के शब्दों में 'नोटबंदी एक पूरी रफ्तार से चल रही कार के टायरों पर गोली मार देने जैसा कार्य है।' आज नोटबंदी के 9 साल बाद उनका कहा सच साबित हो रहा है। सरकार भी इस हकीकत को समझ चुकी है। इसीलिए वह अपने अपराध-बोध के चलते नोटबंदी की हर सालगिरह पर पूरी तरह खामोशी बरतती है और सरकार के ढिंढोरची की भूमिका निभाने वाला कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया भी सरकार के पसंदीदा खेल हिंदू-मुस्लिम में मगन रहता है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)


