भंडारे में गए तो खाना खत्म, बाहर आए तो चप्पल गायब
प्रधानमंत्री मोदी जापान और चीन की यात्राओं पर गए। जापान यात्रा में तो मोदी मेरे भगवान टाइप स्वागत सत्कार और बुलेट ट्रेन की सवारी जैसी खबरें मीडिया दिखाता रहा

- सर्वमित्रा सुरजन
प्रधानमंत्री मोदी जापान और चीन की यात्राओं पर गए। जापान यात्रा में तो मोदी मेरे भगवान टाइप स्वागत सत्कार और बुलेट ट्रेन की सवारी जैसी खबरें मीडिया दिखाता रहा। लेकिन असली टीआरपी कमाने का मौका चीन के दौरे पर मिला, जब सात साल बाद नरेन्द्र मोदी चीन पहुंचे, मौका था शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक का। यहां चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से नरेन्द्र मोदी की द्विपक्षीय वार्ता हुई।
प्रचलित मुहावरा है भंडारे में गए तो खाना खत्म, बाहर आए तो चप्पल गायब। अनुभवी कह गए हैं कि दोनों हाथों में लड्डू नहीं मिलते, न ही दो नावों की सवारी एक साथ की जा सकती है। वैसे तो ये सारी बातें जैविक तरीके से इस दुनिया में जन्म लेने वाले लोगों अर्थात साधारण मनुष्यों पर लागू होती हैं, लेकिन इस वक्त अपवादस्वरूप नॉन बायलॉजिकल तरीके से धरती पर आने का दावा करने पर श्रीमान मोदी पर भी लागू हो रही हैं। बिहार चुनाव जीतने के लिए अपनी मां के नाम पर कहे अपशब्द को रोकर भुनाने की जो कोशिश 2 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने की, उसका तो कोई फायदा फिलहाल मिलते नहीं दिख रहा है, बल्कि लोग पुराने वीडियो निकाल कर और दिखा दे रहे हैं कि खुद श्री मोदी ने कितनी बार महिलाओं का अपमान किया, या महिलाओं पर अत्याचार करने वालों के साथ वो खड़े रहे। वहीं जापान और चीन की यात्रा से जो सुर्खियां नरेन्द्र मोदी को बटोरने का मौका मिला था, वो भी खाक हो गया। ऐसा लग रहा है कि श्री मोदी के सलाहकारों की रणनीति या तो चूक रही है, या वे अपनी क्षमता खोते जा रहे हैं। चीन में वैश्विक नेताओं से नजदीकी और मोदी के जलवे का जो बुलबुला मीडिया ने तैयार किया था, उसे खुद मोदी ने अपने बयान से ध्वस्त कर दिया। 2 सितंबर से लेकर अगले दिन तक पूरा मीडिया मोदी की मां का अपमान, कांग्रेस राजद माफी मांगों जैसे नैरेटिव सेट कर माहौल बनाता रहा कि बिहार में महागठबंधन की हार इस मुद्दे पर हो जाएगी। लेकिन अब ऐसा दिख रहा है कि मोदी के लिए दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम वाली बात भी चरितार्थ हो रही है। चीन में शाहबाज शरीफ महफिल लूट रहे हैं और इधर भाजपा महिला सम्मान पर अपना बचाव नहीं कर पा रही है।
गौरतलब है कि विपक्ष की बिहार में 17 अगस्त से 1 सितंबर तक चली वोटर अधिकार यात्रा की सफलता को भाजपा ने कई तरीके से खारिज करने की कोशिश की। लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। बल्कि ट्रंप के लगाए टैरिफ और भारत-पाक पर दिए बयान से श्री मोदी की उलझनें और बढ़ती गईं। चुनाव आयोग भी अब तक विपक्ष की तरफ से उठाए गए वोट चोरी के संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया है। यही वजह रही कि वोटर अधिकार यात्रा के दौरान लगातार वोट चोर गद्दी छोड़ का नारा बुलंद रहा। यात्रा की सफलता राज्य में सत्ता परिवर्तन के संकेत दे रही है, जिससे भाजपा का घबराना स्वाभाविक है।
इस बीच प्रधानमंत्री मोदी जापान और चीन की यात्राओं पर गए। जापान यात्रा में तो मोदी मेरे भगवान टाइप स्वागत सत्कार और बुलेट ट्रेन की सवारी जैसी खबरें मीडिया दिखाता रहा। लेकिन असली टीआरपी कमाने का मौका चीन के दौरे पर मिला, जब सात साल बाद नरेन्द्र मोदी चीन पहुंचे, मौका था शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक का। यहां चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से नरेन्द्र मोदी की द्विपक्षीय वार्ता हुई। मीडिया ने गान गाया ड्रैगन-हाथी साथ आए तो अमेरिका डर गया। फिर रूस के राष्ट्रपति पुतिन, श्री मोदी को अपने साथ अपनी अत्याधुनिक कार में सम्मेलन स्थल तक ले गए, इसका वीडियो सामने आया। कैमरामैन ने एंगल मोदी की तरफ से रखा था, ताकि उन पर अच्छे से फोकस हो। मीडिया ने बताया कि दस मिनट के सफर में मोदी-पुतिन के बीच अच्छी बातचीत हुई। हालांकि ये कभी पता ही नहीं चलता कि असल में क्या बात हुई, क्योंकि ऐसे वीडियो बिना आवाज के भाजपा प्रसारित करती है। एक वीडियो में मोदी पुतिन और जिनपिंग के बीच हो रही चर्चा में बीच में दिख रहे हैं, पुतिन का हाथ पकड़कर जोर-जोर से हँस रहे हैं। पता नहीं मोदीजी को विदेश जाते ही क्या हो जाता है, उनके ठहाके गूंजने लगते हैं। देश में तो कभी इस तरह उन्हें किसी के साथ हँसते नहीं देखा गया। बहरहाल, इस वीडियो पर भी सवाल उठे कि जब पुतिन रूसी और जिनपिंग मंदारिन (चीन की भाषा) बोल रहे थे, तो उनके अनुवाद से पहले ही मोदी को ऐसा कौन सा चुटकुला समझ आ गया कि जोर से हँसने लगे। ऐसे ही ठहाके मोदी ने जो बाइडेन के सामने लगाए, फिर कनाडा में फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों से मुलाकात के दौरान लगाए। लेकिन इस हँसी-खेल में भारत के हित कितने सुरक्षित हैं, इसका जवाब न भाजपा देती है, न नरेन्द्र मोदी। भाजपा को इसी से मतलब है कि किसी भी तरह विश्वगुरु वाली छवि बनाई जाए। इसलिए पुतिन और जिनपिंग के साथ मोदी की तस्वीरों को शक्तिशाली तिकड़ी, मोदी की ताकत की तरह मीडिया से पेश करवाया गया। मोदी तो लौट आए, लेकिन चीन के तियेनमान चौक पर चीनी सेना की परेड की जो तस्वीरें सामने आईं वो नए सवाल खड़े कर रही हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान को हराने के 80 बरस पूरे होने की इस परेड में शामिल होने उ.कोरिया से किम जोंग उन भी पहुंचे। पुतिन ने किम जोंग उन को भी अपनी कार में बिठाया। परेड स्थल पर शी जिनपिंग, व्लादीमीर पुतिन और किम जोंग उन के ठीक पीछे शाहबाज़ शरीफ थे। पुतिन-शरीफ वार्ता के वीडियो भी सामने आए हैं। पुतिन ने पाकिस्तान को अपना पुराना सहयोगी बताया है। वहीं शरीफ ने पुतिन से कहा है कि आप भारत से दोस्ती निभाइए, हमें उसमें आपत्ति नहीं है, लेकिन आप हमारा भी सहयोग करिए क्योंकि क्षेत्र की स्थिरता के लिए यह जरूरी है। ट्रंप पहले ही पाकिस्तान के साथ खड़े हैं, चीन ने ऑपरेशन सिंदूर में पाक की पूरी मदद की, रूस भी उसके साथ आ रहा है। क्या इस नए समीकरण को मोदी ठहाकों में उड़ा सकते हैं, यह देखना होगा।
मोदी के लिए इस समय भारत की कुशलता से ज्यादा जरूरी शायद बिहार चुनाव जीतना है। इसलिए चीन से लौटते ही अगले दिन बिहार की महिलाओं से वर्चुअली संवाद किया और इस मौके पर करीब एक सप्ताह पहले दरभंगा में घटी घटना पर कांग्रेस और आरजेडी को घेरा। जिसमें किसी ने श्री मोदी को मां का नाम लेकर अपशब्द कहे। इस घटना की निंदा कांग्रेस और आरजेडी के नेताओं ने फौरन की, लेकिन उस वक्त मोदी का कोई बयान सामने नहीं आया। इस बीच उनके बाकी कार्य-व्यापार, सैर-सपाटा सब चले। चीन में हँसी-मजाक करने में उन्हें गुरेज नहीं हुआ। लेकिन बिहार की महिलाओं से सतबहिनी और छठी मईया का नाम लेकर अपनी मां के अपमान की बात मोदी ने की और रोए, इस दौरान बिहार भाजपा के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल भी रो पड़े। जबकि दो महीने पहले श्री जायसवाल ने कैमरे पर ही बताया था कि उनके गांव में मास्टर को मां का नाम लेकर गाली दी जाती है।
पिछले लोकसभा चुनावों के वक्त ही एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी के शब्द थे कि जब तक मां जीवित थीं, मैं मानता था कि मेरा जन्म बायलॉजिकल तरीके से हुआ है, लेकिन मां के जाने के बाद मुझे लगता है कि मुझे परमात्मा ने किसी विशेष कार्य के लिए भेजा है। यह भी सीधे-सीधे अपनी मां का अपमान था, जिसके 9 महीने के कष्ट को एक झटके में मोदी ने खारिज किया। नोटबंदी के वक्त अपनी मां को बैंक की लाइन में खड़ा करवाना या जब वे आईसीयू में थी, तो उन्हें देखने के लिए कैमरामैनों की टीम के साथ भीतर जाना, यह भी उन्हें कष्ट देना ही था। लेकिन इन सबमें श्री मोदी को मां का अपमान नहीं दिखा। आसाराम, कुलदीप सेंगर, ब्रजभूषण शरण सिंह, प्रज्ज्वल रेवन्ना, प्रेम शुक्ला ऐसे दसियों लोग मोदी के साथ दिखे हैं या उनके करीबी रहे हैं, जिन्होंने किसी न किसी तरह महिलाओं का अपमान किया या उनका शोषण किया।
विवाहित होने के बावजूद मोदी अपनी पत्नी से अलग रह रहे हैं, यह उनका व्यक्तिगत मामला है। अब तक यही बताया गया है कि श्री मोदी ने विवाह के कुछ वक्त बाद ही इस संबंध से खुद को अलग कर लिया था। मगर क्या उनकी पत्नी जसोदाबेन की मर्जी कभी पता चली है कि क्या वे भी विवाहिता होने के बाद परित्यक्ता की तरह रहना चाहती थीं या नहीं, या उनकी कुछ और इच्छा थी। अपने विवाहित होने का सच चुनाव के शपथपत्र में न बताना, यह भी तो विवाह जैसी संस्था का अपमान है। क्या यह सब नारी शक्ति का अपमान नहीं है। सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, राबड़ी देवी, रेणुका चौधरी, बिल्किस बानो, कर्नल सोफिया कुरैशी ऐसी कितनी ही महिलाओं का अपमान मोदी या भाजपा या उनसे जुड़े लोगों ने किया है। मणिपुर तो महिला अपमान की पराकाष्ठा दिखा चुका है। इसका हिसाब करने बैठे तो भाजपा पूरी तरह कटघरे में दिखाई देगी। कांग्रेस समेत विपक्ष के बाकी दलों में कुछ लोग ऐसे होंगे, जिन्होंने महिलाओं का अपमान किया है। लेकिन राहुल गांधी इस मामले में पूरी तरह बेदाग हैं। मोदी कभी इस मामले में उनकी बराबरी नहीं कर पाएंगे। भारत जोड़ो यात्रा और उसके बाद भी अनेक मौकों पर देखा गया है कि कैसे महिलाएं खुद बढ़कर उनसे मिलती है, हाथ मिलाती हैं, गले लगती हैं और बेझिझक अपना स्नेह और प्यार उनके लिए दिखाती हैं। इसलिए भले ही विपक्ष के मंच से श्री मोदी के लिए अपशब्द कहे गए, लेकिन उसमें राहुल गांधी या तेजस्वी यादव पर सवाल नहीं उठाए जा सकते, क्योंकि वे वहां थे ही नहीं।
जहां तक महिलाओं के अपमान की बात है तो यह भारतीय समाज का कड़वा सच है। सारे अपशब्द महिलाओं से जुड़े होते हैं। महिलाएं कारोबार, राजनीति, फिल्म, कला, खेल किसी भी क्षेत्र में तरक्की करें, उन्हें लांछित करना शुरु हो जाता है। नरेन्द्र मोदी चाहते तो 11 बरसों में समाज की इस मानसिकता को बदलने की कोशिश कर सकते थे, लेकिन जिन्हें कांग्रेस की विधवा और जर्सी गाय जैसे शब्दों के सहारे भाषण देना आता हो, वे अब रोने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते।


