ट्रंप ने टैरिफ के बाद वीजा शुल्क बढ़ाया : मोदी कुछ भी नहीं रोक पा रहे!
जब नया नया सोशल मीडिया आया था तो लोग वहां हैप्पी बर्थ डे के मैसेज पाकर खुश हो जाते थे। केक फूल शैम्पेन की इमोजी देखकर खुद को मशहूर हस्ती समझने लगते थे

- शकील अख्तर
भारत का युवा बोलेगा। आज नहीं तो कब बोलेगा कि उसे भी वैसी शिक्षा और फिर उसके बाद नौकरी के ऐसे अवसर क्यों नहीं मिल रहे? उसे पकौड़े बेचने की अपमानजनक सलाह क्यों दी जा रही है? आईआईटी से इंजीनियर बनने के बदले उसे आईटीआई से मेकेनिक क्यों बनाया जा रहा है?
जब नया नया सोशल मीडिया आया था तो लोग वहां हैप्पी बर्थ डे के मैसेज पाकर खुश हो जाते थे। केक फूल शैम्पेन की इमोजी देखकर खुद को मशहूर हस्ती समझने लगते थे। लेकिन अब सामान्य आदमी भी सच को समझ चुका है कि यह सारी मुबारकबादें ऐसी ही जिसे आज के युवा की भाषा में एवंई कहते हैं, होती है। मगर हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विदेशों से जन्मदिन की बधाइयां पाकर अभी भी यह समझते हैं कि वे कोई वाकई बड़ी अन्तरराष्ट्रीय हस्ती हैं। विश्व गुरु जो वे कहते हैं उसका गुमान और बढ़ जाता है। विदेश मंत्रालय में एक से एक काबिल अफसर हैं, जिन्होंने दुनिया देखी है, खुद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी, मगर किसी की हिम्मत नहीं होती कि वह बता सके कि यह एक सामान्य औपचारिकता है। दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों को भी ऐसी ही बधाइयां मिलती हैं। और भारत तो एक बड़ा देश है इसलिए यहां के प्रधानमंत्री को मिलना स्वाभाविक है। और यह तो कोई इशारों में भी नहीं बता सकता कि जैसे सोशल मीडिया पर जो ज्यादा ध्यान आकर्षण चाहता है लिख देता है कि नहीं दोगे बधाइयां उसे फिर लोग दे ही देते हैं। जन्मदिन की बधाइयां कोई पैमाना नहीं आपके महत्वपूर्ण होने का। मगर हमारे यहां जिस तरह से गोदी मीडिया ने खुशियां मनाईं, भक्त एक-एक बधाई गिनकर शोर मचाने लगे कि देखो कितना मानते हैं दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्ष हमारे मोदी जी को और फिर खुद मोदी जी ने एक एक राष्ट्राध्यक्ष को दिए धन्यवाद को जिस तरह प्रचारित किया गया वह ऐसा था जैसे इसके जरिए आप विश्व विजय की घोषणा कर रहे हों।
खासतौर से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जन्मदिन की बधाई तो ऐसे बताई गई कि जैसे ट्रंप ने आत्म समर्पण कर दिया हो। जैसे राजा का जन्मदिन होता था तो खुश होकर कुछ दे या न दे मगर नाराज होने पर सज़ा जरूर दे देता था। वैसे ही पेश किया गया कि ट्रंप समझ गया कि अगर मोदी जी नाराज हो गए तो फिर बस समझ लेना खैर नहीं। डर कर ट्रंप ने फोन किया। मगर दो दिन भी नहीं बीते और ट्रंप ने फिर बता दिया कि वह अपने लिए नारे लगाने वाले मोदी को एक चुनाव प्रचार करने वाले से ज्यादा नहीं समझ रहा।
पचास प्रतिशत टैरिफ के बाद भारतीयों के लिए वीजा एच -1बी की फीस सौ गुना तक बढ़ा दी। एक लाख डालर। मतलब लगभग 90 लाख रूपए। और यह जब आप सुबह इन पंक्तियों को पढ़ रहे होंगे तो लागू हो चुका होगा। पहले इस वीजा के लिए छह लाख रुपए देना होता था। इसका सबसे ज्यादा असर भरतीयों पर पड़ेगा।
भक्त और अब उसी तरह का हो चुका मीडिया कई तर्क लेकर समाने आया है कि यह सब देशों को लिए है। वह यह नहीं बता सकता कि सबसे ज्यादा टेक्नोक्रेट भारत ने बनाए थे। और 2014 से पहले। नेहरू द्वारा स्थापित आईटीआई ने। अभी विदेश में रह रहे एक डाक्टर और लेखक प्रवीण झा ने बहुत अच्छा लिखा है कि एक अमेरिकी टीवी पत्रकार ने कहा कि 'हम सऊदी अरब से तेल मंगाते हैं, जापान से गाड़ियां, स्काटलेंड से व्हिस्की, लेकिन आपको मालूम है हम भारत से कौन सी बेशकीमती चीज मंगाते हैं? हम मंगाते हैं वहां के लोग। दुनिया के सबसे दिमागी और परिश्रमी इंजीनियर जो भारत से आते हैं।' और यह सारे इंजीनियर नेहरू द्वारा स्थापित आईआईटी से निकले हैं। मोदी जी ने इनका मजाक उड़ाने में भी कोई कसर नहीं रखी कहा आईआईटी नहीं आईटीआई चाहिए। वही खोल देते! लेकिन केवल बातें! नेहरू को नीचा दिखाने के लिए उनकी हर बात का विरोध। मगर अब शायद चलेगा नहीं!
वीजा की यह नई फीस लाखों भारतीयों को अमेरिका छोड़ने पर मजबूर कर देगी। बता दें कि इस वीजा प्रणाली के अन्तर्गत 75 प्रतिशत वीजा भारतीयों को मिलते थे। इसलिए गोदी मीडिया के इस बचाव में कोई दम नहीं है कि शुल्क पूरी दुनिया के लिए बढ़ाया गया है। जहां नेहरू, इन्दिरा गांधी जैसे नेता ही नहीं हुए जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में इतना काम किया है और खासतौर से उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा में जिससे वहां ऐसे आईटी, हेल्थ, फाइनेंस इंजीनियरिंग, विज्ञान जैसे क्षेत्रों के प्रोफेशनल निकल पाए हों।
भारत का युवा बोलेगा। आज नहीं तो कब बोलेगा कि उसे भी वैसी शिक्षा और फिर उसके बाद नौकरी के ऐसे अवसर क्यों नहीं मिल रहे? उसे पकौड़े बेचने की अपमानजनक सलाह क्यों दी जा रही है? आईआईटी से इंजीनियर बनने के बदले उसे आईटीआई से मेकेनिक क्यों बनाया जा रहा है?
बातें बातें केवल बातें! इससे देश के लोगों को तो बेवकूफ बनाया जा सकता है। विदेश के लोगों को नहीं। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कह दिया देश के पास एक कमजोर प्रधानमंत्री है।
बहुत बड़ा हमला। और राहुल ने कहा मैं रीपिट कर रहा हूं। मतलब चेतावनी। इससे पहले 2017 में राहुल ने मोदी को कमजोर प्रधानमंत्री कहा था। विदेश नीति के साथ अमेरिका के इसी वीजा मामले में अमेरिका के सामने झुकने पर। कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने इस मामले में और साफ बोला है। उन्होंने कहा कि मोदी मोदी के नारे लगवाना विदेश नीति नहीं होती। सही है। पिछले 11 साल से मोदी जी केवल अपनी छवि चमका रहे हैं। जबकि इससे पहले यह होता था कि सरकार देश के हित के लिए काम करती थीं। अपनी व्यक्तिगत छवि की चिन्ता किसी प्रधानमंत्री ने नहीं की। देश आगे बढ़ेगा, देश की जनता को फायदा होगा, युवा को रोजगार के अवसर मिलेंगे यही सब हर प्रधानमंत्री का उद्देश्य होता था।
यहां तो यह हुआ कि अपनी लकीर बढ़ी करने के चक्कर में प्रधानमंत्री बाकी सब प्रधानमंत्रियों की लकीरें छोटी करना शुरू कर दीं। देखिए कितने आश्चर्य की बात है कि अपनी ही पार्टी के वाजपेयी तक का नाम नहीं लेते। भाजपा में वाजपेयी से बड़ा कोई नेता नहीं हुआ। भाजपा के पहले प्रधानमंत्री थे। मगर उनके नाम पर भी 11 साल में कुछ नहीं बनाया। ग्वालियर मध्य प्रदेश जहां के वे रहने वाले थे। उनका जन्म हुआ। पढ़े लिखे वहां भी उनके नाम पर कोई एक चीज नहीं बनाई गई।
एचडी देवगौड़ा तो अभी हैं। पूर्व प्रधानमंत्री उनके समर्थन में हैं। मगर कभी उनकी तारीफ भी नहीं करते। बता सकते हैं कि जम्मू कश्मीर में शांति की वापसी में देवगौड़ा का महत्वपूर्ण रोल था। प्रसंगवश बता दें कि आतंकवादियों से हथियार डलवाने में और कश्मीर के युवकों को पाकिस्तान से आने वाले आतंकवादियों से अलग करने में देवगौड़ा ने बड़ी भूमिका निभाई थी।
उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए वाजपेयी सरकार ने हुर्रियत कान्फ्रेंस से पहली बार अधिकृत बातचीत की थी। अभी पुरानी सरकारों पर जबर्दस्ती सवाल उठाने के लिए यासिन मलिक को ले आए। इन्हें पता ही नहीं है कि यासिन मलिक जाने कितने सालों से हथियार छोड़कर खुद को गांधीवादी कहने लगा है। हुर्रियत से वह बातचीत गृह मंत्रालय के दफ्तर नार्थ ब्लाक में गृह मंत्री मंत्री आडवानी ने की थी।
मगर सारे इतिहास को खत्म करके सब कुछ अपने नाम से कर लेने की लिप्सा ने अब वह दिन ला दिया है कि सीधा उन्हीं से कहा जाने लगा है कमजोर प्रधानमंत्री।
देश तक 2014 में आजाद बता दिया गया। खुद बोल दिया कि 2014 से पहले भारत में जन्म लेना शर्म की बात थी।
हर चीज की एक हद होती है। लगता है अब वह आ गई। देश के नाम संबोधन हो रहा है। मगर अब देश की जनता और खासतौर से युवा, प्रोफेशनल या जिसे राहुल ने कहा है जेन जी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


