दक्षिण एशियाई देशों के लिए सावधानी और सहयोग से चलने का समय
अब समय आ गया है कि हम कुछ सकारात्मक सोचना शुरू करें। हमें यह समझना होगा कि हम तीन न्यूक्लियर हथियार वाले पड़ोसी हैं।

— डॉ. अरुण मित्रा
अब समय आ गया है कि हम कुछ सकारात्मक सोचना शुरू करें। हमें यह समझना होगा कि हम तीन न्यूक्लियर हथियार वाले पड़ोसी हैं। बयानबाजी करने के बजाय हमें अपने पड़ोसियों के साथ भरोसा बनाने की कोशिश करनी चाहिए। यह आसान काम नहीं होगा क्योंकि अमेरिकी भारत-प्रशांत मामलों में ज़्यादा से ज़्यादा शामिल हो रहे हैं। उनका गेम प्लान इस इलाके में हथियार बेचना है।
पिछले कु छ समय से दक्षिण एशिया में एक के बाद एक तेज़ी से हो रही घटनाएं चिंता की बात हैं। हमने 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकवादी हिंसा देखी, जिसमें 26 बेगुनाह लोग मारे गए। अब 10 नवंबर को दिल्ली में लाल किले के पास एक कार में हुए धमाके में 15 लोग मारे गए हैं। उसी दिन इस्लामाबाद में हुए धमाके में 10 लोग मारे गए। यह इस बात का इशारा है कि आतंकवादी जब चाहें कहीं भी लोगों को मार सकते हैं। इन घटनाओं ने इस इलाके में सुरक्षा की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अंदरूनी सुरक्षा संकट से बाहरी तनाव पैदा हो सकता है, और भारत और पाकिस्तान भी एक-दूसरे पर इल्ज़ाम लगाने में देर नहीं लगाते। इन घटनाओं से तनाव बढ़ता है और बयानबाज़ी बढ़ती है, जिससे हथियारों की होड़ बढ़ जाती है। ऐसी घटनाओं से बाहरी ताकतों को भी फ़ायदा उठाने का मौका मिलता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 60 से ज़्यादा बार यह दावा दोहराया है कि उन्होंने इस साल भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को 'खत्म करने' में मदद की; उन्होंने भारत और पाकिस्तान को धमकी दी कि अगर उन्होंने झगड़ा खत्म नहीं किया तो वे 350प्रतिशत टैरिफ लगा देंगे; 'मोदी, शरीफ़ ने मुझे फ़ोन किया'। 'मैं नहीं चाहता कि आप लोग एक-दूसरे पर न्यूक्लियर हथियार चलाओ, लाखों लोगों को मारो और लॉस एंजिल्स में न्यूक्लियर धूल उड़े'। उन्होंने आगे दावा किया कि उन्हें 'प्रधानमंत्री मोदी का फ़ोन आया, जिसमें कहा गया, 'हमारा काम हो गया'। मैंने कहा, 'तुम्हारा क्या हो गया?' मिस्टर ट्रंप ने कहा और दावा किया कि मिस्टर मोदी ने जवाब दिया: 'हम जंग नहीं करने जा रहे हैं।' ट्रंप का धमकी भरे अंदाज़ में कहना एक तरह से दो आज़ाद देशों के आपसी मामलों में सीधा दखल है। हैरानी की बात है कि भारत सरकार ने इनकार का कोई बयान जारी नहीं किया है।
अमेरिका-चीन इकानॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन की नई रिपोर्ट में भारत के साथ मई 2025 की लड़ाई में पाकिस्तान की मिलिट्री कामयाबी का दावा किया गया है, और पहलगाम को 'विद्रोही हमला' बताया गया है। रिपोर्ट में चीन के लॉजिस्टिक्स के साथ पाकिस्तान को अप्रत्यक्ष समर्थन पर भी ज़ोर दिया गया है। कोई हैरानी नहीं कि मिस्टर ट्रंप ने पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल मुनीर को लंच पर बुलाया। वे आर्थिक रूप से मुश्किल में फंसे पाकिस्तान के साथ रिश्ते बढ़ाने के लिए भी तैयार हैं।
एक और घटना जो हुई है, वह है बांग्लादेश की एक अदालत द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री हसीना वाजेद को मौत की सज़ा सुनाना। हसीना वाजेद अभी भारत में हैं और बांग्लादेश सरकार ने मांग की है कि उन्हें ढाका वापस भेजा जाए। भारत सरकार के लिए यह कोई आसान फैसला नहीं है। हसीना शेख मुजीब-उर-रहमान की बेटी हैं, जिन्होंने पाकिस्तान से बांग्लादेश की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। इतिहास गवाह है कि 1970-71 में पाकिस्तानी मिलिट्री ने कितने ज़ुल्म किए थे।
2015 में ढाका की अपनी यात्रा के दौरान मुझे पता चला कि पाकिस्तानी सेना ने उस समय यूनिवर्सिटी, कॉलेज और मेडिकल संस्थानों में पढ़े-लिखे लोगों पर खास ध्यान देते हुए करीब 30 लाख लोगों को मार डाला। भारत सरकार ने लोगों के विद्रोह में मदद की और आखिरकार पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और बांग्लादेश बना। तब से भारत के बांग्लादेश के साथ बहुत अच्छे रिश्ते हैं। इस दौरान बांग्लादेश ने आर्थिक रूप से तरक्की की और स्वास्थ्य समेत कई क्षेत्रों में भारत के विकास के संकेतकों को पीछे छोड़ दिया।
फिर भी देश में बेरोजगारी और महंगाई जैसी कई समस्याएं थीं। इसकी वजह से छात्रों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए। हसीना वाजेद स्थिति की गंभीरता को समझने में नाकाम रहीं। छात्रों से बात करने के बजाय उन्होंने बहुत ज़्यादा दमन का सहारा लिया, जिससे बड़ी संख्या में छात्र मारे गए। इससे इस्लामिक कट्टरपंथी गुटों को जगह मिली। अब यह पूरी तरह साफ है कि यह सब तब हुआ जब उन्होंने अमेरिका को एक द्वीप देने से मना कर दिया था। उन्होंने साजिश रची और स्थिति का पूरा फायदा उठाया और मोहम्मद यूनुस को केयर टेकर बना दिया।
इस तरह अब भारत के पूर्वी और पश्चिमी दोनों बॉर्डर पर तनाव है। चीन के साथ हमारे व्यापारिक संबंध हैं, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच कई बैठकों के बावजूद इस बात की कम ही संभावना है यह रिश्ता रणनीतिगत बन पाएगा।
हसीना वाजेद के प्रत्यार्पण के बारे में सरकार को सभी राजनीतिक पार्टियों को बुलाकर उनसे बातचीत करनी चाहिए। यह उकसाने या कट्टर होने का समय नहीं है क्योंकि इस इलाके में कोई भी बड़ी सशस्त्र लड़ाई बहुत बुरी होगी। यह दुख की बात है कि अमेरिका के साथ रिश्ते बनाने के चक्कर में हमने नॉन-अलाइंड मूवमेंट (एनएएम) को छोड़ दिया। हमने सार्क को भी लगभग बेकार कर दिया। इसीलिए ग्लोबल साउथ अब हमारी तरफ नहीं देखता। वे इसके बजाय चीन के साथ मिल रहे हैं।
इसलिए अब समय आ गया है कि हम कुछ सकारात्मक सोचना शुरू करें। हमें यह समझना होगा कि हम तीन न्यूक्लियर हथियार वाले पड़ोसी हैं। बयानबाजी करने के बजाय हमें अपने पड़ोसियों के साथ भरोसा बनाने की कोशिश करनी चाहिए। यह आसान काम नहीं होगा क्योंकि अमेरिकी भारत-प्रशांत मामलों में ज़्यादा से ज़्यादा शामिल हो रहे हैं। उनका गेम प्लान इस इलाके में हथियार बेचना है परन्तु हथियारों की रेस नहीं बढ़ने देना चाहिए, क्योंकि यह इलाके की सुरक्षा और विकास के लिए नुकसानदायक होगा। इससे शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी सामाजिक ज़रूरतों को लिए आवश्यक संसाधन हथियारों की दौड़ में लग जाएंगे।


