नाम मुस्लिम का लेते हैं मगर नुकसान सबका करते हैं
प्रधानमंत्री मोदी की पूरी राजनीति केवल बोलने पर आधारित है। कुछ भी बोलो। अभी असम में बोले कांग्रेस इस राज्य को पूर्वी पाकिस्तान को दे देना चाहती थी।

- शकील अख्तर
दूसरा उदाहरण। अमेरिका के टैरिफ ने भारत लघु मध्यम उद्योगों की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी है। टेक्सटाइल, लेदर, जेम्स एंड ज्वेलरी, जेनेरिक दवाएं, बासमती चावल, मसाले, कालीन, इलेक्ट्रानिक्स जैसी तमाम चीजें भारत सो अमेरिका जाती थीं। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इसी साल अहमदाबाद के कांग्रेस अधिवेशन में चेतावनी दी थी कि भारत में आर्थिक तूफान आने वाला है।
प्रधानमंत्री मोदी की पूरी राजनीति केवल बोलने पर आधारित है। कुछ भी बोलो। अभी असम में बोले कांग्रेस इस राज्य को पूर्वी पाकिस्तान को दे देना चाहती थी। बंगाल में जंगल राज को और बढ़ा कर के महा जंगलराज बोल दिया। अभी केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी में भी चुनाव हैं वहां भी ऐसे ही बोलेंगे। शब्दों का अर्थ ही खत्म हो जाएगा। मोदी को इससे कोई मतलब भी नहीं है। उन्हें केवल वोट चाहिए। वह इसके लिए भैंस, मंगलसूत्र, श्मशान, कब्रिस्तान कुछ भी बोल सकते हैं।
11 साल हो गए। पहले लगता था कि प्रधानमंत्री बन गए हैं अब गंभीर बात करेंगे। मगर मोदीजी प्रधानमंत्री पद की गरिमा के अनुरूप बनने को तैयार ही नहीं हुए। उन्हें वोट मिल रहे हैं, मीडिया समर्थन कर रहा है इसके अलावा उन्हें कुछ नहीं चाहिए। जैसे बाकी चीजें कहते हैं वैसे ही देश विकास कर रहा है, वे खुद विश्व गुरु बन गए हैं, मानने लगे हैं।
मगर क्या इससे देश बनता है? जनता चाहे चुप हो जाए। अपने सोचने-समझने की शक्ति खोकर उनके पीछे चलती रहे। मगर कब तक? अनंत काल तक यह नहीं हो सकता। बेवकूफ बनने की भी एक सीमा होती है। अभी जो जनता पर नशा है वह धार्मिक उन्माद का। मुस्लिम को मोदी ने टाइट कर रखा है। बस प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष यही मैसेज लगातार भेजा जाता है। पर पीड़ा में सुख लेने के इस नशे में जनता अपनी तकलीफें भूली हुई है।
लेकिन क्या यह नरेटिव ( कहानी, प्रचार) सही है कि नुकसान केवल मुस्लिम का हो रहा है बाकी लोगों का नहीं?
आइये कुछ उदाहरणों से देखते हैं। एक, मोदी सरकार ने संसद के अभी खत्म हुए इस शीतकालीन सत्र में ग्रामीणों को अपने ही गांव में जब भी जरूरत हो काम मांगने का गारंटीशुदा अधिकार मनरेगा खत्म कर दिया। इसके बदले में जो दूसरी योजना 'जी राम जी' लाए हैं उसमें काम की कोई गारंटी नहीं है। पैसा होगा तो काम चलेगा नहीं तो नहीं।
पहले ऐसा नहीं था अगर गांव वालों को काम चाहिए तो सरकार को पैसा देना ही होगा। और मजदूरी का पूरा पैसा केन्द्र सरकार को। अब वह नियम भी बदल दिया। राज्य सरकार को इसमें 40 प्रतिशत देना होगा। राज्य सरकारें वैसे ही कर्ज लेकर अपना खर्च चला रही हैं मजदूरी का पैसा कहां से देंगी योजना बंद हो जाएगी।
अब यही वह सवाल है कि नुकसान किस का होगा? गांवों के दलित, पिछड़े, आदिवासियों, महिलाओं का। जिनसे कहा जा रहा है कि मोदी सरकार मुस्लिम को टाइट कर रही है। मुस्लिम इस योजना का सबसे कम लाभार्थियों में है। उसे कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा मगर गांव के बाकी लोगों के रोजगार का मुख्य साधन खत्म हो जाएगा। नाम मुस्लिम का लेते हैं मगर नुकसान सबका करते हैं।
दूसरा उदाहरण। अमेरिका के टैरिफ ने भारत लघु मध्यम उद्योगों की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी है। टेक्सटाइल, लेदर, जेम्स एंड ज्वेलरी, जेनेरिक दवाएं, बासमती चावल, मसाले, कालीन, इलेक्ट्रानिक्स जैसी तमाम चीजें भारत सो अमेरिका जाती थीं। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इसी साल अहमदाबाद के कांग्रेस अधिवेशन में चेतावनी दी थी कि भारत में आर्थिक तूफान आने वाला है। और अभी इस टैरिफ की मार से परेशान भदोई के कालीन उद्योग वाले जब राहुल को अपना दुखड़ा सुनाने आए तो राहुल ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा टैरिफ के खिलाफ कुछ भी न करने के कारण वह आर्थिक तूफान आ गया है।
अब यहां भी वही बात। प्रचार तो यह किया जाता है कि मोदी सरकार की सख्ती ने मुस्लिम को परेशान कर रखा है। मगर यहां फिर केवल परेशान होने वाला नहीं आर्थिक रूप से पूरी तरह टूट गया उद्योगपति और व्यापारी बहुसंख्यक समुदाय का है।
एक और उदाहरण। लास्ट। प्रदूषण जानलेवा हो गया है। अब बच्चों, बुजुर्गों की बात नहीं जवान लोगों की हालत खराब हो गई है। डाक्टर कहते हैं कि दिल्ली एनसीआर छोड़ दो। मगर हमारे प्रधानमंत्री इस विषय पर पूरी तरह मौन हैं। एक शब्द भी नहीं बोले। संसद में इस पर चर्चा भी नहीं होने दी। और मजेदार यह कि सरकार की तरफ से कहा गया कि कांग्रेस चर्चा नहीं चाहती थी।
पहली बात तो यह कि चर्चा मांगी ही कांग्रेस ने थी। लोकसभा की कार्यसूची में आ गया था। प्रियंका गांधी चर्चा की शुरुआत करने वाली थीं। दूसरी बात मोदी सरकार कांग्रेस के नहीं चाहने पर कब से मानने लगी? कांग्रेस ने तो वंदे मातरम पर भी कहा था कि उसका पूरा सम्मान है। हमारे हर अधिवेशन की शुरूआत ही इसी से होती है। इस पर विवाद क्यों कर रहे हो।
चर्चा की क्या जरूरत है? मगर यहां तो सरकार ने कांग्रेस की मर्जी के विरुद्ध इस पर चर्चा करवाई। और प्रदूषण जो इस समय की सबसे भयानक समस्या बन गई है उस पर यह मजेदार बात कहकर नहीं करवाई कि कांग्रेस नहीं चाहती है।
कांग्रेस क्यों नहीं चाहती है? यह नहीं बताया। मगर शायद इसलिए नहीं चाहती हो कि प्रदूषण का ये इल्जाम भी कहीं नेहरू के सिर पर न आ जाए। प्रदूषण के दोषी नेहरू। गोदी मीडिया शुरु हो जाए। खैर तो इस प्रदूषण से भी सब प्रभावित हैं। जैसा कि भक्त, मीडिया भाजपा के नेता किसी एक धर्म पर खास टारगेट करते हैं सिर्फ वही तो नहीं। प्रदूषण खराब चीज है मगर फिर इतना तो है कि भेदभाव नहीं करता। सबकी सांसें बंद कर रहा है। मगर मोदी सरकार पर कोई असर नहीं। केन्द्र में उनकी सरकार, दिल्ली राज्य में, पड़ोस में लगते हुए सभी राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान में। दिल्ली का नगर निगम भी। ट्रिपल इंजन सरकार। मगर प्रदूषण के खात्मे के लिए एक इंच भी आगे नहीं बढ़ती।
तो परेशान सब हैं। मगर यथार्थ पर कहानी भारी है। कहानी, नरेटिव यह कि तुम खुश रहो हम उनका इलाज कर रहे हैं। इलाज सबका हो रहा है। और जैसा बताया बहुसंख्यक समुदाय का ज्यादा। मगर हिन्दू-मुसलमान का नशा इतना गहरा है कि अपना नुकसान भी नहीं दिख रहा।
कांग्रेस यह करती थी, कांग्रेस वह करती थी, इसके अलावा मोदी जी कुछ बोलते हैं? जैसे बताया प्रदूषण पर नहीं बोले वैसे ही अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के जाने कितनी बार 60 बार या 70 बार किए इस दावे पर भी नहीं बोले कि सीज फायर मैंने व्यापार की धमकी देकर करवाया है। ट्रंप ने सीज फायर के बाद से लगातार पाकिस्तान की तारीफ की। हमारा अपमान किया। मगर क्या मजाल कि एक बार भी प्रधानमंत्री इसका जवाब देते।
मगर शायद देश की जनता यह भी नहीं देख सुन रही है। वोट चोरी हो रही है। उसके वोट का अब कोई मतलब नहीं है। वह किसी को भी डाले पहुंच वहीं रहा है जहां मोदी जी चाहते हैं।
कल को वह दिन भी आने वाला है जब जनता के पास कोई वोट मांगने भी नहीं आएगा। जब वोट को हम अपने हिसाब से मैनेज कर सकते हैं तो जनता के पास जाकर टाइम क्यों खराब करना। और जनता के वोट की कीमत नहीं रहेगी तो जनता की भी नहीं रहेगी।
बहुत मुश्किल दौर है। लोकतंत्र संविधान सब खत्म किया जा रहा है। खुद जनता का महत्व भी। जैसे राजा रजवाड़ों में प्रजा होती थी वैसे बनाए जाने की तैयारी हो रही है। रोज कर्तव्यों के बारे में बताया जाता। पुराने नाम हटाकर कर्तव्य पथ, कर्तव्य भवन जैसे नाम इसीलिए रखे गए हैं। प्रजा के केवल कर्तव्य ही होते थे। अधिकार आधुनिक विचार है। लोकतंत्र से निकला है। उसे देश के लिए नुकसानदेह बताकर पेश किया जाता है। राजतंत्र का तरीका। जहां राजा ही सर्वोपरि होता है। ईश्वर का प्रतिनिधि।
मोदी जी ने यही तो कहा था कि मुझे लगता है कि ईश्वर ने मुझे कुछ खास काम करने के लिए भेजा है। ईश्वर के दूत के रूप में वे खुद को स्थापित कर रहे हैं। जैसा चुनाव सुधार पर चर्चा के दौरान राज्यसभा में दिग्विजय सिंह ने कहा कि-
' खाता न बही जो मोदी अमित शाह कहें वही सही!'
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


