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दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश : बदलती वैश्विक जनसांख्यिकी की दिशा

मानव इतिहास में जनसंख्या हमेशा चुनौतियों और अवसरों दोनों की धुरी रही है। आज जब दुनिया की आबादी 8 अरब के पार पहुंच चुकी है, तब वैश्विक जनसांख्यिकी पहले से कहीं अधिक जटिल और परिवर्तनशील हो गई है

दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश : बदलती वैश्विक जनसांख्यिकी की दिशा
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  • अरुण कुमार डनायक

भारत आज दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है और लगभग 1.45 अरब की आबादी के साथ उसने चीन को पीछे छोड़ दिया है। बीते दशकों में ग्रामीण क्षेत्रों की जन्म दर, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और बढ़ती जीवन प्रत्याशा इसकी प्रमुख वजह रही हैं। लेकिन बढ़ती आबादी के साथ शहरों पर दबाव, सीमित रोजगार, शिक्षा-स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ता बोझ और संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियां भी सामने हैं।

मानव इतिहास में जनसंख्या हमेशा चुनौतियों और अवसरों दोनों की धुरी रही है। आज जब दुनिया की आबादी 8 अरब के पार पहुंच चुकी है, तब वैश्विक जनसांख्यिकी पहले से कहीं अधिक जटिल और परिवर्तनशील हो गई है। तकनीकी प्रगति, बेहतर जीवन स्तर और स्वास्थ्य सुविधाओं ने इस बदलाव को नई दिशा दी है। 2025 की जनसंख्या रैंकिंग इसी परिवर्तन का संकेत है, जिसमें भारत, चीन, अमेरिका, इंडोनेशिया और पाकिस्तान वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले प्रमुख देश बनकर उभरे हैं।

भारत आज दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है और लगभग 1.45 अरब की आबादी के साथ उसने चीन को पीछे छोड़ दिया है। बीते दशकों में ग्रामीण क्षेत्रों की जन्म दर, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और बढ़ती जीवन प्रत्याशा इसकी प्रमुख वजह रही हैं। लेकिन बढ़ती आबादी के साथ शहरों पर दबाव, सीमित रोजगार, शिक्षा-स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ता बोझ और संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियां भी सामने हैं। इसके बावजूद भारत की विशाल युवा आबादी उसकी सबसे बड़ी ताकत है, जो सही नीतियों के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था को दिशा दे सकती है। साथ ही, देश की कुल प्रजनन दर घटकर 1.9 पर आना एक महत्वपूर्ण बदलाव है—कम बच्चों के कारण महिलाओं के पास शिक्षा, कौशल और आर्थिक गतिविधियों में भागीदारी के अधिक अवसर होंगे, जिससे उत्पादनशीलता और आर्थिक विकास को गति मिल सकती है।

चीन, जिसने दशकों तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश होने का गौरव रखा, आज जनसंख्या वृद्धि की उलटी दिशा में बढ़ रहा है। लगभग 1.42 अरब की आबादी के बावजूद वहां जन्म दर तेजी से गिर रही है। 1979 से 2015 तक लागू रही एक-बच्चा नीति के कारण आज चीन असंतुलित आयु संरचना, तेजी से बढ़ती वृद्ध आबादी और लैंगिक असमानता जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है। हालांकि सरकार अब परिवार विस्तार को प्रोत्साहित कर रही है, पर सामाजिक-आर्थिक बदलावों ने छोटे परिवार की प्रवृत्ति को मजबूत कर दिया है। इसका सीधा असर चीन की विशाल श्रम शक्ति और उसके विनिर्माण-केंद्रित आर्थिक मॉडल पर पड़ने वाला है।

अमेरिका लगभग 33.5 करोड़ की आबादी के साथ जनसंख्या के मामले में तीसरे स्थान पर है। इसकी जनसांख्यिकीय विविधता और जनसंख्या वृद्धि का मुख्य आधार जन्म दर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रवासन है। यही प्रवासन तकनीक, शिक्षा, उद्योग और सेवा क्षेत्रों में उसकी आर्थिक गतिशीलता को मजबूती देता है। हालांकि बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में आव्रजन नीतियों में होने वाले बदलाव भविष्य की अमेरिकी जनसंख्या संरचना को गहराई से प्रभावित कर सकते हैं।

इंडोनेशिया, लगभग 27.5 करोड़ की आबादी के साथ दुनिया का चौथा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। हजारों द्वीपों में फैले इस देश में जावा जैसे अत्यंत घनी आबादी वाले क्षेत्र हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार से जन्म दर में कमी आई है, फिर भी विशाल युवा आबादी के कारण रोज़गार और बुनियादी ढांचे पर दबाव लगातार बढ़ रहा है।

पाकिस्तान, 24 करोड़ से अधिक आबादी के साथ पांचवें स्थान पर है और यहां दुनिया की सबसे तेज़ जनसंख्या वृद्धि दरों में से एक है। अत्यधिक युवा आबादी विकास की संभावना भी है और बड़ी चुनौती भी। तेज शहरीकरण के कारण जल, ऊर्जा, आवास और रोजगार जैसी समस्याएं लगातार गंभीर होती जा रही हैं।

दुनिया की जनसंख्या संरचना को प्रभावित करने वाले कई कारक समानांतर रूप से कार्य कर रहे हैं। जन्म दर में अंतर, आर्थिक अवसर, सामाजिक प्रवृत्तियां, शिक्षा का प्रसार, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और लंबे समय तक लागू रहने वाली सरकारी नीतियां इन कारकों का हिस्सा हैं।

प्रवासन आज आधुनिक दुनिया की जनसंख्या को आकार देने वाली एक निर्णायक शक्ति बन चुका है। बेहतर शिक्षा, सुरक्षित जीवन, आर्थिक अवसर और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न विस्थापन ने इसे वैश्विक प्रक्रिया में बदल दिया है। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और अनेक यूरोपीय देश अपनी जनसंख्या और श्रम शक्ति को संतुलित रखने के लिए प्रवासन पर निर्भर हैं, जबकि आर्थिक संकट से जूझ रहे देशों से युवाओं का पलायन लगातार बढ़ रहा है। वहीं अवैध प्रवासन सुरक्षा, सामाजिक स्थिरता और प्रशासन के सामने नई और गंभीर चुनौतियां खड़ी कर रहा है।

विकसित देशों में वृद्ध होती आबादी एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और इटली जैसे देशों में कामकाजी आयु वर्ग घट रहा है, जबकि बुजुर्गों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था पर भारी दबाव पड़ रहा है। जन्म दर बढ़ाने के लिए सरकारी प्रयास हो रहे हैं, लेकिन सामाजिक बदलाव इन्हें सीमित प्रभाव ही दे पा रहे हैं।

आर्थिक दृष्टि से बड़ी जनसंख्या एक दोधारी तलवार है। एक ओर विशाल श्रम शक्ति और बड़ा घरेलू बाज़ार आर्थिक विस्तार को गति देता है, वहीं दूसरी ओर पर्याप्त रोज़गार, कौशल और संसाधन न होने पर बेरोज़गारी, असमानता और सामाजिक तनाव बढ़ता है। साथ ही, बढ़ती आबादी के लिए मजबूत अवसंरचना, स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा और जल प्रबंधन की आवश्यकता भी अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो जाती है।

2050 तक दुनिया की जनसंख्या संरचना में बड़े बदलाव तय माने जा रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले दशकों में अफ्रीका का वैश्विक जनसंख्या वृद्धि का मुख्य केंद्र बनेगा, जहां नाइजीरिया, इथियोपिया और कांगो जैसे देशों की आबादी तेज़ी से बढ़ेगी। एशिया में भारत की जनसंख्या वृद्धि धीमी होते हुए स्थिरता की ओर बढ़ेगी, जबकि चीन की आबादी घटने लगेगी। यूरोप पहले ही जनसंख्या गिरावट के दौर में प्रवेश कर चुका है, वहीं अमेरिका प्रवासन-आधारित मॉडल के सहारे जनसंख्या संतुलन बनाए रखेगा।

2025 की जनसंख्या रैंकिंग इस बात का संकेत है कि दुनिया एक नई जनसांख्यिकीय व्यवस्था की ओर बढ़ रही है। अब वैश्विक शक्ति-संतुलन का निर्धारण अब केवल अर्थव्यवस्था और सैन्य क्षमता से नहीं, बल्कि जनसंख्या संरचना से भी होगा। युवा आबादी वाले राष्ट्र आने वाले समय में विकास, नवाचार और उत्पादन के नए केंद्र बन सकते हैं, जबकि वृद्ध होती जनसंख्या वाले देशों के सामने सामाजिक सुरक्षा, श्रम शक्ति और आर्थिक स्थिरता की जटिल चुनौतियां होंगी। जलवायु परिवर्तन, बढ़ता प्रवासन और सीमित होते प्राकृतिक संसाधन इन चुनौतियों को और गहरा बना रहे हैं। ऐसे समय में जनसंख्या को बोझ नहीं, बल्कि सुनियोजित नीतियों, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के माध्यम से एक सशक्त राष्ट्रीय पूंजी में बदलना ही 21वीं सदी की सबसे बड़ी प्रशासनिक और राजनीतिक परीक्षा होगी। इस बदलते परिदृश्य में भारत को भी शिक्षा, कौशल विकास, महिला सशक्तिकरण और रोजगार सृजन को जनसंख्या नीति का केंद्र बनाने तैयारियां करनी होंगी ।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं )


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