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अरावली के मोरमुकुट गोवर्धन पर्वत की सुरक्षा भी ज़रूरी

अरावली पर्वतमाला के अस्तित्व को बचाने के लिए चिन्ता के साथ -साथ गंभीर चिन्तन भी होना चाहिए

अरावली के मोरमुकुट गोवर्धन पर्वत की सुरक्षा भी ज़रूरी
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विशेषज्ञ इसे दुनिया की बहुत पुरानी पर्वत श्रृंखला भी मानते हैं। इसे थार मरुस्थल के फैलाव को रोकने वाला पर्वत भी माना जाता है। यानी ईश्वर न करे, अगर कहीं यह नष्ट हो जाए तो शायद थार का रेगिस्तान इतना फैलेगा कि अभी जहां तक इसका विस्तार है, वह पूरा इलाका मरुस्थल बन जाएगा। पर्यावरण और जैव विविधता की दृष्टि से भी इस पर्वत श्रृंखला का विशेष महत्व है। इसका सबसे ऊंचा शिखर माउंट आबू है, जो राजस्थान में है। तीन नदियां -साबरमती, लूणी और बनास इस पर्वत से निकलती हैं ।

अरावली पर्वतमाला के अस्तित्व को बचाने के लिए चिन्ता के साथ -साथ गंभीर चिन्तन भी होना चाहिए।

पहाड़ों, जंगलों और नदियों जैसे मूल्यवान प्राकृतिक संसाधनों को बचाए रखना सम्पूर्ण मानवता की अस्तित्व-रक्षा के लिए भी आवश्यक है ।

हम सब आज तेज रफ़्तार आधुनिक विकास के युग में रहते हैं, जहां ईश्वर से प्राप्त पर्वतों,नदियों और जंगलों को भी हम लोग मुफ़्त की भौतिक वस्तु मानकर इनका बेतहाशा, बेतरतीब और बेरहमी से दोहन किए जा रहे हैं। अगर बहुत ही ज़रूरी हुआ तो इनका दोहन बहुत सीमित और संतुलित रूप से होना चाहिए, जिससे इनका अस्तित्व संकट में न पड़े और आर्थिक महत्व के साथ -साथ इनका प्राकृतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक सांस्कृतिक, धार्मिक और पर्यावरणीय महत्व भी कायम रहे । अरावली पर्वतमाला और उसके अभिन्न अंग गोवर्धन पर्वत की सुरक्षा के बारे में भी इन पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए ।

सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: लिया संज्ञान; खंडपीठ का गठन- आज 28 दिसम्बर को एक अच्छी ख़बर अरावली पर्वत के संदर्भ में देखने को मिली। अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को लेकर उठे विवादों के बीच माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को स्वत: संज्ञान में लेकर तीन सदस्यों की खंडपीठ का गठन किया है।

इस महत्वपूर्ण और सकारात्मक ख़बर के अनुसार मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता में गठित इस खंडपीठ में जस्टिस जे. के.माहेश्वरी और जस्टिस मसीह भी शामिल रहेंगे । वेकेशन के समय में भी माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस बात की गंभीरता को समझते हुए इसे सुनवाई पर लेना, अरावली पर्वत के संदर्भ में एक सुखद भविष्य की और हमें इंगित करता है ।

इस मुद्दे की याचिका पर सोमवार 29 दिसम्बर को सुनवाई की तारीख़ नियत की गई है ।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले केंद्र सरकार की सिफ़ारिशों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की जिस परिभाषा को स्वीकार किया है, उसके अनुसार आसपास की ज़मीन से कम से कम 100 मीटर (328 फीट) ऊंचे ज़मीन के हिस्से को ही अरावली पहाड़ी माना जाएगा। दो या उससे ज़्यादा ऐसी पहाड़ियां, जो 500 मीटर के दायरे के अंदर हों और उनके बीच ज़मीन भी मौजूद हो, तब उन्हें अरावली श्रृंखला का हिस्सा माना जाएगा ।

पर्यावरणविदों का कहना है कि सिफ़र् ऊंचाई के आधार पर अरावली को परिभाषित करने से कई ऐसी पहाड़ियों पर खनन और निर्माण के लिए दरवाज़ा खुल जाने का ख़तरा पैदा हो जाएगा, जो 100 मीटर से छोटी हैं, झाड़ियों से ढंकी हैं और पर्यावरण के लिए ज़रूरी हैं ।

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का बयान - अरावली पहाड़ियों की 'नई परिभाषा' पर हो रहे विरोध के बीच पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक बयान जारी किया है । इस बयान के मुताबिक़, केंद्र सरकार ने राज्यों को निर्देश जारी कर अरावली क्षेत्र में किसी भी नई माइनिंग लीज़ को देने पर पूरी तरह रोक लगा दी है । यह प्रतिबंध पूरी अरावली पर समान रूप से लागू होगा ।

अरावली पर्वतमाला का विस्तार - गुजरात के अहमदाबाद क्षेत्र से होते हुए राजस्थान, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और दिल्ली तक अरावली पर्वतमाला का विस्तार है। इसकी लम्बाई 670 से 750 किलोमीटर तक है। इसकी ऊंचाई 1, 720 मीटर है। राजस्थान में अजमेर, उदयपुर, माउंट आबू और अलवर सहित हरियाणा के गुरुग्राम, फरीदाबाद और मेवात और दिल्ली के दक्षिणी रिज अरवली के हिस्से में आते हैं ।

हल्दी घाटी के ऐतिहासिक युद्ध की साक्षी है अरावली पर्वतमाला- इतिहासकारों के अनुसार यह पर्वतमाला महाराणा प्रताप के संघर्षो का भी साक्षी है । हल्दी घाटी इस पर्वतमाला का एक पहाड़ी दर्रा है। वर्ष 1576 में हल्दी घाटी की ऐतिहासिक लड़ाई महाराणा प्रताप और अकबर की मुग़ल सेना के बीच हुई थी।

मुग़ल सेना का नेतृत्व अकबर का सेनापति राजा मान सिंह कर रहा था और महाराणा प्रताप का सेनापति था हकीम खान सूर ।

इस युद्ध में जब मेवाड़ के किले पर मुगलों ने कब्जा कर लिया था, तब भी महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी। वे अपने परिवार और वफादार सिपाहियों को लेकर अरावली की गुफाओं में रहने लगे और तमाम कठिनाइयों के बीच यहीं से अकबर की मुग़ल सेना के खिलाफ़ वीरतापूर्ण संघर्ष किया।वर्ष 1583 में दिवेर की लड़ाई में महाराणा प्रताप ने मुगलों को पराजित कर दिया। इस प्रकार अरावली पर्वत महाराणा प्रताप और उनके सैनिकों की वीरता की भी कहानी कहता है।

मरुस्थल के फैलाव को रोकने वाला पर्वत- विशेषज्ञ इसे दुनिया की बहुत पुरानी पर्वत श्रृंखला भी मानते हैं। इसे थार मरुस्थल के फैलाव को रोकने वाला पर्वत भी माना जाता है। यानी ईश्वर न करे, अगर कहीं यह नष्ट हो जाए तो शायद थार का रेगिस्तान इतना फैलेगा कि अभी जहां तक इसका विस्तार है, वह पूरा इलाका मरुस्थल बन जाएगा। पर्यावरण और जैव विविधता की दृष्टि से भी इस पर्वत श्रृंखला का विशेष महत्व है। इसका सबसे ऊंचा शिखर माउंट आबू है, जो राजस्थान में है। तीन नदियां -साबरमती, लूणी और बनास इस पर्वत से निकलती हैं । अरावली के उजड़ने पर ये नदियां भी संकट में पड़ जाएंगी। इस बारे में गंभीरता से सोचा जाना चाहिए ।

अरावली के इलाकों में भौगोलिक कारणों से बारिश भले ही कम होती हो, लेकिन जितनी भी होती है, उससे भू -जल की रिचार्जिंग और स्थानीय स्तर पर ज़मीन के भीतर जल -स्तर को संतुलित बनाए रखने में यह पर्वतमाला काफी मददगार है।

अरावली का मोर मुकुट है गोवर्धन पर्वत- धार्मिक दृष्टि से भी अरवली पर्वत बहुत महत्वपूर्ण है। उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले में वृन्दावन के नज़दीक स्थित गोवर्धन पर्वत को भौगोलिक दृष्टि से अरावली पर्वत श्रृंखला का ही एक हिस्सा माना जाता है। हालांकि गोवर्धन पर्वत एक छोटी पहाड़ी है, लेकिन भारतीय संस्कृति में धार्मिक दृष्टि से यह लोक -आस्था का प्रमुख केन्द्र है। श्रद्धालुओं के लिए यह अरावली का मोर मुकुट है। इसे अरावली का दक्षिणी विस्तार भी माना जाता है हालांकि यह अरावली की एक आउट लाइन (स्श्चह्वह्म्)है जो कि ब्रज में बरसाना एवं कामवन (कामा) क्षेत्र तक फैली हुई है।

भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में गोवर्धन पर्वत विशेष महत्व रखता है। मूलत: गोवर्धन पर्वत की लंबाई लगभग 8 किलोमीटर, चौडाई 4 किलोमीटर और ऊंचाई करीब 30 मीटर है ।

हज़ारों -लाखों तीर्थ यात्री करते हैं गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा- गोवर्धन पर्वत भगवान कृष्ण से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कथा के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें उन्होंने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुलवासियों को मूसलाधार बारिश से बचाया था।

हजारों -लाखों तीर्थ यात्री अपनी आस्था, श्रद्धा और भक्ति भाव से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते है। गोवर्धन पर्वत के साथ- साथ बरसाना राधारानी की लीला स्थली रहा है। यहां मोरकुटी गहवर वन आदि धार्मिक क्षेत्र हैं। वहीं कामवन जिसे आदि वृंदावन के नाम से पुराणों में जाना गया है, वहां बद्रीनाथ, केदारनाथ और चरणपहाड़ी जैसे दर्शनीय स्थल भी हैं। अत: धार्मिक दृष्टि से बृज में अरावली की पर्वत श्रृंखला अत्यन्त महत्वपूर्ण और भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली रही हैं।

अवैध उत्खनन की ख़बरें चिन्ताजनक- गोवर्धन, बरसाना एवं कामवन के आसपास के क्षेत्र में अवैध खनन की खबरें चिन्ताजनक हैं, खासकर अडींग गांव एवं कामा क्षेत्र में। यहां मिट्टी की अवैध खनन की गतिविधियां चल रही हैं, जो पर्यावरण और स्थानीय निवासियों के लिए हानिकारक हैं। स्थानीय लोगों ने प्रशासन से अवैध खनन पर कार्रवाई करने की मांग की है ।

वास्तव में अरावली भारत की एक महत्वपूर्ण पर्वत श्रृंखला है। इसके अस्तित्व पर अगर संकट मंडराने लगा है तो जनता में बेचैनी बहुत स्वाभाविक है। जन भावनाओं के अनुरूप इसके अस्तित्व की रक्षा के लिए सबको सजग होना चाहिए ।

(लेखक- सेवानिवृत्त न्यायाधीश छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट, बिलासपुर)


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