भारत में लगी नफरत की आग की लपटें विदेशों तक पहुंची
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी से असहमत देश के हर व्यक्ति को पाकिस्तान भिजवाने वाले 'विभाग' के अघोषित प्रभारी केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने देश के मुसलमानों को 'नमक हराम' बतलाते हुए कहा है कि 'उनकी पार्टी को ऐसे नमक हरामों के वोट नहीं चाहिए

- अनिल जैन
जब आपूर्ति कम होती है तो बाजार में चीजें दिखाई नहीं पड़ती हैं और उनकी कालाबाजारी होती है। अभी न तो जमाखोरी हो रही है, न ही कालाबाजारी। हो रही है तो सिफ़र् और सिफ़र् बेहिसाब-बेलगाम मुनाफाखोरी। इसे नग्न बाजारवाद का बेशर्म परीक्षण भी कह सकते हैं। जाहिर है कि सरकार या सरकारों ने अपने आपको जनता से काट लिया है। यह हमारे लोकतंत्र का बिल्कुल नया चेहरा है- घोर जनद्रोही और शुद्ध बाजारपरस्त।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी से असहमत देश के हर व्यक्ति को पाकिस्तान भिजवाने वाले 'विभाग' के अघोषित प्रभारी केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने देश के मुसलमानों को 'नमक हराम' बतलाते हुए कहा है कि 'उनकी पार्टी को ऐसे नमक हरामों के वोट नहीं चाहिए। भारत में नफरत की ये लपटें अब विदेशों में पहुंच गई हैं।
हाल ही में बिहार में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए गिरिराज सिंह ने एक मौलवी से अपनी कथित बातचीत का जिक्र करते हुए कहा, 'मैंने एक मौलवी साहब से पूछा कि क्या आपको आयुष्मान भारत कार्ड मिला? उन्होंने कहा- हां मिला। मैंने पूछा कि क्या उसमें हिंदू-मुसलमान हुआ? उन्होंने कहा- नहीं। मैंने कहा कि अच्छी बात है। फिर मैंने पूछा कि क्या आपने भाजपा को वोट दिया? उन्होंने कहा- हां। लेकिन जब मैंने कहा कि खुदा की कसम खाकर बताएं तो उन्होंने कहा कि नहीं दिया।''
इतना बताने के बाद गिरिराज सिंह ने कहा, 'मुस्लिम समुदाय केंद्र सरकार की सभी योजनाओं का लाभ लेने के बावजूद भाजपा को वोट नहीं देता है। जो किसी के उपकार को नहीं माने, उसे 'नमक हराम' कहा जाता है। बिहार में एनडीए सरकार के विकास कार्यों का जिक्र करते हुए गिरिराज सिंह ने कहा कि सड़कें, अस्पताल, बिजली, पानी सहित सभी सुविधाओं का मुसलमान उपयोग करते हैं, लेकिन फिर भी वे भाजपा का समर्थन नहीं करते हैं।''
गिरिराज सिंह के इस बेहद आपत्तिजनक बयान से भाजपा ने अभी तक अपने को अलग करते हुए इसे गिरिराज सिंह की निजी राय नहीं बताया है। किसी और समुदाय या जाति को लेकर भाजपा के किसी नेता ने ऐसा बयान दिया होता तो भाजपा उससे पल्ला झाड़ने में जरा भी देर नहीं करती। भाजपा गिरिराज के बयान से पल्ला इसलिए भी नहीं झाड़ सकती, क्योंकि जो उन्होंने कहा है, वह पार्टी का मूल स्वर है। खुद प्रधानमंत्री मोदी इस तरह के बयान हर चुनाव के दौरान देते हैं। मिसाल के तौर पर 2024 के लोकसभा चुनाव में ही राजस्थान की एक रैली में मोदी ने कांग्रेस पर मनगढंत आरोप लगाते हुए कहा था, 'जब कांग्रेस सत्ता में थी तो कहती थी कि देश की संपत्ति पर पहला हक मुसलमानों का है। इसका मतलब है कि अगर वे (कांग्रेस) सत्ता में आ गए तो आपकी मेहनत की कमाई उन घुसपैठियों को देंगे जो अधिक बच्चे पैदा करते हैं। क्या आपकी संपत्ति घुसपैठियों को दी जानी चाहिए?''
इसी तरह दिसंबर, 2019 में झारखंड की एक चुनावी रैली में मोदी ने कहा था कि, 'प्रदर्शनों के दौरान हिंसा करने वालों को उनके 'कपड़ों' से पहचाना जा सकता है। 'उनकी यह टिप्पणी मुस्लिम समुदाय पर थी, क्योंकि नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लेकर विरोध प्रदर्शनों में कई मुस्लिम छात्र और महिलाएं भी शामिल थीं।
ऐसे पचासों उदाहरण हैं जिनमें मोदी ने नफरत फैलाने वाले विभाजनकारी बयान दिए हैं। इसलिए गिरिराज सिंह के बयान पर भाजपा की चुप्पी स्वाभाविक है और इसीलिए उनके बयान को भाजपा का आधिकारिक बयान माना जा सकता है। चूंकि गिरिराज सिंह केंद्र सरकार में मंत्री हैं, इसलिए मंत्रिपरिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत के मुताबिक उनका बयान केंद्र सरकार का भी आधिकारिक बयान माना जाना चाहिए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखिया मोहन भागवत हाल के दिनों में कई बार सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि हिंदू और मुसलमान का डीएनए एक ही है और मुसलमान भी समान रूप से भारत के नागरिक हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि जो मुसलमानों से नफरत करता है वह सच्चा हिंदू नहीं हो सकता। उनकी ओर से भी अपने निष्ठावान स्वयंसेवक गिरिराज सिंह के बयान से असहमति जताने वाली कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। जाहिर है कि आरएसएस भी गिरिराज सिंह के बयान से सहमत है और मोहन भागवत जो कुछ कहते हैं वह उनके पाखंड के अलावा कुछ नहीं है।
जहां तक चुनाव आयोग की बात है, एक समय था जब चुनाव आयोग ऐसे बयानों का संज्ञान लेता था और कार्रवाई भी करता था लेकिन पिछले कुछ सालों से चुनाव आयोग ऐसे बयानों पर खामोश रहते हुए सत्ताधारी पार्टी के गठबंधन के सदस्य की तौर पर काम करता नजर आता है। मुख्य चुनाव आयुक्त के सारे बयान भी किसी राजनेता की तरह होते हैं। इसीलिए चुनाव आयोग के किसी भी कामकाज पर उठने वाले किसी भी सवाल पर सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता उसका बचाव करने मैदान में आ जाते हैं।
बहरहाल सवाल है कि अगर गिरिराज सिंह के मुताबिक मुसलमान भाजपा सरकार की योजनाओं का लाभ लेने के बावजूद भाजपा को वोट नहीं देते हैं, इसलिए वे 'नमक हराम' हैं तो फिर इस आधार पर तो भाजपा की नजरों में कर्नाटक के अलावा पूरा दक्षिण भारत नमक हराम है, क्योंकि वहां के लोग भी भाजपा को वोट नहीं देते हैं। इसी आधार पर पश्चिम बंगाल के भी आधे से कहीं ज्यादा हिंदुओं को भाजपा नमक हराम ही मानेगी, क्योंकि वे भी भाजपा को वोट नहीं देते हैं।
आजादी के बाद से अब तक देश में जितनी भी सरकारें रहीं, उनमें ज्यादातर सरकारों को मिले वोट से ज्यादा वोट उनके खिलाफ पड़े हैं, लेकिन किसी भी सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी ने अपने खिलाफ वोट देने वाले देश के किसी जाति, धर्म या समुदाय को कभी नमक हराम नहीं कहा। भाजपा को ही 2024 के लोकसभा चुनाव में 36.56 फीसदी वोट और उसके गठबंधन एनडीए को 42.50 फीसदी वोट मिले हैं। यानी देश के 57.50 फीसदी लोगों ने भाजपा और उसके सहयोगी दलों के खिलाफ वोट दिया है, इसलिए भाजपा की नजरों में देश के कुल मतदाताओं का बहुमत 'नमक हराम' हुआ।
दरअसल भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देश हमेशा से वेलफेयर स्टेट ही रहे हैं और सिर्फ भारत की ही बात की जाए तो आजादी के भारत में हर सरकार की कल्याणकारी योजनाएं भारत के लोगों के लिए ही रही हैं, लेकिन इससे पहले किसी सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी ने अपने को वोट न देने वाले लोगों को नमक हराम नहीं कहा, क्योंकि वे योजनाएं किसी प्रधानमंत्री या सरकार में रहे अन्य लोगों की पुश्तैनी जायदाद या पैसे से नहीं बल्कि देश की जनता द्वारा चुकाए जाने वाले टैक्स के पैसे से ही संचालित होती रही हैं। मोदी सरकार भी जो योजनाएं चला रही हैं वे भी किसी उद्योगपति के पैसे से या आरएसएस को हर साल गुरू दक्षिणा के रूप में मिलने वाले करोड़ों रुपयों से नहीं बल्कि देश के हर नागरिक द्वारा चुकाए जाने वाले टैक्स के पैसे से ही संचालित हो रही हैं।
दरअसल चुनावों में किसी पार्टी को वोट देना या नहीं देना ही हर व्यक्ति का लोकतांत्रिक अधिकार है। यह अधिकार देश का वैध नागरिक और मतदाता होने के नाते मुसलमानों को भी प्राप्त है। मुसलमान भी देश के कई हिंदुओं की तरह भाजपा और नरेन्द्र मोदी को पसंद नहीं करता, इसलिए वह उन्हें वोट नहीं देता। ऐसा करने से कोई नमक हराम नहीं हो जाता। नमक हराम तो उसे कहा जाना चाहिए जो देश से गद्दारी करे, देश के हितों के खिलाफ काम करे। भारत में रह कर, भारत का खाकर, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी करने वालों की संख्या सैकड़ों में हैं, जिनमें कई तो ऐसे भी हाल के वर्षों में पकड़े गए हैं जो अक्सर भारत माता की जय, वंदे मातरम और जय श्रीराम का नारा लगाते रहे हैं। केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के 2016 डेटा के अनुसार सिर्फ 2013 से 2026 के दौरान ही 46 ऐसे मामले सामने आए हैं, उसके बाद के नौ सालों में इसकी संख्या अनुमानत: 150 से ज्यादा है।
बहरहाल गिरिराज सिंह के बयान को बिहार के चुनाव में भाजपा के प्रचार अभियान की दिशा का सूचक माना जा सकता है। कोई आश्चर्य नहीं कि जब प्रधानमंत्री मोदी वहां अपना चुनाव अभियान शुरू करेंगे तो वे भी इसी तरह के विभाजनकारी बयान देने की अपनी परंपरा को जारी रखेंगे। कोई आश्चर्य नहीं कि भाजपा बिहार में चुनाव जीतकर वहां पहली बार अपना मुख्यमंत्री बनाने की हसरत पूरी कर ले, लेकिन जिस विभाजनकारी और नफरत की राजनीति वह कर रही है, उसका खामियाजा निकट भविष्य में देश को गंभीर रूप से भुगतना पड़ेगा क्योंकि भारत में जारी नफरत की राजनीति की प्रतिक्रिया अब दूसरे देशों में भी होने लगी है। अमेरिका में बसे सारे भारतीयों को अब वहां से निकालने की आवाजें उठनी शुरू हो चुकी हैं। अरब देशों में भी ऐसी आवाज उठ रही है। वहां भी भारतीयों को नमक हराम कहा जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)


