दंभोक्ति है कि 'हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता'
कोई हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता।' यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेता अक्सर कहते रहते हैं

- अनिल जैन
इस बात से तो कोई इनकार नहीं करेगा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी ही होता है। मगर ऐसा कहने के साथ ही जब कोई यह कहता है कि कोई भी हिंदू कभी आतंकवादी हो ही नहीं सकता तो उसका यह कथन न सिर्फ उसके पूर्व कथन का खोखलापन जाहिर करता है बल्कि उसके अपराधबोध और वास्तविक इरादों का भी परिचय कराता है।
कोई हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता।' यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेता अक्सर कहते रहते हैं, लेकिन यही बात अब केंद्र सरकार की ओर से संसद में भी कह दी गई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों राज्यसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा- 'मैं गर्व से कह सकता हूं कि कोई भी हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता।' इसे संयोग कहें या कुछ और कि गृह मंत्री के इस भाषण के अगले ही दिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए की विशेष अदालत ने मालेगांव बम धमाके मामले का फैसला सुनाते हुए भाजपा की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत सातों अभियुक्तों को बरी कर दिया।
अमित शाह से पहले यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मशहूर अभिनेता कमल हासन के बयान के जवाब में कही थी। अभिनेता से नेता बने कमल हासन ने अपनी एक चुनावी सभा में कहा था कि- 'देश का पहला आतंकवादी नाथूराम गोडसे हिंदू था, जिसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की थी।' कमल हासन के इस बयान पर मोदी ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि 'आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता लेकिन इसी के साथ अगली सांस में उन्होंने यह भी कहा था कि हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता और जो आतंकवादी होता है, वह कभी हिंदू नहीं हो सकता।'
वह पहला मौका था जब देश के किसी प्रधानमंत्री के मुंह से इस तरह की बात निकली हो। मोदी ने पीएम के रूप में यह बात पहली बार कही थी और चुनाव अभियान के दौरान कही थी जिसका राजनीतिक मकसद साफ था। वे अपनी चुनावी रैलियों में लगातार सांप्रदायिक धु्रवीकरण करने वाले भाषण दे रहे थे। गोडसे के बारे में भी उनके कथन से साफ था कि उन्होंने परोक्ष रूप से राष्ट्रपिता के हत्यारे का बचाव किया था।
बहरहाल भाजपा की ओर से अभी तक जो बात संसद के बाहर कही जाती रही थी, उसे अब सरकार की ओर से शाह ने संसद में भी दोहरा दिया है। उनका यह बयान न सिर्फ देश के तमाम गैर हिंदू समुदायों को लांछित और अपमानित करने वाला है बल्कि उस संविधान को भी सीधे-सीधे चुनौती है, जिसकी शपथ लेकर वे धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक भारत के गृह मंत्री बने हुए हैं।
इस बात से तो कोई इनकार नहीं करेगा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी ही होता है। मगर ऐसा कहने के साथ ही जब कोई यह कहता है कि कोई भी हिंदू कभी आतंकवादी हो ही नहीं सकता तो उसका यह कथन न सिर्फ उसके पूर्व कथन का खोखलापन जाहिर करता है बल्कि उसके अपराधबोध और वास्तविक इरादों का भी परिचय कराता है। उसके इस कथन का निहितार्थ होता है कि कोई हिंदू तो आतंकवादी नहीं हो सकता, लेकिन कोई गैर हिंदू जरूर आतंकवादी हो सकता है। सवाल है कि जब कोई गैर हिंदू ही आतंकवादी हो सकता है तो फिर यह कहने का क्या मतलब है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता?
जब कोई यह कहता है कि हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता, तो यह सवाल पूछना लाजिमी हो जाता है कि जब कोई हिंदू किसी स्त्री के साथ बलात्कार कर सकता है, किसी की हत्या कर सकता है, चोरी कर सकता है, डाका डाल सकता है, लूटपाट कर सकता है, इसके अलावा और भी तमाम तरह के आपराधिक कृत्यों में लिप्त हो सकता है तो फिर वह आतंकवादी क्यों नहीं हो सकता? फिर सवाल यह भी है कि आखिर आतंकवाद किसे कहेंगे? सामान्य समझ तो यही कहती है कि किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा अपने नाजायज मकसद को पाने के लिए किसी भी तरह के जान-माल का नुकसान करना और समाज में भय का माहौल बनाना ही आतंकवाद है।
इस ऐतिहासिक तथ्य से कौन इनकार कर सकता है कि महात्मा गांधी की निर्मम हत्या आजाद भारत की सबसे पहली और सबसे बड़ी आतंकवादी वारदात थी, जो सांप्रदायिक नफरत से प्रेरित थी। उसे अंजाम देने वाला वाला व्यक्ति कोई पाकिस्तान या अफगानिस्तान से नहीं आया था। जो था, वह हिंदू नाथूराम गोडसे ही था।
यही नहीं, महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में शामिल रहे विनायक दामोदर सावरकर, गोपाल गोडसे, नारायण आप्टे, मदनलाल पाहवा, रामकृष्ण करकरे, दिगंबर बडगे आदि नाथूराम के सभी सहयोगी भी हिेंदू ही थे। नाथूराम गोडसे तो ऐसा हिंदू था कि गांधी जी पर गोलियां दागने के पहले हुई धक्का-मुक्की में उनकी पोती मनु के हाथ से जमीन पर गिरी पूजा वाली माला और आश्रम की भजनावली को भी वह अपने पैरों तले रौंदता हुआ आगे बढ़ गया था। 20वीं सदी का जघन्यतम अपराध करने- एक निहत्थे बूढ़े, परम सनातनी हिंदू, राम के अनन्य-आजीवन आराधक का सीना गोलियों से छलनी करने।
हिंदू राष्ट्रवादियों का नुमाइंदा नाथूराम गोडसे गांधी की हत्या के जरिए आतंक पैदा कर देश के बाकी नेताओं को यही तो संदेश देना चाहता था कि हिंदू-मुस्लिम मेलमिलाप की बात करने वालों का वही हश्र होगा जो गांधी का हुआ है। क्या नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, मोहन भागवत और उनकी राष्ट्रवादी जमात के अन्य नेता इस हकीकत को नकार सकते हैं कि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में हुआ सिखों का कत्लेआम देश के बंटवारे के बाद की सबसे बड़ी त्रासदी थी। उस त्रासदी के दौरान भी असंख्य सिखों को जिंदा जलाने वालों और उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार करने ज्यादातर हिंदू ही तो थे।
सवाल यह भी है कि कोई ढाई दशक पूर्व ओडिशा में ग्राहम स्टेंस नामक निर्दोष बूढ़े पादरी और उसके मासूम बच्चों को जिंदा जलाने का कृत्य क्या आतंकवाद नहीं कहा जाएगा? उस कृत्य को अंजाम देने वाला बजरंग दल का पदाधिकारी दारासिंह क्या किसी दूसरे देश का गैर हिंदू नागरिक था? ओडिशा में ही करीब डेढ़ दशक पहले विश्व हिंदू परिषद के एक नेता लक्ष्मणानंद के नक्सलियों के हाथों मारे जाने की घटना का ठीकरा ईसाई मिशनरियों के माथे फोड़ कर लगभग एक माह तक विश्व हिंदू परिषद के लोगों ने कंधमाल में हिंसा का जो तांडव मचाया था, क्या वह आतंकवाद नहीं था? वहां रहने वाले सभी ईसाइयों के घरों और चर्चों को आग के हवाले कर डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिए जाने का समूचा घटनाक्रम किस तरह के राष्ट्रवाद से प्रेरित था?
इसी सिलसिले में सवाल गुजरात को लेकर भी बनता है कि इसी सदी के शुरुआती दौर में वहां 'क्रिया की प्रतिक्रिया' के नाम पर मुसलमानों का संगठित कत्लेआम क्या आतंकवादी कार्रवाई नहीं थी? उसी कत्लेआम के दौरान मुस्लिम समुदाय की कई गर्भवती स्त्रियों के गर्भ पर लातें मार-मार कर उनकी और उनके गर्भस्थ शिशुओं की हत्या कर देना किस तरह के मानव धर्म या राष्ट्रभक्ति से प्रेरित कृत्य था? उसी हिंसा में सौ से अधिक लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार बाबू बजंरगी को क्या आतंकवादी नहीं माना जाएगा, जिसे अदालत ने आजीवन कारावास की सजा दे रखी है।
शायद मोदी, अमित शाह और उनकी संस्कार शाला (आरएसएस) के नेताओं की नजरों में किसी स्त्री के साथ बलात्कार या किसी को जिंदा जला देना आतंकवाद तो क्या सामान्य अपराध की श्रेणी में भी नहीं आता होगा! अगर आता तो वे यह बचकानी दलील कतई नहीं देते कि कोई हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता। पृथक गोरखालैंड तथा बोडोलैंड के लिए दशकों से हिंसक गतिविधियों में संलग्न लड़ाकों को भी क्या मोदी और शाह हिंदू नहीं मानेंगे?
सीमा पार के आतंकवाद के साथ ही हमारा देश आज जिस एक और बड़ी चुनौती से जूझ रहा है, वह है माओवादी आतंकवाद। देश के विभिन्न इलाकों में सक्रिय विभिन्न माओवादी संगठनों में अपवाद स्वरूप ही कोई एकाध मुस्लिम युवक होगा, अन्यथा सारे के सारे लड़ाके संघ की परिभाषा के तहत हिंदू ही हैं।
उपरोक्त सारे उदाहरणों का आशय समूचे हिंदू समाज को लांछित या अपमानित करना कतई नहीं है। मकसद सिर्फ यह बताना है कि चाहे वह गोडसे हो या दारासिंह, चाहे सिख विरोधी हिंसा के अपराधी हो या गुजरात के कातिल, चाहे वह चर्चों और ईसाइयों के घरों में आग लगाने वाले हों या माओवादी लड़ाके, सबके सब चाहे वे जिस जाति या प्रदेश के हो या चाहे जो भाषा बोलते हो, वे सब संघ की परिभाषा के तहत हिंदू ही हैं। इसलिए यह दंभोक्ति निहायत ही अतार्किक और बेमतलब है कि कोई हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)


