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राजनीति से प्रेरित है गांधी से नफरत का अभियान

राजनीति से प्रेरित है गांधी से नफरत का अभियान
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— डा. सुदर्शन अयंगर

अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा गांधीजी ने जाति आधारित हिंसा के खिलाफ स्पष्ट और संरचनात्मक दोनों तरह से बिताया। दलितों को संवैधानिक अधिकार दिलाने के संघर्ष का नेतृत्व करने वाले डॉ. बीआर अंबेडकर के साथ अपने तीखे मतभेदों के बावजूद लोगों के दिलो-दिमाग से अस्पृश्यता को दूर करने के अपने अभियान को गांधीजी ने जारी रखा था।

संयुक्त राष्ट्र ने 2 अक्टूबर 'अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस' के रूप में घोषित किया है। दुनिया ने गांधी को शांति के दूत के रूप में मान्यता दी है। अहिंसा और शांति के वैश्विक प्रतीक के रूप में गांधी के सम्मान में कुल 102 देशों ने उनकी प्रतिमाएं स्थापित की हैं। वे पिछली दो सहस्राब्दियों में जन्म लेने वाले 10 उत्कृष्ट व्यक्तित्वों में से एक हैं जिनके बारे में सबसे अधिक लिखा गया है।

हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि, 'गांधीजी एक वैश्विक प्रतीक हैं और अहमदाबाद में उनके निवास साबरमती आश्रम को एक विश्व स्तरीय स्मारक में बदल दिया जाएगा।' 1200 करोड़ रुपये की इस महत्वाकांक्षी योजना पर काम चल रहा है। भारत का शीर्ष नेतृत्व गांधीजी को छोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकता। यह स्पष्ट रूप से समझा जाता है कि गांधीजी भारत का वैश्विक चेहरा हैं। इसलिए उनका निरतंर उल्लेख किया जाना जारी है।

प्रधानमंत्री ने नवंबर, 2014 से सितंबर, 2025 तक विदेशी संसदों में दिए 17 भाषणों में से 6 में महात्मा गांधी का सीधे उल्लेख किया है। उन्होंने कई अन्य अवसरों पर अप्रत्यक्ष रूप से गांधीजी का उल्लेख किया है। उन्होंने बापू को अंतरराष्ट्रीय ब्रांडिंग के लिए इस्तेमाल किया है। स्थिरता और समानता के बारे में बात करते हुए उन्होंने गांधी के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लेख किया है। मोदी के अंतरराष्ट्रीय भाषणों में अक्सर गांधी के 'वसुधैव कुटुम्बकम' के संदेश का उल्लेख होता है। उनके राजनयिक उद्देश्यों में यह संदेश उनकी अच्छी मदद कर रहा है।

उन्होंने देश में भी 2 अक्टूबर, 2014 को 'स्वच्छ भारत अभियान' की शुरुआत की। हाल ही में वे स्वदेशी पर मुखर रहे हैं। प्रतीकवाद अपने चरम पर है। दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल-3 में चेक-इन सेक्शन में प्रवेश करते हुए कोई भी व्यक्ति एक विशाल चरखा देख सकता है। यह हस्तचालित चरखा बर्मा सागौन से बना है और इसका वजन चार टन है। द्वार 4 और 5 के बीच चरखे के नीचे स्थापित पट्टिका में गांधीजी के योगदान का स्पष्ट रूप से उल्लेख है।

स्थापना के अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा था-'चरखा आईजीआई हवाई अड्डे पर यात्रियों को भारत की कालातीत विरासत तथा स्थिरता और सद्भाव के मूल्यों की याद दिलाने का काम करेगा और इसी उद्देश्य से इसे बनाया गया है।' उन्होंने देश के नागरिकों से खादी को अपनाने की अपील की है। दुनिया के किसी भी कोने से आने वाला यात्री अहमदाबाद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 'गांधीजी के पदचिह्न' नामक एक छोटी सी प्रदर्शनी को देखने का अवसर नहीं छोड़ता है।

इसके बावजूद जिस देश में वे पैदा हुए, रहे और अपना बलिदान दिया, वहां उनके खिलाफ पिछले 25 वर्षों के दौरान एक घृणा अभियान तेज हो गया है। गांधी नफरत करने लायक व्यक्ति बन गए हैं। मुसलमानों के प्रति उनके कथित पक्षपात के लिए उनसे नफरत की जाती है।

अस्पृश्यता को दूर करने के लिए उनके 15 साल के अथक प्रयत्नों का मजाक उड़ाया जाता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल और नेताजी सुभाषचंद्र बोस की अनदेखी करने के लिए उनकी निंदा की जाती है। भगत सिंह की फांसी के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया गया है। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान हाशिए पर है। बोस द्वारा उन्हें दी गई 'राष्ट्रपिता' की उपाधि का उपहास उड़ाया जाता है। सोशल मीडिया ने हम भारतीयों के मन में गांधी की छवि को नष्ट कर दिया है।

'गांधी का गुजरात' आज एक बुरा शब्द है। जहरीली नफ़रत के साथ प्रकट और छिपी हुई हिंसा ने लोगों के दिलो-दिमाग पर कब्जा कर लिया है। कट्टरपंथी हिंदू भीड़ बेहिचक आगे बढ़ रही है और कानून के रक्षक भी उन पर विशेष रोक-टोक नहीं करते। यह जानकर दुख होता है कि कट्टरपंथियों की भीड़ नवरात्रि गरबा महोत्सव के आयोजकों से कड़ी पूछताछ करती है कि मुसलमानों को कितने पास और टिकट जारी किए गए हैं। एक तरफ गरबा नृत्य चल रहा है तो उसी समय भीड़ मुस्लिम प्रतिभागियों की जांच करती है।

इस साल की शुरुआत में राजनीतिक रैलियों, धार्मिक जुलूसों, विरोध मार्च और सांस्कृतिक समारोहों जैसे कार्यक्रमों में हुए भाषणों में अभद्र भाषा के उपयोग की संख्या बढ़ी है। 2024 में 1,165 मामले सामने आए जबकि एक साल पहले इनकी संख्या 668 थी । रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल चुनाव अभियान के दौरान नफ़रत फैलाने वाले भाषण चरम पर थे।

अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा गांधीजी ने जाति आधारित हिंसा के खिलाफ स्पष्ट और संरचनात्मक दोनों तरह से बिताया। दलितों को संवैधानिक अधिकार दिलाने के संघर्ष का नेतृत्व करने वाले डॉ. बीआर अंबेडकर के साथ अपने तीखे मतभेदों के बावजूद लोगों के दिलो-दिमाग से अस्पृश्यता को दूर करने के अपने अभियान को गांधीजी ने जारी रखा था। क्या अंबेडकर और गांधी दोनों के प्रयासों को हम भारतीय विफल नहीं कर रहे हैं? 2025 में भी तथाकथित उच्च और श्रेष्ठ जाति के लोगों ने दलितों का अपमान करने, निंदा करने, शोषण, बलात्कार, घायल करने और मारने का कोई मौका नहीं छोड़ा।

गांधी के प्रति नफ़रत का अभियान सुनियोजित और राजनीति से प्रेरित है। इस तरह के प्रायोजित हमले के पीछे का दिमाग धोखेबाज है। जातिगत मानसिकता पूरी तरह से खेल खेलती है। नफ़रत करने वाले लोग भारत में मुसलमानों को 'सबसे निचली जाति' बनाना चाहते हैं जिसे समाज में हलके दर्जे के काम करने के लिए मजबूर किया जाए। ये तत्व चाहते हैं कि उन्हें गरीबी और दरिद्रता में सड़ना और दबाव में आकर इस देश को छोड़ देना चाहिए। हम भारत के नागरिक क्या इस बात को समझते हैं कि हम नफ़रत, निंदा व भेदभाव कर, चोट पहुंचाकर और हत्या करके दुश्मनी का माहौल बना रहे हैं? कोई भी प्रत्यक्ष, छिपी हुई और संरचनात्मक हिंसा मजबूत भावनाओं और कड़वाहट को जन्म देती है जो हिंसा की जड़ है।

हमें समझना चाहिए कि जब किसी वर्ग को निशाना बनाया जाता है और उसका बहिष्कार किया जाता है तथा जब लोग सीधे तौर पर व राज्य धोखे से यह खेल खेलते हैं, तो पीड़ित समूह नाराज होकर बदला लेने पर उतारू हो जाता है। ऐसे समुदायों में रोटी कमाने वालों को उचित अवसर नहीं दिए जाते। वे ऐसी मुश्किल या कठिन परिस्थितियों में डाल दिए जाते हैं जहां से उनके पास निकलने का कोई विकल्प नहीं रह जाता। यह परिस्थिति नफ़रत और हिंसा के एक नए चक्र को जन्म दे सकती है जो भारत को बर्बाद कर देगी।

अहिंसा के वैश्विक प्रतीक महात्मा गांधी ने जाति आधारित हिंसा को समाप्त करने और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। फिर भी आधुनिक भारत में उनकी विरासत को षड्यंत्रपूर्वक रचे घृणा अभियानों के माध्यम से बदनामी का सामना करना पड़ता है। अस्पृश्यता को मिटाने और समानता को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों के बावजूद 2025 में भी दलितों और मुसलमानों को भेदभाव, शोषण और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है जो गांधी और डॉ. अंबेडकर दोनों के दृष्टिकोण को धोखा दे रहा है।

सामाजिक और राजनीतिक ताकतें अल्पसंख्यकों को हाशिए पर डाल देती हैं, बहिष्कार एवं प्रतिरोध के माध्यम से उन्हें 'सबसे निचली जाति' के रूप में मानती हैं जिससे दुश्मनी और संभावित प्रतिशोध का माहौल पैदा होता है। सत्य, अहिंसा और वैश्विक एकता पर जोर देने वाले गांधी के सत्याग्रह के दर्शन ने दुनिया भर के आंदोलनों को प्रेरित किया लेकिन संकीर्ण लाभ के लिए इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने वालों से भारत को खतरा है। गांधी की 156वीं जयंती पर भारत को नफ़रत को अस्वीकार करना चाहिए, अंतरधार्मिक संवाद को अपनाना चाहिए और अलगाव को दूर करने तथा शांतिपूर्ण भविष्य को सुरक्षित करने के लिए न्याय को बनाए रखना चाहिए।

(लेखक महात्मा गांधी द्वारा 1920 में स्थापित गुजरात विद्यापीठ के पूर्व कुलपति हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)


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