सतही बयानबाज़ी, गहराई में साझेदारी: भारत-अमेरिका रिश्तों का नया संतुलन
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत की कुछ नीतिगत पसंदों पर असहमति जताते हुए हाल में भारत को लेकर तीखे बयान दिए—यहां तक कि कहा कि 'अमेरिका ने भारत और रूस को चीन के हाथ खो दिया है

- अरुण कुमार डनायक
कूटनीतिक बयानबाज़ी और तनाव के बीच भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताएं निरंतर आगे बढ़ रही हैं। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने आशा जताई है कि नवंबर तक समझौता संभव है, जबकि विदेश मंत्रालय ने पीटर नवारो की तीखी टिप्पणियों की नरम आलोचना करते हुए दोहराया कि यह रिश्ता पारस्परिक सम्मान और साझा हितों पर आधारित है। अलास्का में संयुक्त सैन्य अभ्यास इस साझेदारी की मज़बूत नींव का प्रतीक है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत की कुछ नीतिगत पसंदों पर असहमति जताते हुए हाल में भारत को लेकर तीखे बयान दिए—यहां तक कि कहा कि 'अमेरिका ने भारत और रूस को चीन के हाथ खो दिया है।' इस दौरान अमेरिकी अधिकारियों ने भारत के रूसी तेल आयात और शुल्क नीति पर कड़ी आलोचना की। परंतु अब ट्रम्प ने नरम रुख अपनाते हुए प्रधानमंत्री मोदी को अपना दोस्त, 'महान नेता' कहा और भारत-अमेरिका रिश्तों को 'हमेशा विशेष' बताया। ऐसा कहकर उन्होंने राजनीतिक बर्फ को पिघलाने के संकेत दिए हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी राष्ट्रपति ट्रम्प के पुराने बयानों का कोई प्रतिरोध नहीं किया। इसके बजाय उन्होंने ताज़ा सकारात्मक संदेश को गर्मजोशी के साथ आगे बढ़ाया और 'भविष्य-दृष्टि संपन्न व्यापक सामरिक साझेदारी' की बात कही। मोदी ने आगे भारत-अमेरिका संबंधों को सकारात्मक और भविष्य-दृष्टि संपन्न व्यापक एवं वैश्विक सामरिक साझेदारी बताया।
क्या यह परिवर्तन भारत-अमेरिका संबंधों में राजनयिक पुनर्संतुलन की शुरुआत है, या फिर ट्रम्प की अप्रत्याशित विदेश नीति का केवल एक और रणनीतिक मोड़?
ट्रम्प का बयान कि 'अमेरिका ने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है' दरअसल भारत की स्वतंत्र विदेश नीति से जुड़ी अमेरिकी हताशा का संकेत था। उनके सहयोगी पीटर नवारो और हॉवर्ड लटनिक ने भी भारत की आलोचना की—कभी ऊंचे शुल्कों के लिए, कभी सस्ते रूसी तेल ख़रीदने के लिए, तो कभी अमेरिका-चीन-रूस शक्ति संतुलन में उसकी तथाकथित तटस्थता के लिए। इन तीखे बयानों ने स्वाभाविक रूप से भारत-अमेरिका रिश्तों को लेकर चिंता बढ़ाई।
इसके बावजूद भारत ने अपने मूल हितों पर झुकने से इंकार किया है—चाहे रूसी तेल की खरीद हो, कृषि क्षेत्र में अमेरिकी दबाव का प्रतिरोध हो या पाकिस्तान पर अमेरिकी टिप्पणियों को नज़रअंदाज़ करना।
इन घटनाओं के पीछे गहरे भू-राजनीतिक तनाव और प्रचार-प्रसार की छायाएं हैं। भारत में यह धारणा प्रबल है कि अमेरिका, भारत की रूस के साथ निरंतर साझेदारी और चीन के साथ हाल के संपर्कों से असहज है। चीन यात्रा के दौरान पुतिन और शी के साथ प्रधानमंत्री मोदी की निकटता ने भी यही संदेश दिया कि भारत अपनी कूटनीतिक प्राथमिकताओं को स्वयं तय करेगा।
दरअसल, मोदी सरकार ने नेहरू युग की गुटनिरपेक्षता और तटस्थता की पारंपरिक नीति से आगे बढ़कर बहुपक्षीय रणनीति अपनाई है। उसका तर्क है कि बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भारत बहु-संरेखीय विश्व व्यवस्था को प्राथमिकता देते हुए अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय लेगा। इस दृष्टिकोण के तहत विदेश मंत्रालय कई बार विवादित वैश्विक घटनाओं पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया देने से परहेज़ करता है, ताकि प्रमुख महाशक्तियों—रूस, अमेरिका और चीन—के साथ संतुलित संबंध बनाए रखे जा सकें। यही कारण है कि इन महाशक्तियों को अक्सर भारत की इस स्वतंत्र कूटनीति से असुविधा होती है।
कूटनीतिक बयानबाज़ी और तनाव के बीच भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताएं निरंतर आगे बढ़ रही हैं। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने आशा जताई है कि नवंबर तक समझौता संभव है, जबकि विदेश मंत्रालय ने पीटर नवारो की तीखी टिप्पणियों की नरम आलोचना करते हुए दोहराया कि यह रिश्ता पारस्परिक सम्मान और साझा हितों पर आधारित है। अलास्का में संयुक्त सैन्य अभ्यास इस साझेदारी की मज़बूत नींव का प्रतीक है। स्पष्ट है कि सतही उतार-चढ़ाव के बावजूद दोनों देशों के बीच आर्थिक और रणनीतिक संवाद गहराई से संस्थागत है और सहजता से प्रभावित नहीं हो सकता।
भारत के लिए रक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी—विशेषकर कृषि—के क्षेत्र में अमेरिका के साथ संबंध गहराना राष्ट्रीय हित में है। देश के भीतर भी आम सहमति यही है कि अमेरिका से जुड़ाव संतुलन और सावधानी के साथ होना चाहिए। इसी कारण कृषि व्यापार वार्ता में गतिरोध पर कृषि मंत्री ने सार्वजनिक टिप्पणी से परहेज़ किया, रूस से तेल आयात पर औपचारिक प्रतिक्रिया पेट्रोलियम मंत्रालय की बजाय वित्त मंत्री ने दी, और विपक्ष ने भी अमेरिकी कपास के आयात को दिसंबर तक बढ़ाए जाने का गंभीर विरोध नहीं किया।
ट्रम्प और मोदी के बीच हाल की मित्रतापूर्ण अभिव्यक्तियां कूटनीतिक माहौल को नया आयाम दे सकती हैं। संभावित व्यापार समझौते और सैन्य सहयोग की निरंतरता यह संकेत देती है कि दोनों पक्ष रिश्तों को स्थिर बनाए रखने के इच्छुक हैं। साथ ही भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को साधते हुए रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखनी होगी तथा रूस, चीन और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को संतुलित करने के प्रयास जारी रखने होंगे। मोदी समर्थकों व भारतीय मीडिया को भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों और कूटनीतिक पहलों पर संतुलित टिप्पणी करनी चाहिए। राजनीतिक चश्मे से देखने की प्रवृत्ति उसे हल्का और सतही बना देती है। वैश्विक मंच पर जब भारत एक रणनीतिक संतुलन साध रहा है, तब मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह विचारशील विश्लेषण प्रस्तुत करे, न कि भावनात्मक प्रतिक्रियाएं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए आवश्यक है कि वे वैश्विक नेताओं, विशेषकर महाशक्तियों, के साथ संवाद के द्वार सदैव खुले रखें। हालांकि ऐसी चर्चाएं हैं कि शुल्क विवाद के चलते प्रधानमंत्री मोदी न्यूयॉर्क में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा और ब्रिक्स बैठक में शामिल नहीं होंगे। यह निर्णय भारत की वैश्विक उपस्थिति पर प्रश्नचिह्न खड़े कर सकता है और संभवत: पुनर्विचार की अपेक्षा करता है। अतीत में भी मोदी का चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के नेतृत्व के साथ संवाद से परहेज़ चर्चा का विषय रहा है। विदेश नीति में सतत संवाद और लचीलेपन का अभाव भारत की कूटनीतिक परिपक्वता पर प्रश्नचिह्न लगा सकता है।
सतही बयानबाज़ी और तनावों के बावजूद भारत-अमेरिका संबंधों की गहराई और संस्थागत मज़बूती की आशा कायम है। कृषि व्यापार जैसे विवादित मुद्दों पर भी समाधान की संभावना बनी हुई है। अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि बाज़ार खोले, जबकि भारत अपनी राजनीतिक संवेदनशीलताओं के कारण सतर्क है। संभव है कि दोनों नेताओं की व्यक्तिगत समझ ने इस संतुलन को आकार दिया हो। ट्रम्प भी जानते हैं कि मोदी यदि कृषि में जल्दबाज़ी करें तो उन्हें घरेलू राजनीतिक कठिनाइयां हो सकती हैं। इसलिए यह घटनाक्रम केवल कूटनीतिक उतार-चढ़ाव का परिणाम नहीं, बल्कि दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच एक व्यावहारिक समझौते और पारस्परिक सहमति का भी द्योतक है—जहां अमेरिका भारत की राजनीतिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए दबाव कम कर रहा है और भारत रिश्तों को सकारात्मक बनाए रखने के लिए संवाद की राह खुली रखे हुए है।
( लेखक गांधी विचारों के अध्येता व समाज सेवी हैं )


