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एससीओ सम्मेलन:चीन ने अमेरिका को दिखाई ताकत

चीन ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के 25वें शिखर सम्मेलन के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सहित 20 से अधिक विश्व नेताओं को आमंत्रित कर बंदरगाह शहर तियानजिन में शानदार प्रदर्शन किया

एससीओ सम्मेलन:चीन ने अमेरिका को दिखाई ताकत
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  • डॉ. श्रीकांत कोंडापल्ली

तियानजिन में सार्वजनिक सौहार्द्र के प्रदर्शन के बावजूद एससीओ सदस्य देशों के राष्ट्रीय हितों के सामंजस्य को लेकर प्रमुख मतभेद हैं। कुछ सदस्य देश मामूली झड़पों, व्यापार बाधाओं या असंतुलन, प्रमुख शक्तियों के साथ समीकरणों और आतंकवाद का मुकाबला करने या संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा जैसे मुद्दों पर दोहरे मानकों के साथ एससीओ में प्रवेश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में इनमें से कुछ मुद्दों का जिक्र किया।

चीन ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के 25वें शिखर सम्मेलन के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सहित 20 से अधिक विश्व नेताओं को आमंत्रित कर बंदरगाह शहर तियानजिन में शानदार प्रदर्शन किया।

यह चीन की 'संयुक्त मोर्चा' रणनीति के लिए महत्वपूर्ण है कि वह अमेरिका के खिलाफ एक सुरक्षित एन्क्लेव तथा बचाव का निर्माण करे और एशिया व विश्व में उससे आगे अपनी स्थिति को मजबूत करते हुए एक बहुधु्रवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा दे जो राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रतीकात्मक विचार 'फेनफा यूवेई' (कुछ हासिल करें) के अनुरूप हो।

सम्मेलन के प्रतिभागियों ने भी तियानजिन से बहुत कुछ पाया है। उदाहरण के लिए व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेनी संघर्ष व अमेरिका तथा यूरोप के रूस के खिलाफ प्रतिबंध जैसे अत्यधिक दबाव को सह लिया है। एससीओ सभा रूस की शर्तों पर वैश्विक अलगाव को दूर करने के तरीके प्रदान करती है।

तियानजिन शिखर सम्मेलन में मोदी-पुतिन-शी की तस्वीर अमेरिका के भारत के प्रति लगातार बढ़ते अपमान और शुल्क का कड़ा जवाब है। इसके अलावा मोदी न केवल पश्चिम को रणनीतिक स्वायत्तता के संकेत भेजने में सक्षम थे बल्कि जून 2020 में गलवान में खूनी संघर्ष के बाद असहज हो गए चीन-भारत के संबंधों में स्थिरता लाने में भी सक्षम रहे।

भारत एससीओ में 2005 में पर्यवेक्षक बना था। उसने 2014 में पूर्ण सदस्यता के लिए आवेदन किया और अंतत: 37 करारों पर हस्ताक्षर करने के बाद 2017 में पूर्ण सदस्य बना। वर्ष 2023 में भारत एससीओ शिखर सम्मेलन का अध्यक्ष भी बना। उस समय भारत ने एससीओ के राष्ट्राध्यक्षों की एक आभासी बैठक आयोजित की थी।

नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में भारत ने आधिकारिक संरचनाओं पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही स्टार्ट-अप, नवाचार, बौद्ध धर्म जैसे अन्य क्षेत्रों पर ध्यान आकर्षित करके एक अलग एजेंडा पेश किया। इस एजेंडा को मोदी ने तियानजिन शिखर बैठक में भी दोहराया।

तियानजिन ने एससीओ शिखर सम्मेलन के अधिकांश प्रतिभागियों के लिए अपनी एकजुटता और पुन:समायोजन का संकेत दिया है जो विशेष रूप से अब वैश्विक और क्षेत्रीय प्रणाली की लगातार बदलती स्थिति को दर्शाती है। बैंड वैगनिंग, यूरेशियन एकीकरण, उनकी ढांचागत और अन्य जरूरतों के लिए वित्त विकल्प हासिल करना व पड़ोसी देशों में व्यापक स्थिरता के मौकों ने रुचि पैदा की है।

उदाहरण के लिए तियानजिन शिखर सम्मेलन में एससीओ विकास बैंक की स्थापना की घोषणा की गई। चीन ने ऋ ण में 10 अरब युआन के अलावा सदस्य देशों को 28 करोड़ डॉलर की सहायता की घोषणा की। ब्रिक्स नव विकास बैंक की तरह ही इससे न केवल क्षेत्रीय बुनियादी ढांचे के निर्माण में योगदान करने की उम्मीद है बल्कि सदस्य राज्यों की पश्चिम तथा अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को भी काफी हद तक कम करने की उम्मीद है।

यह महत्वपूर्ण है क्योंकि ब्रेटन वुड्स सिस्टम और संस्थान के तहत आने वाली मौद्रिक प्रणाली ग्लोबल साउथ देशों की बढ़ती आवश्यकताओं और ढांचागत जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ रही है। ऐसा तब है जब कई चीनी-वित्त पोषित परियोजनाएं कर्ज के जाल में फांसने के विवाद में घिर गई हैं।

एससीओ प्रोफाइल अपने आप में प्रभावशाली है। 1996 में केवल पांच देश इसका हिस्सा थे लेकिन 2001 के बाद से यह मध्य एशिया, दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिम एशिया को कवर करते हुए सबसे बड़ा क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन बन गया है।

एससीओ वर्तमान में 10 सदस्य देशों, 2 पर्यवेक्षक राज्यों और 14 संवाद भागीदारों तक विस्तारित हो गया है। इसमें वैश्विक आबादी का लगभग 44 प्रतिशत और दुनिया की जीडीपी का एक चौथाई (लगभग 30 लाख करोड़ डॉलर) शामिल है।

एससीओ को सीमावर्ती क्षेत्रों में क्षेत्रीय विवाद समाधान और असैन्यीकरण के लिए जाना जाता है। 1990 के दशक में समझौतों और विश्वास निर्माण उपायों की घोषणा की गई और सीमाओं को समेकित किया गया। ताजिकिस्तान तथा किर्गिस्तान के बीच अंतर-राज्य संघर्ष जैसी कुछ घटनाओं के बावजूद यूरेशियन क्षेत्र शांति प्रदर्शित करता है।

आतंकवाद का मुकाबला करने पर एससीओ का ध्यान है और वह क्षेत्रीय विषयों पर भी नजर रख रहा है। इसने 2002 में क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (आरएटीएस) की स्थापना की जिसका मुख्यालय 2022 तक ताशकंद में था लेकिन अब मास्को में स्थानांतरित हो गया। भले ही आतंकी संगठनों से निपटने के बारे में गंभीर विरोधाभास व दोहरे मानदंड मौजूद हों लेकिन आरएटीएस आतंकवादियों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और अर्धसैनिक अभ्यासों से संबंधित डेटा एकत्र करने में एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन के रूप में उभर रहा है।

एससीओ सदस्य देशों की भागीदारी, डेटा बेस, आतंकवादी समूहों के खिलाफ जानकारी साझा करने, मादक पदार्थों की तस्करी, हथियारों की तस्करी एवं अन्य मामलों के साथ शांति मिशन अभ्यास जैसे संयुक्त अभ्यासों का आयोजन धीरे-धीरे इसे एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में विकसित कर रहा है।

1998 में अपनी नई दिल्ली यात्रा के दौरान जब रूसी प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव ने बहुधु्रवीय विश्व व्यवस्था के निर्माण का उल्लेख किया था उस समय से ही एससीओ अमेरिका की एकतरफा नीतियों का दृढ़ता से मुकाबला कर रहा है। 2005 में अपनी शिखर बैठक में एससीओ ने कहा था कि अमेरिका मध्य एशिया से सैनिकों को वापस लेने के लिए एक समय सारिणी बनाए।

अफगानिस्तान में अपने सैनिकों की मौजूदगी और अमेरिका की तमाम कोशिशों के बावजूद यूरेशियन क्षेत्र काफी हद तक अमेरिकी प्रभाव की सीमा से बाहर रहा। ट्रम्प प्रशासन द्वारा हाल ही में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के साथ चर्चा व मध्य एशिया तथा दक्षिण एशिया के अतिरिक्त कार्यों के साथ भारत में अमेरिकी राजदूत के रूप में सर्जियो गोर की नियुक्ति यूरेशियन क्षेत्र में प्रवेश करने के प्रयास हैं।

भले ही ट्रम्प प्रशासन ऊर्जा के क्षेत्र में ऐसे कनेक्शनों को, विशेष रूप से भारत से जुड़े कनेक्शन को निशाना बना रहा है। इसके बावजूद 2013 में स्थापित एससीओ एनर्जी क्लब,ऊर्जा के सबसे बड़े उत्पादकों (रूस, कजाकिस्तान, ईरान व कुछ अन्य) तथा ऊर्जा उपभोक्ताओं (चीन, भारत एवं अन्य) के रूप में एक अद्वितीय और उपयोगी संयोजन प्रदान करता है।

तियानजिन में सार्वजनिक सौहार्द्र के प्रदर्शन के बावजूद एससीओ सदस्य देशों के राष्ट्रीय हितों के सामंजस्य को लेकर प्रमुख मतभेद हैं। कुछ सदस्य देश मामूली झड़पों, व्यापार बाधाओं या असंतुलन, प्रमुख शक्तियों के साथ समीकरणों और आतंकवाद का मुकाबला करने या संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा जैसे मुद्दों पर दोहरे मानकों के साथ एससीओ में प्रवेश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में इनमें से कुछ मुद्दों का जिक्र किया।

एससीओ आम सहमति के आधार पर काम करने वाला संगठन है लेकिन वास्तव में चीन और रूस संगठनात्मक मुद्दों के साथ-साथ एजेंडा सेटिंग में भी महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे हैं। इसका परिणाम शक्ति समीकरणों का तीव्र संतुलन या सदस्य राज्यों के बीच तीव्र अंतर भी होता है। यदि मुद्दों का समाधान नहीं किया जाता है तो यह संघर्ष का कारण बन सकता है।

(लेखक जेएनयू में चाईनीज़ स्टडी के प्रोफेसर हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)


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