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लड़कियों की टांग तोड़ने के आह्वान से मनु की प्रेतसिद्धि करती संघ की साध्वी

साध्वी' प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने भारत की युवतियों और स्त्रियों के लिए एक समारोह में 'कहना न मानने वाली लड़कियों की टांगे तोड़ देने' का आह्वान कर दिया

लड़कियों की टांग तोड़ने के आह्वान से मनु की प्रेतसिद्धि करती संघ की साध्वी
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  • बादल सरोज

प्रज्ञा सिंह के इस उत्तेजक और उन्मादी आह्वान को इस समग्रता में पढ़ने की जरूरत है। आमतौर से सभी को खासतौर से उन अच्छी लड़कियों को जो बहुत अनुशासित होती हैं - चुप चुप रहती हैं - जितना दे दो उतने पर मान जाती हैं - कभी जोर से नहीं बोलतीं - कभी आगे नहीं भागती। कभी ना नहीं कहती- सामने आने की बजाय पीछे-पीछे चलने में खुश रहती हैं। वे नहीं जानती कि इसकी वजह उस सामाजिक परवरिश में हैं जिसने बहुत चतुराई से ठगी की है।

साध्वी' प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने भारत की युवतियों और स्त्रियों के लिए एक समारोह में 'कहना न मानने वाली लड़कियों की टांगे तोड़ देने' का आह्वान कर दिया । बोलीं कि 'अगर हमारी लड़की हमारा कहना नहीं मानती है, किसी विधर्मी के यहां जाने का प्रयास करती है तो उसकी टांगें तोड़ने में भी कोई कसर मत छोड़ना। जो संस्कारों, बातों से नहीं मानती है तो उसे ताड़ना देनी पड़ती है।' प्रज्ञा सिंह ने ये भी कहा कि 'ऐसी बच्चियां जो हठी हैं, माता-पिता की बात नहीं मानतीं, संस्कारों को नहीं मानती, घर से भागने को तैयार हैं उनके लिए सतर्क रहो, जागते रहो और ऐसी लड़कियों को मारकर, पीटकर, समझाकर और प्यार से जैसे भी हो लेकिन जाने मत दो।' खुलेआम हिंसा का यह आपराधिक आह्वान करते हुए एक वाक्य में उन्होंने लड़कियों को 'मियांईन न बनने देने' की बात कहते हुए उस विष का छौंक बघार भी लगाया जिस विष का इस कुनबे के पास भरपूर भण्डार है।

यह सीधे-सीधे इस देश की आधी आबादी के विरूद्ध युद्ध की यलगार है। प्रज्ञा सिंह जिस कथित 'लव जिहाद' को हवा दे रही थीं यह एक नितांत झूठी बकवास है। यह बात खुद उनके मोदी जी की सरकार के अमित शाह के गृह मंत्रालय के राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने 4 फरवरी 2020 को लोकसभा में दिए गए एक लिखित उत्तर में कही थी कि 'केंद्र सरकार की किसी भी एजेंसी ने लव जिहाद के एक भी मामले की जानकारी नहीं दी है।' यह भी कि देश में 'लव जिहाद' जैसी कोई चीज नहीं है। उन्होंने कहा कि 'भारत के संविधान की धारा 25 प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता देती है।' इससे पहले 2018 में प्रधानमंत्री मोदी के नियंत्रण वाली एनआईए केरल के दो विवाहों के मामले सहित कई प्रकरणों में जांच करके फैसला दे चुकी थी कि लव जिहाद के अस्तित्व का कोई सबूत नहीं है। उत्तराखंड के पुरोला में तनाव के बाद भी यह मामला एक अफवाह साबित हुआ। केरल हाईकोर्ट भी अपने एक फैसले में किसी जिहाद विहाद की मौजूदगी को नकार चुका है । पिछली कई वर्षों में सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए अनेक सवालों के जवाब में अमित शाह के गृह मंत्रालय ने न केवल मना किया गया बल्कि खुद मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दाखिल करते हुए लव जिहाद के वजूद से साफ़ इनकार किया था। भारत के मुस्लिम नागरिकों के प्रति अपना द्वेष ये स्वयं मौके बेमौके उगलती रहती हैं। अभी इसी सितम्बर में दुर्गा वाहिनी के एक कार्यक्रम में बोलते हुए इन्होंने खुलेआम मंच से कहा था कि 'अगर गैर-हिंदू मंदिरों के बाहर प्रसाद बेचते दिखें तो उन्हें पीटा जाए और पुलिस के हवाले करने से पहले सबक सिखाया जाए।' उन्होंने यह भी कहा कि 'हर घर में तेज धार वाले हथियार मौजूद होने चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर उनका इस्तेमाल किया जा सके ।' इस बार वे मुस्लिमों के बहाने सभी भारतीय महिलाओं के खिलाफ रणभेरी फूंक रही हैं। इस तरह उस असली पटकथा के लिए मंच सजा रही हैं जो उनके कुनबे के हिन्दूराष्ट्र का सार है। यह बात सिर्फ अंदाजा, अनुमान या आरोप नहीं है- ये जिसका लिखा बांच रही हैं उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पक्का विचार है।

इस वर्ष 100 वर्ष का हुआ आर एस एस इस मायने में भी इस देश का ऐसा विचित्र संगठन है कि कोई महिला इसका सदस्य नहीं बन सकती। इसका कोई संविधान है या नहीं यह बात तो खुद इनके अपनों तक को नहीं पता अलबत्ता इनकी आधिकारिक वेबसाईट पर अक्सर पूछे जाने वाले सवालों- एफ ए क्यूज- में साफ़-साफ़ लिखा है कि 'यह हिन्दू पुरुषों का संगठन है' और कोई भी 'हिंदू पुरुष' स्वयंसेवक बन सकता है। इसमें साफ़-साफ़ लिखा गया है कि 'उसकी स्थापना हिंदू समाज को संगठित करने के लिए की गई थी और व्यावहारिक सीमाओं को देखते हुए संघ में महिलाओं को सदस्यता नहीं दी जाती है सिर्फ हिन्दू पुरुष ही इसमें शामिल हो सकते हैं, इसके स्वयंसेवक बन सकते है।' हालांकि यह दावा जोड़ दिया कि 'अपने शताब्दी वर्ष में महिला समन्वय कार्यक्रमों के ज़रिए वो भारतीय चिंतन और सामाजिक परिवर्तन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को बढ़ाना चाहता है।' यह भागीदारी कैसे बढ़ाई जायेगी इसकी एक झलक प्रज्ञा सिंह के टांग तोड़ो, मारो पीटो आह्वान से मिल जाती है ।

संघ के आदि और एकमात्र गुरु गोलवलकर इस मामले में और आगे बढ़कर कहते हैं कि 'एक निरपराध स्त्री का वध पापपूर्ण है परन्तु यह सिद्धांत राक्षसी के लिए लागू नहीं होता।' राक्षसी कौन? इस प्रसंग में वे एक कहानी सुनाते हंै जिसमें शादी के लिए अपने परिवार को राजी करने में असफल प्रेमी अपनी प्रेमिका का गला घोंट कर मार देता है और उसे तनिक भी पीड़ा नहीं होती। कृपया ध्यान दें, यहां प्रेमी विधर्मी नहीं सहधर्मी है और कसूरवार लड़की नहीं, वह प्रेमी है जो अपने परिवार को राजी करने में विफल रहा था!! तब गोलवलकर और आज प्रज्ञा सिंह जिस परम्परा की दुहाई दे रहे हैं, जिस कथित संस्कृति को वे महान कहते हैं वह और कुछ नहीं मनुस्मृति पर आधारित सामाजिक ढांचा है।

गोलवलकर कहते थे कि 'महिलायें मुख्य रूप से मां है उनका काम बच्चों को जन्म देना, पालना पोसना, संस्कार देना है।' सौ वर्ष बाद भी यह धारणा ज्यों की त्यों है: मौजूदा सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत स्त्री की जगह तय करने के साथ विवाह को एक ऐसा कॉन्ट्रैक्ट बताते हैं जिसमें पुरुष का काम पत्नी की आवश्यकताओं की पूर्ति करना और पत्नी का दायित्व पति की सेवा करना और सुख देना है। शताब्दी वर्ष में संघ ने इन दायित्वों में चार से दस तक संतानें पैदा करने का काम और जोड़ दिया है।

संघ घोषित रूप से जिसके आधार पर राज चलाना चाहता है वह मनुस्मृति कोई धार्मिक ग्रन्थ नहीं है। यह वर्णाश्रम की जड़ता की जंत्री है, एक ऐसी जंत्री जो मूलत: स्त्री के विरुद्ध है। शूद्रों के खिलाफ वीभत्सतम बातें लिखने के साथ यह स्त्री को शूद्रातिशूद्र बताती है - मतलब उनसे भी ज्यादा वीभत्सतम बर्ताब की हकदार। इसके मुताबिक़ स्त्री मनुष्य नहीं है वह ऐसी प्राणी है जिसे कभी स्वतंत्र नहीं छोड़ना चाहिए ; 'पिता रक्षति कौमारे भरता रक्षित यौवने / रक्षित स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्रमर्हति।' (9.3 ) यह कहती है कि 'पति चरित्रहीन, लम्पट, निर्गुणी क्यों न हो स्त्री का कर्तव्य है कि वह देवता की तरह उसकी सेवा करे।'

हाल के कुछ आंकड़ों को देखें तो साफ़ हो जाता है कि महिलाओं के पहले से ही त्रासद जीवन को और कठिन तथा यंत्रणापूर्ण बनाने के लिए वे मनु की पूर्ण बहाली तक का इन्तजार भी नहीं करना।

जैसे, भारत में कन्या भू्रण हत्या के आंकड़े चौंकाने वाले हैं, 2000-2019 के दौरान कम से कम 90 लाख भू्रण हत्याएं दर्ज की गईं, जिनमें से अधिकांश हिंदुओं द्वारा की गईं। लिंगानुपात में असंतुलन इसका एक प्रमुख कारण है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 पुरुषों पर 943 महिलाएं थी, जबकि 1901 में यह 972 था।

भारत में महिला उत्पीड़न के आंकड़े बताते हैं कि 2021 में महिलाओं के खिलाफ 4,28,278 मामले दर्ज किए गए, जो 2016 की तुलना में 26.35प्रतिशत अधिक है। इनमें घरेलू हिंसा, अपहरण, बलात्कार, दहेज हत्या और हमले जैसे अपराध शामिल थे।

जैसे जिस मध्यप्रदेश के जिस भोपाल से प्रज्ञा सिंह सांसद रहीं लापता होने वाली लड़कियों के मामले में उस मध्यप्रदेश और भोपाल के आंकड़े बहुत डरावने हैं। अभी-अभी अगस्त 2025 में जारी आंकड़ों के अनुसार: जनवरी 2021 से लेकर पिछले साढ़े चार साल में, मध्य प्रदेश में 59,365 बच्चे लापता हुए, जिनमें से 48,274 लड़कियां थीं। हर दिन औसतन 32 महिलाएं और लड़कियां लापता हुईं। इससे पहले जुलाई 2023 में जारी आंकड़ों के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच, पूरे देश में 13.13 लाख से अधिक लड़कियां और महिलाएं लापता हुईं, जिनमें से सबसे अधिक मध्य प्रदेश से थीं। न कभी सांसद महोदया इस बारे में कभी कुछ बोलीं- न उनकी भाजपा और उनके संघ ने इस बारे में जुबान खोली।

प्रज्ञा सिंह के इस उत्तेजक और उन्मादी आह्वान को इस समग्रता में पढ़ने की जरूरत है। आमतौर से सभी को खासतौर से उन अच्छी लड़कियों को जो बहुत अनुशासित होती हैं - चुप चुप रहती हैं - जितना दे दो उतने पर मान जाती हैं - कभी जोर से नहीं बोलतीं - कभी आगे नहीं भागती। कभी ना नहीं कहती- सामने आने की बजाय पीछे-पीछे चलने में खुश रहती हैं। वे नहीं जानती कि इसकी वजह उस सामाजिक परवरिश में हैं जिसने बहुत चतुराई से ठगी की है और झिझक को श्रृंगार, बेड़ियों को आभूषण बना दिया है। वर्चस्वकारी भारतीय संस्कृति के बड़े अध्येता सालुंखे कहते हैं कि ; 'अन्य मामलों में अपनी भिन्नता को मुखर करने वाले धर्म/पंथ/विचारधाराएं एक मामले में पूरी तरह एक हैं कि; पुरुष का सुख साध्य है और स्त्री उस सुख के साधनों में से एक साधन है। लिहाजा संसाधन के रूप में स्त्री के अपने सुख पर स्वतंत्र रूप से विचार करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।' यह भी कि पुरुष सत्ता की सड़ांध सिर्फ पुरुषों में ही नहीं होती- महिलायें भी उसकी वाहक होती हैं।

इन 'अच्छी' लड़कियों को बोलना सीखना होगा- इस तरह के हमलों को सींग से पकड़ना होगा। लेनिन ने एक बार कहा था कि ; 'महफ़िलों और गोष्ठियों में चहको मत - लड़ो और जगह बनाओ।' अच्छी बात है कि वे ऐसा कर रही हैं।

(लेखक लोकजतन, संयुक्त सचिव अखिल भारतीय किसान सभा हैं)


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