Top
Begin typing your search above and press return to search.

किसानी पर प्रेमचंद की कहानियां

दो दिन पहले 31 जुलाई को प्रसिद्ध उपन्यासकार प्रेमचंद का जन्मदिन था। उनकी कहानियां बचपन से हम पढ़ते आ रहे हैं

किसानी पर प्रेमचंद की कहानियां
X

- बाबा मायाराम

ग्रामीण व खेती-किसानी में बैलों का, पशुओं का महत्व समझ आता है। लेकिन अब बैलों की जगह ट्रेक्टर ने ले ली है। बैल हमारी खेती से बाहर हो गए हैं। पशु सड़कों पर मारे मारे फिर रहे हैं। ऐसी दुर्दशा जीवन में पशुओं की नहीं देखी। पहले गांव में बड़ी संख्या में पशु होते थे। खेती भी बैलों पर निर्भर होती थी। उसके गोबर खाद से मिट्टी उर्वर होती थी। फसल अच्छी होती थी। फसलों के अवशेष व ठंडल पशुओं को खिलाने के काम आते थे।

दो दिन पहले 31 जुलाई को प्रसिद्ध उपन्यासकार प्रेमचंद का जन्मदिन था। उनकी कहानियां बचपन से हम पढ़ते आ रहे हैं। उनका जन्म गांव में हुआ था, वहां पढ़े-बढ़े, मास्टरी की, गांव और समाज को देखा, उनके दुख-दर्द से जुड़े, उसे महसूस किया और उन पर कहानी व उपन्यासों की रचना की। आज प्रेमचंद का जीवन और उनकी कुछ कहानियों की चर्चा इस कॉलम में करना चाहूंगा, जिससे प्रेमचंद के जीवन व लेखन की झलक मिले।

यह तो सभी जानते हैं कि उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस के पास लमही गांव में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता का निधन हो गया। घर की जिम्मेदारियों के साथ पढ़ाई की, और शिक्षक की नौकरी की। नौकरी के बाद भी पढ़ाई जारी रखी। बाद में शिक्षा विभाग में स्कूलों का मुआयना करने वाले अधिकारी( इंस्पेक्टर) पर नियुक्त हुए। राष्ट्रीय आंदोलन से प्रभावित हुए। गांधी और टालस्टाय का प्रभाव रहा। इसलिए नौकरी छोड़कर पूरी तरह लेखन करने लगे। कहानियां, उपन्यास, स्तंभ, लेख लिखे। उनकी कई कहानियां बहुत ही प्रसिद्ध हैं।

उनका जीवन सीधा सादा था। उन्होंने अपने जीवन के बारे में लिखा है कि मेरा जीवन सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहीं-कहीं गड्ढे तो हैं, पर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों और खंडहरों का स्थान नहीं।

उनके साहित्य और जीवन के बीच खाई या दीवार नहीं है। उनके बेटे व साहित्यकार अमृतराय उनकी जीवनी कलम के सिपाही में लिखते हैं कि पौ फटने से पहले ही हल-बैल लेकर अपने खेत पर चले जाने वाले किसान का अनुशासित, पर अनुशासन के आडम्बर से मुक्त, जीवन ही उनका जीवन है।

प्रेमचंद ने हमारे गांव, समाज, किसान को नजदीक से देखा। गांव में उनका जन्म ही हुआ, वे पले—बढ़े भी वहीं, पर बाद में नौकरी के दौरान कई गांवों में जाने का मौका मिला। वहां के दुख-दर्द को महसूस किया, उस पर लिखा, बल्कि खूब लिखा। बल्कि वे एक किसान की ही तरह थे, किसान कुदाल चलाता है, और वे कलम चलाते थे।

उनके बेटे और साहित्यकार अमृतराय ने उनकी जीवनी कलम के सिपाही में बताया है कि प्रेमचंद के लिए लिखने का क्या मायने हैं। लिखना महज दिमाग की खुजली मिटाना नहीं है, बल्कि जिंदगी है तो उसे भी जिंदगी के तमाम और रसझल्लों के बीच जिन्दा रहना होगा। इसकी तदबीर करनी होगी। इसके लिए अपने आपसे लड़ना होगा। दिमाग को दिल को इस बात की ट्रेनिंग देनी होगी।

मैं यहां गांव और किसान से जुड़ी प्रेमचंद की कहानियों का जिक्र करना चाहूंगा, जिससे पता चल सके कि किसानों की समस्याएं अब भी वही है, जो उनके जमाने में थी। पूस की रात नामक कहानी बताती है कि किसानों को कितनी मुश्किलों से गुजरना पड़ता है। फसल बोने से लेकर फसल कटाई तक कई तरह की कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। बहुत ज्यादा ठंड में भी खेतों की रखवाली करनी पड़ती है। इस कहानी में एक किसान दंपति हल्कू और मुन्नी है। उनका खेत है, खेत में फसल है। फसल की रखवाली के लिए किसान जाता है। लेकिन पूस की रात, जब कंपकंपाती ठंड होती है, उस समय रखवाली करना मुश्किल होता है।

जब हल्कू को गर्म कपड़ों के अभाव में, कम्बल के बिना खेतों की रखवाली करनी पड़ती है। क्योंकि कम्बल के पैसे कर्ज चुकाने के लिए देने पड़े। एक दिन वह उसके कुत्ते के साथ रखवाली करने गया। उस दिन बहुत ठंड थी। अलाव जलाया, कुछ समय उसके सहारे रहा, थोड़ी गर्मी शरीर में आ गई तो नींद आ गई। कुत्ता भोंकता रहा, एक बार हल्कू लगा भी कि खेत मे नीलगायों का झुंड आ गया, उसके कानों में आवाज़ें साफ सुनाई दे रही थीं। लेकिन यह उसका भ्रम है। वह उठा भी और फिर अलाव के पास बैठ गया और सो गया। और किसान हल्कू की आंख लग गई। और खेत की फसल नीलगायों के झुंड ने चर लिया। जब सुबह हुई तो किसान की पत्नी आई, और देखा कि खेत को जानवरों ने चर लिया है और उसका पति सो रहा है। उसने पति को जगाया और पूछा- क्या आज सोते ही रहोगे?

आज भी जंगली जानवरों से फसलों की सुरक्षा करना बहुत कठिन काम है। बहुत ठंड में भी किसानों को फसलों की रखवाली करनी पड़ती है। वे मचान (मंडप) बनाकर वहां से खेतों की रखवाली करते हैं पर कई बार इसके बावजूद भी जंगली जानवर फसल चर जाते हैं, बर्बाद कर जाते हैं। यह देश के अलग अलग कोनों में देखने में आया है कि फसलों को जानवरों से बचाना बहुत मुश्किल काम है। एक बार उत्तराखंड में गया तो वहां के किसानों ने बताया कि दिन में बंदर, रात में सुअर फसलों को बरबाद कर रहे हैं। यह वैसा ही है कि नजर हटी तो दुर्घटना घटी।

प्रेमचंद की एक और कहानी है दो बैलों की कथा। इस कहानी झुरी नामक किसान के पास दो बैल थे। हीरा और मोती। दोनों में अच्छी दोस्ती है। किसान भी उन दोनों को बहुत प्रेम करता है। वह कु छ समय के लिए उन्हें ससुराल भेज दिए। वहां से लौट आए। पर वहां एक छोटी लड़की बैलों को प्यार करती थीं। रोटी खिलाती थी। लेकिन उनका मन वहां नहीं लगा और वे रस्सी तुड़ाकर भाग गए।

किसी के मटर के खेत में घुस गए। कांजी हाऊस में बंद कर दिए गए। एक हफ्ते दोनों बैल वहीं बंधे रहे। वहां ढंग से न चारा मिला न पानी। दोनों कमजोर हो गए। हड्डियां निकल आईं। कुछ दिन बाद दोनों की नीलामी हो गई। नीलामी से खरीदने वाला व्यक्ति बैलों को लेकर चला, रास्ते में जिस किसान के बैल थे, वह उसके घर के पास जाकर रूक गए। किसान झूरी बोला- ये बैल मेरे हैं। नीलाम में लेने वाला बोला- मैंने तो नीलाम में लिए हैं। दोनों बैलों ने नीलाम लेने वाले व्यक्ति को दौड़ाया और इस तरह दोनों बैल उनके मालिक के पास ही रह गए।

यह कहानी बार-बार पढ़कर ग्रामीण व खेती-किसानी में बैलों का, पशुओं का महत्व समझ आता है। लेकिन अब बैलों की जगह ट्रेक्टर ने ले ली है। बैल हमारी खेती से बाहर हो गए हैं। पशु सड़कों पर मारे मारे फिर रहे हैं। ऐसी दुर्दशा जीवन में पशुओं की नहीं देखी। पहले गांव में बड़ी संख्या में पशु होते थे। खेती भी बैलों पर निर्भर होती थी। उसके गोबर खाद से मिट्टी उर्वर होती थी। फसल अच्छी होती थी। फसलों के अवशेष व ठंडल पशुओं को खिलाने के काम आते थे। इस तरह खेती में लागत भी बहुत कम लगती थी।

इसी तरह प्रेमचंद की लेखनी में किसान, गांव और समाज पर ढेरों कहानियां हैं। जिनमें समाज की कुरीतियां, अभाव, गरीबी झलकती है। इनसे लड़ने की प्रेरणा भी है। जीने की जिजीविषा भी, संघर्ष भी है। कुल मिलाकर, प्रेमचंद ने जो देखा, जो महसूस किया, वह लिखा, वह आज भी प्रेरणा देता है। उन्होंने समाज की समस्याएं, कुरीतियों, देश की गुलामी, राष्ट्रीय आंदोलन सब लिखा, कहानियों व उपन्यासों के माध्यम से रचनात्मक ढंग से कलम चलाई। वे जीवन में ऐसे ही संघर्ष करते रहे, अभाव, घरेलू परेशानियों से जूझते रहे। लेकिन फिर भी लिखते रहे, एक निष्काम कर्मयोगी की तरह, निरंतर अपने काम में लगे रहे। उनका जीवन व लेखन एक जैसा है, यही उनके साहित्य में है। इसलिए उनका जीवन और लेखन दोनों ही प्रेरणास्पद है। उनसे सदैव ही पीढ़ियां प्रेरणा लेती रहेंगी।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it