Top
Begin typing your search above and press return to search.

कांग्रेस के भविष्य पर मोदी की चिंता

बिहार में जीत दर्ज करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा मुख्यालय में जब जीत का जश्न मनाया तो उसमें फिर उसी प्रतीकात्मक राजनीति को बढ़ावा दिया

कांग्रेस के भविष्य पर मोदी की चिंता
X
  • सर्वमित्रा सुरजन

जीत के बाद श्री मोदी का अभिनंदन मखाने की बड़ी सी माला पहना कर किया गया। ध्यान रहे कि मखाना भी इस बार चुनाव का अहम मुद्दा रहा। अमीरों के लिए जो मखाना सुपर फूड कहा जा रहा है, उसे उपजाने वाले किसानों की जो दुर्दशा है, उसे समझने के लिए राहुल गांधी मखाना किसानों के साथ तालाब में उतरे थे। लेकिन अब भाजपा यह साबित करने में लगी है कि किसानों ने राहुल नहीं मोदी को चुना है।

बिहार में जीत दर्ज करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा मुख्यालय में जब जीत का जश्न मनाया तो उसमें फिर उसी प्रतीकात्मक राजनीति को बढ़ावा दिया, जिसके चंगुल में फंसकर जनता अपने ही जीवन से जुड़े बुनियादी मुद्दों की अनदेखी कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने पहले तो गमछा लहराकर अपने कार्यकर्ताओं का अभिवादन किया। गमछा एकदम सतह से जुड़े लोगों की खास पहचान है और केवल बिहार ही नहीं, समूचे भारत में आम आदमी इसका इस्तेमाल करता है। बिहार में एक बार तेजस्वी यादव ने गमछा हिलाया था तो फिर नरेन्द्र मोदी ने इसका महत्व समझ लिया। भाजपा कार्यकर्ता जमीन पर काफी मेहनत करते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन मोदी युग में भाजपा उद्योगपतियों की चहेती पार्टी बन चुकी है। नरेन्द्र मोदी ने अपने ही नामाक्षर वाले सुनहरे धागों से उकेरे गए नमो-नमो लिखे 10 लाख का सूट पहना था, यह देश को याद होगा ही। इसके बाद मोदी सरकार को सूट-बूट की सरकार कहा गया, तो अब भाजपा को जमीन से जुड़ी पार्टी दिखाने के लिए नरेन्द्र मोदी गमछा लहरा रहे हैं।

जीत के बाद श्री मोदी का अभिनंदन मखाने की बड़ी सी माला पहना कर किया गया। ध्यान रहे कि मखाना भी इस बार चुनाव का अहम मुद्दा रहा। अमीरों के लिए जो मखाना सुपर फूड कहा जा रहा है, उसे उपजाने वाले किसानों की जो दुर्दशा है, उसे समझने के लिए राहुल गांधी मखाना किसानों के साथ तालाब में उतरे थे। लेकिन अब भाजपा यह साबित करने में लगी है कि किसानों ने राहुल नहीं मोदी को चुना है। मखाना भी प्रतीकात्मक राजनीति का औजार बन गया है।

अपने संबोधन की शुरुआत नरेन्द्र मोदी ने जय छठी मईया कहकर की। ओडिशा जीतने के बाद जय जगन्नाथ से जय छठी मईया का यह सफर भी प्रतीकात्मक राजनीति का सबूत है। छठ पूजा के समय नरेन्द्र मोदी दूसरे घाट और साफ पानी की पोल खुल जाने के कारण अर्घ्य देते हुए वीडियो और तस्वीरें नहीं बनवा पाए थे। लेकिन बिहार चुनाव की जीत ने उन्हें छठी मईया का जयकारा लगाने का मौका दे ही दिया। यह तय बात है कि अगर भाजपा यह चुनाव हारती, तब नरेन्द्र मोदी इसे छठी मईया का आदेश मानकर स्वीकार नहीं करते, बल्कि वे इस पर कुछ कहते ही नहीं। लेकिन अब उन्हें अपने एक झूठे नैरेटिव को आगे बढ़ाने का मौका मिल गया है। अपने संबोधन में नरेन्द्र मोदी ने कहा कि विपक्ष ने छठी मईया का अपमान किया, छठ पूजा को नौटंकी कहा। हालांकि ये बात सरासर झूठ है। राहुल गांधी ने साफ शब्दों में कहा था कि नरेन्द्र मोदी अपने लिए अलग घाट बनवाकर छठ पूजा की नौटंकी कर रहे हैं। इसमें छठ पूजा की अवहेलना या छठी मईया का अपमान नहीं था, बल्कि नरेन्द्र मोदी के दिखावे की पोल खोल रहे थे। खबरों के फैक्ट चेक में भी यह साबित हो चुका है कि राहुल गांधी ने छठी मईया का अपमान नहीं किया था, मगर अब नरेन्द्र मोदी इसी झूठ को सौ बार बोलकर उसे सच साबित करने में लगे हैं।

नरेन्द्र मोदी ने कहा कि जंगलराज वालों ने एमवाय का तुष्टिकरण किया। हमारे लिए एमवाय का मतलब महिला और यूथ है। गौरतलब है कि लालू प्रसाद की राजनीति में एम वाय फार्मूला यानी मुस्लिमों और यादवों के वोटों की मिली जुली ताकत को महत्व दिया गया था। राजद का जनाधार मजबूत होने के पीछे यह एक बड़ा कारण रहा। अब मोदी और भाजपा की मर्जी है कि वे एम वाय का विस्तारीकरण अपने हिसाब से करें। हालांकि मोदी ने जिस तरह महिला और यूथ यानी युवा का जिक्र किया है, उससे यह तो तय हो ही गया है कि 10 हजार रूपए चुनावों के वक्त खाते में डालने का फायदा भाजपा को मिला। अब चुनाव आयोग ने यह बेईमानी होने दी कि एक पार्टी आचार संहिता का उल्लंघन करे और उस पर कोई कार्रवाई न हो, तो विपक्षी चाहे जितने दांव-पेंच चल लें, क्या फर्क पड़ेगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने जीत के जश्न में प्रतीकों के इस्तेमाल और विपक्ष पर तंज कसने के अलावा अपने भाषण का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस को समर्पित किया। जिससे समझ आता है कि कांग्रेस को लेकर उनका डर अब तक गया नहीं है। जब तक राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता बने रहेंगे, नरेन्द्र मोदी चैन से अपनी सत्ता का मजा नहीं लूट पाएंगे। नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में कांग्रेस के विभाजन की भविष्यवाणी ही कर दी। उन्होंने कहा कि- 'कांग्रेस के नामदार जिस रास्ते पर पार्टी को लेकर चल रहे हैं, उसके प्रति घोर निराशा और घोर नाराजगी अंदर ही अंदर पनप रही है।' पाठक जानते हैं कि राहुल गांधी का सीधा नाम नरेन्द्र मोदी कभी नहीं लेते। कभी शहजादे, कभी नामदार ऐसे ही उन पर निशाना साधते हैं। तो अब राहुल गांधी कांग्रेस को किस रास्ते पर ले जा रहे हैं, इससे नरेन्द्र मोदी फिक्रमंद हो रहे हैं। अगर वाकई राहुल के कारण कांग्रेस को नुकसान है, तब तो मोदी को खुश होना चाहिए। लेकिन मोदी भी जानते हैं कि राहुल के कारण ही कांग्रेस की ताकत बची है। वर्ना उसे भीतर ही भीतर तोड़ने वालों की कमी नहीं है। राहुल ही ऐसे नेता हैं, जिन्हें मोदी और उनके दोस्त अब तक डरा नहीं पाए हैं।

बहरहाल, मोदी ने कहा कि मुझे आशंका है कि आगे कांग्रेस का एक और बड़ा विभाजन होगा। कांग्रेस की राजनीति अब नकारात्मक राजनीति वाली हो गई है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के रवैये की वजह से अंदर-अंदर ही एक नया गुट उभर सकता है। साथ ही उसके सहयोगी भी अब दूरी बनाना शुरू कर देंगे। क्योंकि कांग्रेस के सहयोगियों को भी समझ आ रहा है कि सभी को निगेटिव दिशा में ले जा रही है। कांग्रेस के नामदार खुद और दूसरों को भी डुबोने की प्रैक्टिस कर रहे हैं।'

नरेन्द्र मोदी ने कह दिया कि कांग्रेस का विभाजन होगा तो अब मीडिया भी इसके पिष्टपेषण में लग गया है। भाजपा का समर्थित मीडिया है, तो उसे वही नैरेटिव बनाना होगा जो मोदी चाहते हैं। कांग्रेस का भविष्य क्या होगा, इसकी चिंता कांग्रेसियों से ज्यादा भाजपा और मीडिया को होने लगी है। दरअसल इन्हें अल्लामा इकबाल के तराने की पंक्तियां पढ़ने की जरूरत है कि-

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,

सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़मां हमारा।

28 दिसंबर 1885 को स्थापित कांग्रेस एक नहीं कई बार टूट देख चुकी है और कई बार पार्टी से सारे पद और सुविधाएं हासिल करने वाले लोग सत्ता की खातिर उसे छोड़कर जा चुके हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा जैसे नाम हाल की मिसालें हैं। मोदी को पता होना चाहिए कि राहुल गांधी के ग्रेट ग्रैंड फादर यानी पर-परनाना मोतीलाल नेहरू ने सबसे पहले 1922 में कांग्रेस को तोड़ा था। उन्होंने चितरंजन दास के साथ मिलकर नई पार्टी का गठन किया, जिसे स्वराज पार्टी का नाम दिया गया। इसके बाद, सुभाषचंद्र बोस ने 1939 में अखिल भारतीय फारवर्ड ब्लाक के नाम से अलग पार्टी बनाई। जेबी कृपलानी ने 1951 में कांग्रेस से अलग होकर किसान मजदूर प्रजा पार्टी का गठन किया था। 1956 में सी राजगोपालाचारी ने कांग्रेस छोड़कर इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया। 1959 में बिहार, राजस्थान, गुजरात और ओडिशा में कांग्रेस में टूट हुई थी। 1964 में केएम जार्ज ने केरल में कांग्रेस को तोड़कर केरल कांग्रेस के नाम से नई पार्टी बनाई। 1967 में चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर भारतीय क्रांति दल का गठन किया, जो बाद में लोकदल के नाम से जाना गया।

इंदिरा गांधी को कांग्रेस ने 12 नवंबर 1969 को पार्टी से बर्खास्त कर दिया, जिसके बाद इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आर) के नाम से नई पार्टी का गठन किया, जिसे बाद में कांग्रेस (आई)के नाम से जाना गया। अभी यही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनी है। वीपी सिंह ने 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ हो गए और उन्होंने जनमोर्चा के नाम से अपनी नई पार्टी बनाई। बाद में जनमोर्चा से ही जनता दल, जनता दल (यू), राजद और समाजवादी पार्टी का जन्म हुआ। 1999 के आसपास कांग्रेस में सोनिया गांधी के नाम पर फिर से बगावत हुई। तब शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बनाई।

पिछले पंजाब चुनाव के वक्त अमरिंदर सिंह ने पंजाब लोक कांग्रेस नाम से पार्टी बनाई। अब इसका विलय भाजपा में कर लिया गया है। गुलाम नबी आजाद ने भी कांग्रेस का साथ छोड़ा और डेमोक्रेटिक प्रगतिशील आज़ाद पार्टी बनाई। एनसीपी, टीएमसी के अलावा अब अन्य दिग्गजों की पार्टियों का क्या हाल है, यह सबको पता है। जिन लोगों ने भाजपा से हाथ मिला लिया या उसके सामने घुटने टेक दिए, वे किसी तरह राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए हैं, अन्यथा बाकियों का न अस्तित्व बचा है, न साख। लेकिन 2014 से सत्ता से बाहर कांग्रेस अब भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है, तो यह उसकी संविधानपरक, लोकतांत्रिक राजनीति के कारण ही है। राहुल गांधी से कांग्रेस को कितना फायदा हो रहा है या नुकसान पहुंच रहा है, यहां यह सवाल है ही नहीं। बल्कि असली सवाल तो यह है कि मोदी को राहुल गांधी से इतना डर क्यों लग रहा है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it