मोदी की बंगाल रैली प्रदेश भाजपा में जोश भरने में नाकाम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताह शुक्रवार को दुर्गापुर रैली में पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनावों का बिगुल फूंका, जो एक कमज़ोर आह्वान ही साबित हुआ

- तीर्थंकर मित्रा
पश्चिम बंगाल रैलियों के लिए यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन यह अच्छी तरह जानते हुए कि दुर्गापुर, जो कभी पश्चिम बंगाल का एक हलचल भरा औद्योगिक केंद्र था, अब भगवा का गढ़ नहीं रहा, राज्य पार्टी प्रमुख समिक भट्टाचार्य इस औद्योगिक नगरी में घर-घर जाकर प्रधानमंत्री की रैली के निमंत्रण बांट रहे थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताह शुक्रवार को दुर्गापुर रैली में पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनावों का बिगुल फूंका, जो एक कमज़ोर आह्वान ही साबित हुआ। उनकी रैली बंगाल भाजपा में जोश भरने में भी नाकाम रही। उन्होंने भाजपा के प्रति बंगाली भावना को भड़काने के लिए अपने 34 मिनट के संबोधन में बंगाली 'अस्मिता' (गौरव) की बात की, लेकिन राज्य में उनकी प्रमुख राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी ममता बनर्जी ने पहले ही कई भाजपा शासित राज्यों में बंगाली भाषी लोगों को बांग्लादेशी बताये जाने के विरोध में कोलकाता में एक विशाल जुलूसनिकालकर उन्हें मात दे दी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने रैली के दौरान कहा, 'जहां भी भाजपा है, बंगाली सुरक्षित हैं।' बंगालियों को बांग्लादेशी बताये जाने की घटनाओं को देखते हुए, जो तृणमूल सुप्रीमो बनर्जी के लिए चुनावी मुद्दा बन गई हैं, भाजपा के मुख्य वोट बटोरने वाले नेता ने इस बयान से खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है, और वह बचाव की मुद्रा में हैं।
इस पृष्ठभूमि में, प्रधानमंत्री द्वारा पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा का समर्थन करने का आह्वान बेतुका था। बंगाली गौरव को सम्मान देने के लिए कवि विष्णु डे और अग्रणी महिला चिकित्सक कादम्बिनी गांगुली का जिक्र करना खोखला था।
दुर्गापुर के नेहरू स्टेडियम और उसके आसपास मौजूद श्रोताओं ने अपने संबोधन में पश्चिम बंगाल के धरतीपुत्रों के प्रति पूर्वाग्रह की झलक देखी, जब प्रधानमंत्री मोदी ने कड़ी कार्रवाई यानी गैर-भारतीय नागरिकों को देश की धरती से निर्वासित करने की बात कही। जिन लोगों पर घुसपैठिए होने का आरोप लगाया गया था, उनमें से कई की कड़ी जांच के बाद पता चला कि वे भारतीय नागरिक हैं और इसी राज्य के निवासी हैं।
लेकिन प्रधानमंत्री के भाषण में विरोध का एक शब्द भी नहीं था। असम और ओडिशा के उन हिस्सों में बंगालियों के उत्पीडऩ पर, जहां भाजपा सत्ता में है, प्रधानमंत्री मोदी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। बेशक, उन्होंने बांग्लादेश से घुसपैठ का डर दिखाया, जिससे राज्य की जनसांख्यिकी बदलने का खतरा मंडरा रहा है।
लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन केंद्रीय एजेंसी, बीएसएफ, जो घुसपैठियों से सीमाओं की सुरक्षा करती है, पर कोई आरोप-प्रत्यारोप नहीं लगाया गया। प्रधानमंत्री का वाकयुद्ध पूरी तरह से तृणमूल कांग्रेस की राज्य सरकार की कमियों के खिलाफ था।
राज्य भाजपा नेतृत्व प्रधानमंत्री की रैली स्थल पर पर्याप्त भीड़ की उपस्थिति को लेकर अनिश्चित दिखाई दिया। आखिरकार, भाजपा दुर्गापुरआसनसोल लोकसभा सीट पर हार गयी थी जहां रैली आयोजित की गई थी।
पश्चिम बंगाल रैलियों के लिए यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन यह अच्छी तरह जानते हुए कि दुर्गापुर, जो कभी पश्चिम बंगाल का एक हलचल भरा औद्योगिक केंद्र था, अब भगवा का गढ़ नहीं रहा, राज्य पार्टी प्रमुख समिक भट्टाचार्य इस औद्योगिक नगरी में घर-घर जाकर प्रधानमंत्री की रैली के निमंत्रण बांट रहे थे।
दुर्गापुर में सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों की सुस्त और बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयां मौजूद हैं। केंद्र सरकार की उदारता से निकट भविष्य में उन्हें पुनर्जीवित करने का कोई जिक्र प्रधानमंत्री के भाषण में नहीं था।
दक्षिण बंगाल, जहां दुर्गापुर स्थित है, राज्य के उत्तरी हिस्से की तरह भगवा खेमे के लिए कोई ख़ास आकर्षण का केंद्र नहीं है। प्रधानमंत्री की रैली से राज्य के इस हिस्से में उनकी पार्टी की चुनावी संभावनाओं में कोई सुधार नहीं हुआ।
इस रैली ने बंगाल में गहरी दरारों को उजागर कर दिया। राज्य भगवा इकाई के संगठनात्मक ढांचे पर सवाल उठ रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ता प्रधानमंत्री मोदी के राज्य प्रमुख भट्टाचार्य, विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी और पूर्व राज्य प्रमुख दिलीप घोष के साथ मंच साझा करने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन पार्टी आलाकमान के आमंत्रण के बिना, घोष ने प्रधानमंत्री की रैली में शामिल न होने का फैसला किया। वह राष्ट्रीय राजधानी पहुंचे और राष्ट्रीय पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा के सामने अपना पक्ष रखा और उनसे समाधान की मांग की।
प्रधानमंत्री ने राज्य इकाई के संगठनात्मक ढांचे को मज़बूत करने का कोई आह्वान नहीं किया। भाजपा के पास अभी तक सभी मतदान केंद्रों पर तैनात करने के लिए पर्याप्त संख्या में कार्यकर्ता नहीं हैं। इसका कारण पूरे राज्य में कार्यकर्ताओं के एक मजबूत और एकसमान आधार का अभाव है। महिलाओं पर अपराध के विरोध में शहर में हुए विभिन्न आंदोलनों में भाजपा की अनुपस्थिति साफ़ दिखाई दी।
शायद प्रधानमंत्री ने राज्य इकाई की संगठनात्मक कमज़ोरी को बढ़ावा देने का विकल्प नहीं चुना। लेकिन सच्चाई यह है कि इसे नजऱअंदाज़ नहीं किया जा सकता और यह आगामी चुनावी जंग में पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। नरेंद्र मोदी भाजपा संगठन को वह गतिशीलता प्रदान करने में विफल रहे जिसकी इस समय ज़रूरत थी। यह दौरा विभाजित भाजपा को कोई अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करने में विफल रहा है।


