मोबाइल का साथी या आस्तीन का सांप
मोदी सरकार तानाशाही कायम करने के नित नए तरीके ईजाद कर रही है। और यह काम इतनी चालाकी से किया जा रहा है कि जनता को लगता है कि सब उसके भले के लिए है

- सर्वमित्रा सुरजन
दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों में इस तरह की डिजिटल जासूसी के खिलाफ कड़े कानून हैं, लेकिन यहां तो मांझी ही नाव डुबोने वाले बने हुए हैं। वैसे इस फैसले पर अब बड़ी फोन निर्माता कंपनियां भी सहमत नहीं हैं। ऐप्पल अपने स्मार्टफोन में सरकारी साइबर सुरक्षा ऐप प्रीलोड करने के आदेश का पालन करने की योजना नहीं बना रहा है। खबर है कि वह अपनी चिंताओं से भारत सरकार को अवगत कराएगा।
मोदी सरकार तानाशाही कायम करने के नित नए तरीके ईजाद कर रही है। और यह काम इतनी चालाकी से किया जा रहा है कि जनता को लगता है कि सब उसके भले के लिए है। जहरीली हवा में सांस लेते और जहरीला पानी पीते हुए भी जनता जब प्रधानमंत्री को यह कहते सुनती है कि मौसम का मज़ा लीजिए, तो उसे लगता है कि सांसें गिरवी रख देना ही राष्ट्रधर्म है। चीन के बाद नेपाल भी भारत के इलाकों पर अपना कब्जा दिखा चुका है, लेकिन जब मोदी कहते हैं कि ये नया भारत है, जो झुकता नहीं है, तो जनता गलवान से लेकर पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर तक सब भूल जाती है। विपक्षी दलों पर वंशवाद का आरोप लगाते हुए मोदी जब खुद बीजेपी और सहयोगी दलों में बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों को आगे बढ़ाते हैं तो जनता को यह राजनैतिक चातुर्य लगता है। ऐसे दर्जनों उदाहरण पेश किए जा सकते हैं, जिसमें मोदी की कथनी और करनी में जमीन-आसमान जैसा अंतर दिखाई देता है। लेकिन जनता फिर भी भ्रमित हो चुकी है, क्योंकि मोदी के प्रचार तंत्र ने जमीन-आसमान के अंतर को उस क्षितिज की तरह पेश किया है, जहां जमीन-आसमान मिलते हुए दिखाई देते हैं।
रेगिस्तान में पानी की तलाश में भटकते मृग की तरह जनता की हालत हो चुकी है। यह सब प्रचारतंत्र की बाजीगरी है। बहुत पहले जब देश में शुद्ध देसी घी ही खाया जाता था, तब वनस्पति घी बेचने के लिए बाजारों में मुफ्त के पकवान परोसे जाते थे। बेचने और ठगने का यही तरीका अब राजनीति में इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन इसमें जनता केवल ठगा नहीं रही है, बल्कि राजनीति के चौपड़ में लोकतंत्र को दांव पर लगा रही है। कुरुसभा की तरह संवैधानिक संस्थाएं आंख पर पट्टी बांधे या देखे को अनदेखा कर जुए के इस तमाशे का मजा ले रही हैं।
इस जुए में अब मोदी सरकार ने लोगों के मोबाइल सेट के जरिए जासूसी का पांसा फेंका है। वो भी बेहद लुभावने नाम के साथ। संचार साथी ऐप, नाम से लगेगा हमारा कोई साथी है, यानी सुख-दुख में साथ देने वाला। लेकिन ये साथी तो असल में आस्तीन का सांप बनेगा, जो कब डसेगा कहा नहीं जा सकता।
सरकार ने पिछले सप्ताह मोबाइल हैंडसेट निर्माताओं को निर्देश दिया है कि भारत में इस्तेमाल के लिए बनाए या आयात किए गए सभी नए मोबाइल हैंडसेट में 90 दिनों के भीतर संचार साथी ऐप प्री-इंस्टॉल हो जाए। दूरसंचार विभाग के निर्देश में अनिवार्य किया गया है कि भारत में इस्तेमाल के लिए लक्षित मोबाइल हैंडसेट के सभी निर्माताओं और आयातकों को जारी होने की तारीख से 120 दिनों के भीतर विभाग को अनुपालन रिपोर्ट जमा करनी होगी। इसमें आगे चेतावनी दी गई है कि अनुपालन में विफल रहने पर दूरसंचार अधिनियम, 2023, दूरसंचार साइबर सुरक्षा नियम, 2024, और अन्य लागू कानूनों के तहत कार्रवाई होगी। यह निर्देश तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है और विभाग द्वारा संशोधित या वापस लिए जाने तक लागू रहेगा।
इस आदेश के मुताबिक स्मार्टफ़ोन निर्माताओं को मार्च 2026 से बेचे जाने वाले नए मोबाइल फ़ोन में संचार साथी ऐप को प्री-इंस्टॉल करना होगा। साथ ही पुराने फ़ोनों में इसे सॉफ़्टवेयर अपडेट के ज़रिए भेजा जाएगा। यानी जब आप अपने स्मार्ट फोन का सॉफ्टवेयर अपडेट करेंगे तो यह ऐप अपने आप फोन पर आ जाएगा। यह पहली बार है जब देश में किसी ऐप को इस तरह से हर डिवाइस में स्थायी रूप से रहने की अनुमति दी गई है। हालांकि इस कदम का व्यापक विरोध शुरु हुआ और इसे बिग बॉस की तरह लोगों के निजी जीवन में तांक-झांक करने वाला करार दिया गया तो सरकार ने दावा किया कि ऐसा साइबर सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है ताकि साइबर क्राइम को रोका जा सके। हालांकि विपक्षी दलों का कहना है कि जिस तरह सरकार ने इजरायली सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए चोरी-छिपे जासूसी कराई थी, वही जासूसी अब ऐलान के साथ करने का दुस्साहस सरकार ने दिखाया है। इसे सीधे-सीधे तानाशाही करार दिया जा रहा है। हमेशा की तरह सरकार ने इस बार भी इसमें किसी से सलाह-मशविरा जरूरी नहीं समझा। बस एक आदेश जारी कर दिया।
जब विरोध के सुर तेज हुए तो दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इसे साइबर धोखाधड़ी की रिपोर्ट करने के लिए एक वैकल्पिक मोबाइल एप्लिकेशन बताते हुए कहा कि उपयोगकर्ता इसे अपने फोन से हटाने के लिए स्वतंत्र हैं। सिंधिया ने कहा अगर आप इस ऐप का इस्तेमाल नहीं करना चाहते, तो रजिस्टर मत करो और डिलीट करना है तो डिलीट कर लो। लेकिन देश में हर व्यक्ति को नहीं मालूम कि ये ऐप फ्रॉड से बचाने, चोरी से बचाने के लिए है। हर व्यक्ति तक ये ऐप पहुंचाना हमारी ज़िम्मेदारी है।
अब सिंधिया जी को कौन याद दिलाए कि जिम्मेदारियां तो आपकी सरकार पर और भी ढेर सारी हैं, पहले उन्हें पूरा कर लें। और जैसे हर व्यक्ति को नहीं मालूम कि ये ऐप फ्रॉड से बचा सकता है, उसी तरह हर व्यक्ति को नहीं मालूम कि ये ऐप हटाया भी जा सकता है। वैसे भी सिंधिया की बात को उनके ही मंत्रालय का दूरसंचार (टेलीकॉम साइबर सुरक्षा) नियम, 2024 नकारता है। इस नियम के तहत दिए गए निर्देश का खंड 7(बी) कहता है: 'सुनिश्चित करें कि प्री-इंस्टॉल किया गया 'संचार साथी' एप्लिकेशन पहले इस्तेमाल या डिवाइस सेटअप के समय अंतिम उपयोगकर्ताओं के लिए आसानी से दिखे और सुलभ हो। इसकी कार्यक्षमताओं को अक्षम या प्रतिबंधित न किया जाए।' इस निर्देश से साफ है कि मंत्रालय ने ऐप को हटाने पर रोक लगाई है। तो लोग मंत्रालय के निर्देश मानें या मंत्री की मुंहजुबानी बात पर यकीन करें।
डिजिटल अधिकार वकालत संगठन, इंटरनेट फ्रीडम फ़ाउंडेशन (आईएफएफ) ने सिंधिया की टिप्पणियों का खंडन करते हुए कहा है कि 'स्पष्टीकरण गलत है' और आधिकारिक निर्देश स्पष्ट रूप से कहता है कि संचार साथी को 'अक्षम या प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है'। आईएफएफ ने यह भी कहा है कि पर्सनल डिजिटल डिवाइस पर सरकारी कंट्रोल का तेज़ी से बढ़ना बहुत चिंता की बात है। ऐसे फैसले कानूनी तौर पर कमज़ोर हैं, और यूज़र की निजता के लिए खतरनाक है।
सरकार का यह आदेश संविधान के भी खिलाफ है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार डिजिटल और टेलिकॉम से जुड़े फ़ैसले केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, लेकिन साइबर अपराध को रोकना राज्यों की ज़िम्मेदारी है। जब केंद्र और राज्य दोनों के अधिकार अलग-अलग हैं, तो कोई नया नियम बनाने से पहले राज्यों और आम लोगों से सलाह-मशविरा क्यों नहीं किया गया? यह एक बड़ा सवाल है। बता दें कि भारत में डेटा प्रोटेक्शन क़ानून 2023 में साफ़ लिखा है कि किसी भी तरह का व्यक्तिगत डेटा लेने के लिए सहमति ज़रूरी है। लेकिन यहां तो सरकार बिना यूज़र की मर्जी के उसके फोन में घुसने की कोशिश कर रही है। फोन में क्या रहेगा और क्या नहीं, यह तय करने का अधिकार हमारी निजी स्वतंत्रता का हिस्सा है। ऐसे में, अगर संचार साथी ऐप को फोन से हटाने का विकल्प नहीं मिलेगा तो यह यूज़र की निजता, स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ माना जा सकता है।
यह बताने की जरूरत नहीं कि मोबाइल फ़ोन सबकी पर्सनल स्पेस होती है। एक घर के सदस्य ही एक-दूसरे से अपने मोबाइल फोन के पासवर्ड साझा नहीं करते हैं। भले कुछ छिपाने को न हो, फिर भी एक-दूसरे के फोन पर झांकना बदतमीजी समझा जाता है। क्योंकि यहां निजी बातें होती हैं, कई जरूरी नोट्स संभाल कर रखे जाते हैं। यादगार तस्वीरें होती हैं। जैसे पहले लोग डायरी लिखते थे और किसी की डायरी पढ़ना खराब आदत मानी जाती थी, वही व्यवहार अब मोबाइल के साथ हो चुका है। ऐसे में संचार साथी ऐप मोबाइल में होने के बाद खतरा बना रहेगा कि यह ऐप हमारे फ़ोन की फ़ाइलें, फ़ोटो या मैसेज देख लेगा या भविष्य के किसी अपडेट में ऐसा कर सकता है। अभी भले ही सरकार इसे डिजिटल सुरक्षा का औजार बता रही है, लेकिन असल में इसी औजार से सबसे ज्यादा सेंध लगने का खतरा रहेगा, ऐसा जानकार मान रहे हैं। संचार साथी ऐप से अनेक प्रकार का डेटा सरकार के पास आएगा और आज की तकनीकी क्षमता वाली पूंजीवादी राजनीति में डेटा ही सबसे बड़ी संपत्ति किसी देश के लिए बन चुका है। कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसी डेटा के दम पर फल-फूल रही हैं। डेटा के आधार पर लोगों की सारी जानकारियां सरकार के पास आएंगी। किसी व्यक्ति की गतिविधियां, लोकेशन, बातचीत या वित्तीय लेनदेन की जानकारी हासिल करना आसान होगा।
गौर करने वाली बात ये है कि दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों में इस तरह की डिजिटल जासूसी के खिलाफ कड़े कानून हैं, लेकिन यहां तो मांझी ही नाव डुबोने वाले बने हुए हैं। वैसे इस फैसले पर अब बड़ी फोन निर्माता कंपनियां भी सहमत नहीं हैं। ऐप्पल अपने स्मार्टफोन में सरकारी साइबर सुरक्षा ऐप प्रीलोड करने के आदेश का पालन करने की योजना नहीं बना रहा है। खबर है कि वह अपनी चिंताओं से भारत सरकार को अवगत कराएगा। ऐप्पल ने कहा है कि वह दुनिया में कहीं भी ऐसे आदेश नहीं मानता क्योंकि इससे उसके आईओएस यानी ऑपरेटिंग सिस्टम की सुरक्षा और प्राइवेसी पर खतरा पैदा होता है। हो सकता है बाकी कंपनियां भी इसी तरह आपत्ति दर्ज करें। ऐसे में यह फैसला मोदी सरकार की साख पर भी सवाल खड़े करेगा, जो पहले ही अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में लोकतांत्रिक मानकों पर बिखरी हुई है।


