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जवाहरलाल नेहरू के 137 वें जन्मदिन : जवाहर की ज्योति

जोहरान क्वामे ममदानी ने न्यूयार्क के मेयर चुने जाने के बाद के अपने पहले भाषण की शुरुआत पं. जवाहरलाल नेहरू के उस विश्वविख्यात भाषण के एक अंश से की थी जिसे पं. नेहरू ने 1947 की 14 अगस्त की आधीरात को लालकिले से 'संविधान सभा' और भारतवासियों को संबोधित करते हुए दिया था

जवाहरलाल नेहरू के 137 वें जन्मदिन : जवाहर की ज्योति
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सामाननीय पं. जवाहरलाल नेहरू (संयुक्त प्रांत : जनरल)

हब सदर, कई वर्ष हुए कि हमने किस्मत से एक बाज़ी लगाई थी, एक इकरार किया था, प्रतिज्ञा की थी। अब वक़्त आया है कि हम इसे पूरा करें, बल्कि वह पूरा तो शायद अभी भी नहीं हुआ लेकिन फिर भी एक बड़ी मंज़िल पूरी हुई है। हम वहां पहुंचे हैं।

मुनासिब है कि ऐसे वक़्त में हमारा पहला काम यह हो कि हम एक प्रण और एक नई प्रतिज्ञा फिर से करें— इकरार करें कि आइन्दा हम हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान के लोगों की ख़िदमत करेंगे।

कुछ मिनटों में यह असेम्बली पूरी तौर से आज़ाद और खुदमुख्तार असेम्बली हो जाएगी, और यह असेम्बली एक आज़ाद और खुदमुख्तार मुल्क की नुमाइंदगी करेगी। चुनांचे, इसके ऊपर ज़बरदस्त ज़िम्मेदारियां आती हैं। और अगर हम इन ज़िम्मेदारियों को पूरी तौर से महसूस न करें, तब शायद हम अपना काम ठीक तौर से न कर सकेंगे।

इसलिए यह ज़रूरी हो जाता है कि इस मौके पर सोच-समझकर यह इकरार करें। जो प्रस्ताव मैं आपके सामने पेश कर रहा हूं, वह इसी इकरार और इसी प्रतिज्ञा का है।

हमने एक मंज़िल पूरी की है और आज उसकी खुशियां मनाई जा रही हैं। हमारे दिल में भी खुशी है, एक गुरूर है, एक इत्मीनान है। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि हिन्दुस्तान भर में आज खुशी पूरी नहीं है। हमारे दिल में रंज के टुकड़े भी हैं और दिल्ली से बहुत दूर नहीं, बड़े-बड़े शहर जल रहे हैं। वहां की गर्मी यहां आ रही है। इसलिए खुशी पूरी तौर से नहीं हो सकती।

लेकिन फिर भी हमें इस मौके पर हिम्मत से इन सब बातों का सामना करना है। न हाय-हाय करनी है न परेशान होना है। जब हमारे हाथ में बागडोर आ गई है, तो अब हमें गाड़ी को ठीक तरह से चलाना है।

आम तौर पर मुल्क आज़ाद होते हैं तो बहुत सी परेशानियों, मुसीबतों और खूरेज़ी के बाद होते हैं। हमारे यहां भी ऐसी खूरेज़ी हुई है, और बहुत तकलीफ़देह ढंग से हुई है। फिर भी, हम आज़ाद हुए, बाअमन और शांतिमय तरीकों से, और एक अजीब मिसाल दुनिया के सामने रखी।

लेकिन आज़ादी के साथ मुसीबतें और बोझ भी आते हैं। उनका हमें सामना करना है, उन्हें ओढ़ना है और अपने स्वप्न को हक़ीक़त बनाना है। मुल्क को सिर्फ विदेशी शासन से आज़ाद करना ही मक़सद नहीं था। जब तक हिन्दुस्तान का एक-एक इंसान आज़ादी की हवा में न जी सके, जब तक उसकी तकलीफ़ें न हटाई जाएं तब तक हमारा काम पूरा नहीं होता।

बड़े-बड़े सवाल हमारे सामने हैं। कुछ सवालों को देखकर दिल दहल जाता है। लेकिन हिम्मत यह सोचकर आती है कि पुराने ज़माने में हमने इससे भी बड़े काम किए हैं तो क्या हम इन सवालों से दब जाएंगे?

हमारा गुरूर निजी नहीं है। कुछ गुरूर है अपने मुल्क पर, और इत्मीनान है अपनी कौम की ताक़त पर, उन लोगों पर जिन्होंने बहुत मुसीबतें झेली हैं। इसलिए हमें विश्वास है कि जो परेशानियों का बोझ हमारे सामने है, हम उसे भी उठाएंगे और उन सवालों को भी हल करेंगे।

जब हम आज़ादी के दरवाज़े पर खड़े हैं, यह याद रखना होगा कि हिन्दुस्तान किसी एक फिरके, एक धर्म या एक समुदाय का मुल्क नहीं है। यह बहुत-से धर्मों, बहुत-सी जातियों, बहुत-सी परंपराओं का

देश है।

हम किस तरह की आज़ादी चाहते हैं? यह पहले ही कहा जा चुका है कि यह आज़ादी हर एक हिन्दुस्तानी के लिए है। हर हिन्दुस्तानी का बराबर का हक़ है। हर हिन्दुस्तानी को इस आज़ादी में बराबर की हिस्सेदारी करनी है।

इस आधार पर हम आगे बढ़ेंगे। कोई ज़्यादती करेगा तो उसे रोकेंगे, चाहे वह कोई भी हो। और किसी पर ज़्यादती होगी तो उसकी मदद करेंगे, चाहे वह कोई भी हो।

अगर हम इस तरह से चलेंगे तो बड़े-बड़े मसले हल हो जाएंगे। लेकिन अगर हम तंग-ख़्याली में पड़ गए, तो ये मसले हल नहीं होंगे।

मैं इस प्रस्ताव को आपके सामने रखता हूं। अब मैं इसे अंग्रेज़ी ज़बान में भी पढ़कर सुनाऊंगा। (सप्रेस)


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