Top
Begin typing your search above and press return to search.

अंतरराष्ट्रीय बैंक दिवस : बैंकिंग से बदलता भारत

संयुक्त राष्ट्र संघ' ने वर्ष 2020 में 4 दिसंबर को 'अंतरराष्ट्रीय बैंक दिवस' घोषित किया था। यह दिवस बहुपक्षीय विकास बैंकों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की उस महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है

अंतरराष्ट्रीय बैंक दिवस : बैंकिंग से बदलता भारत
X
  • अरुण कुमार डनायक

'अंतरराष्ट्रीय बैंक दिवस' हमें याद दिलाता है कि बैंक केवल पूंजी निर्माण करने, रोजगार के अवसर बढ़ाने, मौद्रिक नीति लागू करवाने और बचत को प्रोत्साहित करने वाली आर्थिक संस्थाएं भर नहीं, बल्कि समाज के व्यापक विकास के महत्वपूर्ण वाहक भी हैं। भारत ने वित्तीय समावेशन में नवाचार के माध्यम से दुनिया को 'इनोवेशन विद इंक्लूजन' का प्रभावशाली मॉडल दिया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ' ने वर्ष 2020 में 4 दिसंबर को 'अंतरराष्ट्रीय बैंक दिवस' घोषित किया था। यह दिवस बहुपक्षीय विकास बैंकों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की उस महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है, जिसके माध्यम से वे 'सतत विकास लक्ष्यों' (एसडीजी) की 2030 तक प्राप्ति, सदस्य देशों के जीवन-स्तर में सुधार और वैश्विक वित्तीय स्थिरता को सुदृढ़ करते हैं। यह दिवस याद दिलाता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, लैंगिक समानता और आर्थिक अवसरों जैसे 'एसडीजी' को आगे बढ़ाने में बैंकिंग प्रणाली ही वित्तीय संसाधन और समावेशन की मूल आधारशिला है।

कई देशों ने वित्तीय समावेशन को गरीबी उन्मूलन का प्रभावी साधन बनाया है। बांग्लादेश ने 'माइक्रोक्रेडिट मॉडल' से लाखों गरीब परिवारों, खासकर महिलाओं की आय बढ़ाने में उल्लेखनीय सफलता पाई। प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस और ग्रामीण बैंक के इस योगदान को 2006 में 'नोबेल शांति पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। केन्या ने 'मोबाइल मनी' के माध्यम से ग्रामीण परिवारों की बचत, आय और आपदा-प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत किया। रवांडा, फिलीपींस, इंडोनेशिया और पेरू ने डिजिटल बैंकिंग, समूह-आधारित ऋण और फिनटेक नवाचार के जरिए बड़ी आबादी को औपचारिक वित्त से जोड़ा। इन देशों का अनुभव दिखाता है कि जब वित्तीय पहुंच आसान होती है, तो गरीब परिवार अधिक स्थिर, आत्मनिर्भर और अवसर-संपन्न बनते हैं।

भारत में वित्तीय समावेशन की आधारशिला आज़ादी के बाद ही रखी गई थी। वर्ष 1955 में 'भारतीय स्टेट बैंक' (एसबीआई) का गठन, अगले दशक में 'प्राथमिकता क्षेत्र ऋण नीति,' 'बैंकों का राष्ट्रीयकरण', 'लीड बैंक योजना' जैसे निर्णायक कदमों ने बैंकिंग को ग्रामीण भारत तक पहुंचाया। 'बैंक शाखा विस्तार नीति', 'स्वयं-सहायता समूह' और 'सूक्ष्म वित्त संस्थाओं' के प्रसार ने वंचित वर्गों को औपचारिक वित्त से जोड़ा। 2005-06 में 'वित्तीय समावेशन' शब्द के औपचारिक प्रयोग के साथ ही 'नो-फ्रिल्स खाता' शुरू हुआ, जो आगे चलकर 'प्रधानमंत्री जनधन खाते' का आधार बना। इस प्रकार स्वतंत्रता के बाद से सरकारों और बैंकों के सतत प्रयासों ने वित्तीय समावेशन को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया।

वित्तीय समावेशन का उद्देश्य कमजोर वर्गों को किफायती और समय पर वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराना है। आज 'प्रधानमंत्री जनधन योजना' के कारण 95प्रतिशत से अधिक परिवार बैंकिंग व्यवस्था से जुड़े हैं, जो एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। 'जनधन'-'आधार'-'मोबाइल' (जेएएम) त्रयी ने वित्तीय पहुंच को बेहद सरल बनाया। मई 2025 तक 55.44 करोड़ 'जनधन खाते' खोले गए, जिनमें 56प्रतिश महिलाएं हैं और खातों में रुपए 2.5 लाख करोड़ से अधिक जमा है। 'डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर' (डीबीटी) ने सीधे लाभार्थियों तक लाभ पहुंचाकर भ्रष्टाचार रोका।

शून्य-बैलेंस खातों में 'रुपे कार्ड,' 2 लाख का दुर्घटना बीमा और छह महीने के सुचारु संचालन पर ओवरड्राफ्ट सुविधा मिलती है। साथ ही बीमा, 'अटल पेंशन योजना' और 'मुद्रा ऋण' जैसी योजनाएं करोड़ों लोगों को सीधे लाभ पहुंचा रही हैं। डिजिटल भुगतान की विभिन्न प्रणालियों ने बैंकिंग को जन-सुलभ बनाया और स्ट्रीट वेंडरों, लघु उद्यमियों तथा सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भुगतान आसान कर दिया है, जिससे धन अंतरण के पारंपरिक साधन, जैसे ड्राफ्ट और मनीऑर्डर अब लगभग अप्रचलित हो गए हैं।

'रिज़र्व बैंक' समय-समय पर नीतिगत सुधारों के माध्यम से वित्तीय समावेशन को मजबूत कर रहा है। कृषि ऋण की बिना गारंटी सीमा 2 लाख तक बढ़ाई गई है, प्राथमिकता क्षेत्र के तहत ऋण सीमाएं विस्तारित हुई हैं और कमजोर वर्गों की सूची भी बढ़ाई गई है। शहरी सहकारी बैंकों में महिलाओं के लिए ऋण सीमा हटाकर उन्हें अधिक लचीलापन दिया गया है। 'सह-ऋण' व्यवस्था का दायरा बढ़ाकर अधिक संस्थाओं को जोड़ा गया है। डिजिटल भुगतान को सरल बनाने के लिए अब प्राथमिक खाताधारक की अनुमति से दूसरा उपयोगकर्ता सीमित भुगतान कर सकता है और विकलांगजन-अनुकूल भुगतान प्रणालियां विकसित करने के निर्देश दिए गए हैं।

वित्तीय साक्षरता के बिना समावेशन अधूरा है। 'रिज़र्व बैंक' ने ग्रामीण और शहरी जनता में जागरूकता बढ़ाने के लिए 'वित्तीय साक्षरता केंद्र' स्थापित किए हैं। ये केंद्र किसानों, महिलाओं और उद्यमियों को वित्तीय शिक्षा और परामर्श प्रदान करते हैं, जिसमें बचत, ऋण, बीमा और डिजिटल भुगतान की जानकारी शामिल है; बैंक और एनजीओ मिलकर कार्यशालाएं और परामर्श चलाते हैं, जिससे समावेशन और सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता बढ़ती है।

भारत में वित्तीय समावेशन की प्रमुख चिंताएं हैं - गहरी क्षेत्रीय व लैंगिक असमानताएं, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में नकदी-निर्भरता, कम वित्तीय साक्षरता और कमजोर ऋण अभिगम्यता- जिनके साथ भ्रष्टाचार व संस्थागत खामियां, बीमा उत्पादों की अनुचित बिक्री, डिजिटल धोखाधड़ी, माइक्रोफाइनेंस में अति-ऋणग्रस्तता और कठोर वसूली प्रथाएं स्थिति को और जटिल बनाती हैं। ऐसे में बेहतर क्रेडिट मूल्यांकन, वित्तीय अनुशासन, नैतिकता युक्त कम खर्चीली वसूली और साइबर सुरक्षा को मजबूत करना अत्यावश्यक है।

वित्तीय समावेशन का भविष्य उभरती तकनीकों - एआई, ब्लॉकचेन, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, अकाउंट एग्रीगेटर और यूनिफ़ाइड लेंडिंग इंटरफेस के प्रभावी उपयोग पर आधारित है। बैंक भी दूरस्थ क्षेत्रों के लिये हल्के और उपयोगकर्ता-अनुकूल डिजिटल उत्पाद विकसित कर रहे हैं, जिससे हर नागरिक तक सुरक्षित और भरोसेमंद वित्तीय सेवाएं पहुंच सकें। आगे की प्राथमिकता डिजिटल ढांचे और वित्तीय साक्षरता के विस्तार, किसानों, मध्यम उद्योगों के लिये लचीली ऋण व्यवस्था तथा मजबूत नियामक शासन और महिला-केंद्रित नीतियों में समन्वय पर होनी चाहिए।

'अंतरराष्ट्रीय बैंक दिवस' हमें याद दिलाता है कि बैंक केवल पूंजी निर्माण करने, रोजगार के अवसर बढ़ाने, मौद्रिक नीति लागू करवाने और बचत को प्रोत्साहित करने वाली आर्थिक संस्थाएं भर नहीं, बल्कि समाज के व्यापक विकास के महत्वपूर्ण वाहक भी हैं। भारत ने वित्तीय समावेशन में नवाचार के माध्यम से दुनिया को 'इनोवेशन विद इंक्लूजन' का प्रभावशाली मॉडल दिया है। आज करोड़ों लोग, जो पहले बैंकिंग से बाहर थे, अब वित्तीय मुख्यधारा में आ चुके हैं।

भारतीय बैंकिंग प्रणाली की मजबूती, नवाचार और भरोसेमंद सेवाएं इस समावेशन को स्थायी और प्रभावशाली बनाती हैं और देश को अधिक समृद्ध, समान और सशक्त करती हैं। भविष्य का भारत तभी सच में समावेशी होगा, जब कोई भी नागरिक वित्तीय मुख्यधारा से बाहर न रहे। 'अंतरराष्ट्रीय बैंक दिवस' याद दिलाता है कि लक्ष्य सरल है- 'हर हाथ तक पहुंच, हर सपने को पूंजी।'

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता व स्टेट बैंक के सेवानिवृत वरिष्ठ अधिकारी हैं।)


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it