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जवाबदेही के अभाव में पिछड़ती भारतीय टेस्ट क्रिकेट

पहले किसी भी टेस्ट सीरीज से पूर्व क्रिकेट टीम का कैम्प होता था। अब व्यस्त कार्यक्रम की वजह से कैम्प नहीं हो पाते हैं।

जवाबदेही के अभाव में पिछड़ती भारतीय टेस्ट क्रिकेट
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—राजेश पांडेय

पहले किसी भी टेस्ट सीरीज से पूर्व क्रिकेट टीम का कैम्प होता था। अब व्यस्त कार्यक्रम की वजह से कैम्प नहीं हो पाते हैं। लिहाजा, टेस्ट मैचों की मुश्किल परीक्षा के लिए खिलाड़ी तैयार नहीं हो पाते हैं। 2008 में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की शुरुआत के बाद टी-20 क्रिकेट को ज्यादा अहमियत मिली है। आईपीएल ने अपार लोकप्रियता हासिल की है।

टेस्ट मैचों को क्रिकेट का सबसे शुद्ध फॉर्मेट मानते हैं। विशेषज्ञ स्वीकार करते हैं, क्रिकेट खिलाड़ी की असली परीक्षा पांच दिन के टेस्ट में होती है। जैसा कि धुरंधर बल्लेबाज विराट कोहली का कहना है, खेल के अन्य स्वरूपों के मुकाबले टेस्ट क्रिकेट पांच लेवल आगे है। अपने जमाने में क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर मानते हैं, टेस्ट मैचों में कामयाबी वैश्विक स्तर पर सम्मान दिलाती है। स्पिन के जादूगर शेन वार्न भी कहते थे यदि आप दर्शकों और खिलाड़ियों से इज़्ज़त हासिल करना चाहते हैं तो टेस्ट मैच सबसे अच्छी जगह है।

टी-20 क्रिकेट की चमक के बीच ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड में अब भी टेस्ट देखने के लिए हजारों लोग जुटते हैं। लेकिन, पूरी दुनिया की क्रिकेट को अपने धन के बूते चलाने वाले भारत में ऐसी स्थिति नहीं है। इन दिनों हमारे यहां खिलाड़ियों और क्रिकेट बोर्ड का ध्यान टेस्ट मैचों के बजाय कहीं और है।

एक साल के भीतर घर में न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के हाथों अपमानजनक हार ने टेस्ट मैचों में भारत की दुर्दशा की सही तस्वीर पेश की है। किसी समय स्पिन गेंदबाजी को भारत की ताकत माना जाता था। भारतीय बल्लेबाज स्पिन के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे। ऑस्ट्रेलिया के शेन वार्न और श्रीलंका के मुथैया मुरलीधरन जैसे स्पिन के जादूगरों का भारत में औसत प्रदर्शन रहा है। अब स्थिति उल्टी है। न्यूज़ीलैंड, दक्षिण अफ्रीका के अनाम स्पिनरों के सामने भारतीय बल्लेबाजों ने आसानी से हथियार डाल दिए। दोनों टेस्ट श्रृंखलाओं के नतीजों ने कुछ बुनियादी मुद्दे उठाए हैं।

भारतीय क्रिकेट के मौजूदा ढांचे में किसी को टेस्ट क्रिकेट की परवाह नहीं है। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 27 नवंबर को गुवाहाटी टेस्ट में भारत अपने 92 साल के टेस्ट इतिहास में रनों के हिसाब से सबसे बड़ी हार (408 रन) से जूझ रहा था। उधर मुंबई में भव्य आयोजन में टी-20 विश्व कप के कार्यक्रम की घोषणा हो रही थी। जाहिर है, क्रिकेट बोर्ड का पूरा ध्यान सीमित ओवरों की क्रिकेट पर है। अपमानजनक पराजयों की जवाबदेही लेने के लिए कोई तैयार नहीं है। भारत को अगली टेस्ट सीरीज़ कुछ महीनों बाद खेलना है। इसलिए टेस्ट क्रिकेट अब परदे के पीछे चली जाएगी। हार को भुला दिया जाएगा। टी-20 क्रिकेट की चकाचौंध में मूल मुद्दे गायब हो जाएंगे।

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ़ कई बिंदुओं पर भारत की कमज़ोरी सामने आई है। रणनीति के तौर पर कोच गौतम गंभीर नाकाम साबित हुए हैं। गंभीर अपने समय के अच्छे ओपनिंग बैट्समैन थे। उनके कोच रहते भारत ने सीमित ओवरों की चैंपियंस ट्रॉफी और एशिया कप जीते हैं। कुछ माह पहले ही भारत ने इंग्लैंड में 2-2 से टेस्ट सीरीज बराबरी पर खेली है। लेकिन, दक्षिण अफ्रीका सीरीज में गंभीर ने बल्लेबाजी क्रम में बार-बार बदलाव किए। विशेषज्ञ बल्लेबाजों, गेंदबाजों की बजाय ऑलराउंडर को आजमाया गया। जबकि टेस्ट मैचों में विशेषज्ञों के दम पर ही बेहतर प्रदर्शन मुमकिन है। पिछले साल न्यूजीलैंड के स्पिनर मिशेल सेंटनर और एजाज पटेल के सामने भारतीय बल्लेबाज नहीं टिक पाए थे। फिर भी, दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ स्पिनरों के अनुकूल पिच बनवाई गई। 36 वर्षीय ऑफ स्पिनर साइमन हार्मर ने दो टेस्ट मैचों में 17 विकेट लेकर भारत की कमर तोड़ दी। अफ्रीकी टीम पाकिस्तान से होकर भारत आई थी। वहां हार्मर और केशव महाराज ने 17 विकेट लेकर सीरीज़ बराबर की थी। इस तथ्य पर गौर किया जाता तो स्पिन लेने वाले पिचों से बचा जा सकता था।

गंभीर का कहना है कि अगर हमें टेस्ट मैचों में अच्छा प्रदर्शन करना है तो उसके लिए अपनी प्राथमिकताएं तय करना होंगी। ऐसा नहीं हो सकता कि घर में दक्षिण अफ्रीका से टेस्ट सीरीज़ के एक सप्ताह पहले हम ऑस्ट्रेलिया में सीमित ओवरों की सीरीज़ खेल रहे हों। उनका मतलब है कि हमें टेस्ट मैचों पर फोकस करना था। बताते हैं, क्रिकेट बोर्ड में गंभीर का अच्छा प्रभाव है। वे एक बार भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर दिल्ली से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं।

इस समय क्रिकेट बोर्ड में इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) के चेयरमैन जय शाह की तूती बोलती है। वे गृहमंत्री अमित शाह के बेटे हैं। पांच साल तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के सचिव रहे हैं। जय शाह सीनियर के साथ जूनियर खिलाड़ियों से बातचीत करने के लिए जाने जाते हैं। आईसीसी में रहते हुए भी शाह का भारतीय बोर्ड पर प्रभाव होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। सवाल है क्या गंभीर पहले से नहीं जानते थे कि ऑस्ट्रेलिया में सीमित ओवरों की सीरीज़ के कुछ दिन बाद ही भारत को टेस्ट सीरीज़ खेलना है। कोच यह मुद्दा बोर्ड के सामने पहले ही उठा सकते थे। गंभीर की बात से लगता है कि बोर्ड और कोच के बीच तालमेल की कमी है।

पहले किसी भी टेस्ट सीरीज से पूर्व क्रिकेट टीम का कैम्प होता था। अब व्यस्त कार्यक्रम की वजह से कैम्प नहीं हो पाते हैं। लिहाजा, टेस्ट मैचों की मुश्किल परीक्षा के लिए खिलाड़ी तैयार नहीं हो पाते हैं। 2008 में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की शुरुआत के बाद टी-20 क्रिकेट को ज्यादा अहमियत मिली है। आईपीएल ने अपार लोकप्रियता हासिल की है। कार्निवाल जैसे माहौल ने क्रिकेट में नई जान फूंकी है। युवाओं और महिलाओं का नया वर्ग क्रिकेट से जुड़ा है।

आईपीएल सोना बरसाने वाली लीग साबित हुई है। अब हर देश में टी-20 लीग होने लगी है। आईपीएल की बदौलत भारतीय क्रिकेट बोर्ड दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट संगठन बन गया है। बोर्ड ने 2023-2027 के बीच क्रिकेट मैचों के मीडिया अधिकारों के लिए 48390 करोड़ रुपए का करार किया है। 2024-25 में बोर्ड की आय 10054 करोड़ रुपए थी। वह 7706 करोड़ रुपए के फायदे में था। 2023-24 में बोर्ड की आय 9741.71 करोड़ रुपए थी। 2025 में आईपीएल का बाजार मूल्य 1.56 लाख करोड़ रुपए आंका गया है। ये आंकड़े क्रिकेट में धन के बढ़ते महत्व और बदलती प्राथमिकताओं का आईना हैं। क्रिकेट बोर्ड के साथ खिलाड़ियों की भी व्हाइट बॉल क्रिकेट (टी 20, वन डे) में ज्यादा दिलचस्पी है। आईपीएल नीलामी में खिलाड़ियों पर लाखों, करोड़ों रुपए के दांव लगते हैं। अंडर-19 क्रिकेटरों का फोकस भी सीमित ओवरों की क्रिकेट पर है। धीरज और संयम के साथ लंबी पारियां खेलने वाले बल्लेबाज कम होते जा रहे हैं। फटाफट क्रिकेट ने तकनीक की शास्त्रीयता को ताक पर रख दिया है। लिहाजा, घुमावदार पिच पर सीधे बल्ले से खेलने की तकलीफ उठाने वाले बल्लेबाजों की प्रजाति लुप्त होती जा रही है।

पिछले कुछ वर्षों में बहुत कम उच्चस्तरीय बल्लेबाज और गेंदबाज उभरे हैं। इस श्रेणी में शुभमन गिल और यशस्वी जायसवाल जैसे बल्लेबाजों के नाम लिए जा सकते हैं। बॉलिंग में जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद सिराज, कुलदीप यादव कड़ी मेहनत के सहारे जगह बना सके हैं। ऐसा लगता है, नए खिलाड़ी तैयार करने का सिस्टम पहले जैसा असरदार नहीं रहा है। पहले बैटिंग की एक पोज़िशन के लिए कई खिलाड़ी रहते थे। अब ऐसा नहीं है। इसलिए बोर्ड को नए सिरे से टेस्ट क्रिकेट के हिसाब से योजना बनाने की जरूरत है। टेस्ट क्रिकेट में पहली रैंकिंग से अब भारत चौथी रैंकिंग पर है। इसका दूरगामी असर पड़ सकता है। स्वदेशी टीम के प्रदर्शन में गिरावट से खेल में लोगों की दिलचस्पी कम होती जाएगी। ज़ाहिर है, इसका असर क्रिकेट में आ रहे धन पर भी पड़ेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)


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